ब्यूरो रिर्पोट चन्दौली। वन उपज महुआ को बीनने व पियार(चिरौजी)को तोड़कर गरीबों को उपयोग करने की छूट वनविभाग की ओर से है न कि वनवासियों गिरिवासियों का शोषण कर ब्यापारियों को ब्यापार में बहुत काफी आय अर्जन करने की। यदा कदा वनविभाग या पुलिस विभाग के हथकंडे में कोई न कोई ब्यापारी वन उपज के साथ आ जाता है तो टा्ंजिट शुल्क के नाम पर कुछ रूपयों की अदायगी करने के बाद उसे क्लीन चिट मिल जाना स्वाभाविक है।
काशी वन्य जीव प्रभाग रामनगर का भू – भाग व जंगलों का साम्राज्य तो दिनों दिन सिमटता ही जा रहा है। फिर भी वनांे में जो भी महुआ और पियार के पेड़़ मौजूद हैं।उसका फूल व फल को बीनने तोड़ने का निर्धारण गरीब परिवारों का आदिकाल से ही रहा है।

कुछ प्रभावशाली लोग गरीबों को बेदखल करके स्वयं का आधिपत्य जमाने का पुरजोर प्रयास करते रहते हैं। जिससे महुआ व पियार के सीजन में मारपीट, झगड़ा – झंझट का मामला थाने तक आता रहता है।

प्रचंड गर्मी के मौसम में गरीबों को महुआ बीनने व पियार(चिरौंजी)को तोड़ने मंे दिन का चैन व रात की नींद का परित्याग करके भरी दोपहरी का परवाह किए बगैर ही नदी नालो का गंदा दूषित पानी व रुखा सूखा भोजन का निवाला ग्रहण कर हाड़तोड़ मेहनत से एक – एक फूल व फल चुन-चुन कर एकत्रित करके अपने आशियाने में सूखाना पड़ता है।

जिसपर ब्यापारियों की नजरंे इनायत रह करके वनवासियों गिरिवासियों को बहला फुसलाकर औने पौने दामों पर वन उपज की खरीददारी करने में कामयाब हो ही जाती है। जिसको वनविभाग व पुलिस विभाग की आंखों में धूल झोंककर काफी ऊंचे दर पर बेचकर ब्यापारी मालामाल हो जाता है।

जब कभी वन उपज के साथ विभागीय गिरफ्त मंे ब्यापारी आ जाता है तो सुविधा शुल्क की अदायगी कर अपने धंधे को बढावा देने मे लगा रहता है।

आजादी के बाद काशी नरेश राज्य के वनों में वनविभाग का आधिपत्य कायम होने के बाद जंगलों में मौजूद महुआ के व पियार(चिरौंजी)के फूलों व फलों को बीनने तथा तोड़कर स्वयं के हित में उपयोग करने की छूट वनविभाग की ओर से जारी की गई थी।जो कि प्रथा का निर्वहन अभी भी विभागीय प्रश्रय से होता आ रहा है।जंगलों में मौजूद महुआ व पियार ईत्यादि के पेड़ो का बंटवारा गरीब परिवारों ने आजादी के बाद ही कर लिया था।जिसपर पीढी दर पीढी कब्जा चल रहा है। ब्यापारियों द्वारा चोरी छिपे महुआ को वाहनों के सहारे मद्धूपुर जनपद सोनभद्र के आढ़तों पर पहुंचा कर बढ़िया मुनाफा अर्जित कर लिया जाता है।
पियार की गुठली को तोड़कर चिरौजी निकालने की कई मशीन कस्बा बाजार में धड़ल्ले से चल रही है।जहां से संबंधित विभागीय कर्मी अपना हिस्सा प्राप्त कर लेते हैं।जिसे ब्यापारी वाराणसी के दीनानाथ गोला की मेवा मंडी मे ले जाकर बेचता है। क्षेत्र के बड़े बुजुर्गों की माने तो चिरौंजी कीमती खाद्य पदार्थों में शुमार तो है ही महुआ भी बहुत जीवनोपयोगी है।
महुआ को दूध मे भिगोकर खाना काफी सेहतमंद होने के साथ ही कई बीमारियों में लाभप्रद है।ब्यंजनो मंे महुआ के ठोकवा का एक अलग ही महत्व है। वहीं थकान होने पर महुआ का शराब बना करके लोग बाग सेवन भी करते हैं।
जिसपर ब्यापारियों की पहॅुंच होने के बाद से गरीबों के घरो मंे सीजन के बाद महुआ मिल पाना बमुश्किल हो जाता है।
महुआ के फूल के बाद फल भी मिलता है।जिसे कोईना के नाम से जाना जाता है।
जिसका खाद्य तेल स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी है। वहीं ब्यक्ति को जाड़े के दिनों मे ठंड का असर हो जाने पर तेल मालिश किया जाना अंग्रेजी दवाओं के सापेक्ष कई गुना अधिक असरदार होता है। इस प्रकार हम देखे तो अति पिछड़े क्षेत्र के आदिवासी परिवारों पर भी सियासत का दौर प्रारम्भ हो चुका है।