खबरी नेशनल न्यूज नेटवर्क
लखनऊ: 2 अगस्त, 2022

“ वन संरक्षण कानून के संशोधित नियम आदिवासी विरोधी एवं कारपोरेट प्रस्त”- यह बात आज एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट ने प्रेस को जारी बयान में कही है। उन्होंने कहा है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 28 जून 2022 को जो नए वन (संरक्षण) नियम 2022 को अधिसूचित किए हैं उसमें जंगल की जमीन को गैर-वन उद्देश्यों के लिए उपयोग करने हेतु स्थानीय आदिवासियों और अन्य वनवासियों की ग्राम सभाओं से अनुमोदन लिये जाने की पूर्व शर्त को समाप्त कर दिया गया है।

नए नियमों में 100 हेक्टेयर की जगह 1000 हेक्टेयर तक दिए जाने का प्रावधान

नए नियमों में 100 हेक्टेयर की जगह 1000 हेक्टेयर तक दिए जाने का प्रावधान किया गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नियम सरकार के अपने जलवायु लक्ष्यों के विपरीत हैं। चूंकि हमारे वन समृद्ध जैव विविधता और पुष्प संपदा का प्रतिनिधित्व करते हैं, अतः यह जैव विविधता संरक्षण की दिशा में सरकार के अपने प्रयासों के विपरीत हैं। उन्होंने आगे कहा है कि भारत के वन करीब 92,000 पक्षियों और जानवरों/कीटों की प्रजातियों के लिए आश्रय हैं और जीव-जंतुओं के धन में समृद्ध हैं, ये नियम वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के भी विपरीत हैं। यह महत्वपूर्ण बात है कि यह स्थानीय जल विज्ञान चक्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव लाएंगे- स्थानीय वर्षा स्तर को नीचे लाएंगे, भूजल पुनर्भरण में कमी लाएंगे और बाढ़ नियंत्रण के प्राकृतिक साधनों को कमजोर कर सकते हैं तथा बाढ़ का कारण बन सकते हैं। इससे आसपास की खेती वाली भूमि में फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अतिरिक्त वनों के विनाश से वायु प्रदूषण भी बढ़ सकता है क्योंकि एक हरा पेड़ प्रति वर्ष औसतन 260 पाउंड ऑक्सीजन पैदा करता है।

वन करीब 92,000 पक्षियों और जानवरों/कीटों की प्रजातियों के लिए आश्रय हैं और जीव-जंतुओं के धन में समृद्ध हैं, ये नियम वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के भी विपरीत


श्री दारापुरी ने आगे कहा है कि इन सब से अधिक, यह संशोधन प्रकृति पर होने वाले नुकसान के अलावा आदिवासियों को भी बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। इससे आदिवासियों और अन्य वनवासियों का व्यापक विस्थापन हो सकता है। एक तरफ मोदी सरकार ने आदिवासी वोटों पर नजर रखते हुए एक आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को भारत का राष्ट्रपति बनाया है। दूसरी तरफ यह वन संरक्षण कानून के तहत नियम बना रही है, जो आदिवासी आजीविका को तबाह कर सकते हैं।