खबरी नेशनल न्यूज नेटवर्क
वाराणसी। ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी वाद पोषणीय है या नहीं इस मुद्दे पर जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट में बहस पूरी कर ली गई और जिला जज ने 12 सितंबर की तिथि आदेश के लिए नियत कर दी। बुधवार को अधूरी बहस आगे बढ़ाते हुए अन्जुमन के अधिवक्ता शमीम अहमद ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट एक्ट और विशेष उपासना स्थल कानून का हवाला देते हुए कहा कि विश्वनाथ मंदिर का जिक्र है। उसमें नए व पुराने मन्दिर के बाबत कुछ नहीं कहा गया।

बुधवार को अधूरी बहस आगे बढ़ाते हुए अन्जुमन के अधिवक्ता शमीम अहमद ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट एक्ट और विशेष उपासना स्थल कानून का हवाला देते हुए कहा कि विश्वनाथ मंदिर का जिक्र है।

साथ ही मस्जिद प्रापर्टी का जिक्र नही है एक्ट में मन्दिर की व्यवस्था की देख रेख की बात कही गई है। हिन्दू पक्ष नद वक्फ बोर्ड में दर्ज आलमगीर मस्जिद को धरहरा माधव बिंदु बता रहे है वह गलत है। यह मस्जिद वक्फ बोर्ड में 221 पर दर्ज है और ज्ञानवापी 100 न. पर दर्ज है। वर्ष 2021 में जमीनों के अदला बदली का जिक्र करते हुए कहा इससे मस्जिद की सम्पत्ति प्रमाणित होती है। ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य पोषणीय नहीं है।

हिन्दू पक्ष नद वक्फ बोर्ड में दर्ज आलमगीर मस्जिद को धरहरा माधव बिंदु बता रहे है वह गलत है।

अन्जुमन ने साढ़े 11 से एक बजे तक बहस की। जबाबी प्रति उत्तर 4 महिला वादियों की तरफ से सुप्रीमकोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने दिया कहा कि 26 फरवरी 1944 का जो गजट दाखिल किया है वह फर्जी है और कोर्ट को गुमराह करने वाला है। यह गजट आलमगीर मस्जिद के लिए है जो धौरहरा बिंदु माधव मन्दिर के लिए है उससे ज्ञानवापी का कोई लेना देना नहीं है। यह मस्जिद भी हिन्दू मन्दिर तोड़कर बादशाह आलमगीर ने बनवाई थी। इसे ज्ञानवापी मस्जिद कहना कोर्ट को गुमराह करने के समान है, कहा कि इस वाद में धर्म और सत्य की जीत होगी।

यह मस्जिद भी हिन्दू मन्दिर तोड़कर बादशाह आलमगीर ने बनवाई थी। इसे ज्ञानवापी मस्जिद कहना कोर्ट को गुमराह करने के समान है, कहा कि इस वाद में धर्म और सत्य की जीत होगी।

वादिनी राखी सिंह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मान बहादुर सिंह ने कहा कि अन्जुमन इंतजमिया ने जो 1291 फसली वर्ष का जो खसरा दाखिल किया है वह स्वामित्व का प्रमाणपत्र नहीं है। उसके वैधता की जांच का अधिकार सिविल कोर्ट को है,जो इन्तजामिया कमेटी ने जमीन की अदला बदली की है वह सम्पत्ति देवता की है ऐसे में मन्दिर ट्रस्ट को और मसाजिद कमेटी को जमीन बदलने का कोई अधिकार नहीं है। यह जिला जज की अनुमति के बाद ही हो सकता है।