✍️खबरी नेशनल न्यूज नेटवर्क सम्पादकीय

गणेश दत्त पाठक
राष्ट्र सृजन अभियान नई दिल्ली ।

झारखंड में एक मासूम बालिका को एक सिरफिरे एकतरफा प्रेमवाले आशिक द्वारा जलाकर तड़पा कर मारने के संदर्भ में कठोर कानूनी कारवाई और शासन सत्ता द्वारा सख्त संदेश समय की दरकार

अंकिता को एक सिरफिरे आशिक ने जला दिया। अंकिता मर गई। तड़प तड़प कर मरी। मरने के समय तक अपने जिंदा बचने की संभावनाओं के बारे में पूछती रही। कहा जा रहा है कि शाहरुख ने जला डाला उसे। एकतरफा प्यार में प्रत्युत्तर के अभाव से खफा शाहरुख को शायद कोई भय नहीं था। लग तो रहा है जैसे शाहरूख को न कानून का डर था, न समाज का। मानवता को शर्मसार करनेवाली झारखंड की यह घटना महज एक घटना नहीं है। भविष्य में ऐसी और भी घटनाएं सामने आ सकती हैं अगर इस दर्दनाक घटना को सिर्फ अंकिता और शाहरुख के पंथ के नजरिए से देखा गया तो यह एक बेहद दुखदायक तथ्य ही होगा। नजर इस बात पर होनी चाहिए कि शाहरुख को इस वीभत्स हत्याकांड की सजा कैसे और कितनी मिलती है? इस मसले पर अंकिता को कितना न्याय मिल पाता है? सोशल मीडिया पर जिस तरह यह घटना वायरल हो रही हैं। अगर समुचित और सख्त कार्रवाई नहीं किया गया, कानून के मुताबिक अगर शीघ्र कठोर सजा नहीं दी गई तो पता नहीं कितनी अंकिता और खतरे में आ जायेंगी? और पता नहीं कितने और शाहरुख दुस्साहस कर बैठेंगे?

बात केवल नाम से जुड़े पंथ के आधार पर नहीं होना चाहिए बात अपराध के वीभत्स स्वरूप और न्याय की सुलभता के संदर्भ में ही होना चाहिए

अपराध अपराध होता है वह पंथ, जाति से सदैव निरपेक्ष होता है। अपराध मानवता का अपमान होता है। मानवता की प्रतिष्ठा का महान मंत्र हर पंथ में समाहित है। अपराध का राजनीतिक नजरिया भी नहीं होना चाहिए। अपराध का सामाजिक संदर्भ भी नहीं होना चाहिए। अपराध का प्रशासनिक प्रसंग भी नहीं होना चाहिए। अपराध के संदर्भ में सिर्फ न्याय होना चाहिए। न्याय में कोई कमी शासन सत्ता पर सवालिया निशान उठा जायेंगे। अपराध के प्रति राजनीतिक नफे नुकसान का गणित भी बेहद खतरनाक साबित होगा। आज अंकिता जली है कल नाम कोई अन्य भी हो सकता है पंथ कोई और भी हो सकता है। आज शाहरुख ने जलाया है कल कोई और भी हो सकता है। बात अंकिता या शाहरुख की नहीं। बात एक जघन्य अपराध की है। जघन्य अपराध के अपराधी को शीघ्र और सख्त सजा दिलाना ही शासन व्यवस्था का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए।

वोटों की गणित को संजो कर आप अपनी राजनीतिक सत्ता को बरकरार रख सकते हैं । लेकिन जब समाज में जघन्य अपराध होने लगेंगे तो क्या राजनीतिक सत्ता सुरक्षित भी रह पाएगी? यह एक बड़ा सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है।

राजनीतिक सत्ता, प्रशासनिक नेतृत्व, न्यायिक व्यवस्था और सामाजिक संचेतना के कठिन परीक्षा का अवसर अंकिता ने जलकर मरकर उपलब्ध कराया है। इस संदर्भ में किसी भी स्तर पर कोताही समाज के लिए एक बेहद दुखद संकेत होगा। वोटों की गणित को संजो कर आप अपनी राजनीतिक सत्ता को बरकरार रख सकते हैं । लेकिन जब समाज में जघन्य अपराध होने लगेंगे तो क्या राजनीतिक सत्ता सुरक्षित भी रह पाएगी? यह एक बड़ा सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है।

सतर्कता और सावधानी परिवार के स्तर पर भी जरूरी

समय बहुत तेजी से बदल रहा है। डिजिटल क्रांति के दौर में सबकुछ बहुत तेजी से बदल रहा है। अभी 5 जी का दौर आने वाला है। समाज के बदलते आयाम सतर्कता की मांग करते दिख रहे हैं। हर युवा के हाथ में मोबाइल और साथ में अत्याधुनिक मोटरसाइकिल। बेटे के लिए मां बाप द्वारा एक सौगात हो सकती है। लेकिन सुविधाओं को मुहैया कराने के बाद लाडलों पर नजर नहीं रखना भारी परेशानी का सबब भी बन जा रहा है। जिसका असर सिर्फ दुखद प्रसंग में ही दिख रहा है। सतर्कता और सावधानी परिवार के स्तर पर भी जरूरी है। तभी हम अंकिता को जलने से बचा पाएंगे और शाहरुख को गंभीर अपराध में शामिल होने से।

इस घटना को सुनकर पता नही कितने पिता को रात को नींद नहीं आई होगी और कितनी माताओं ने सोने के बजाय सिर्फ करवटें बदली होंगी। हर माता पिता चाहे वह किसी भी पंथ के हो या किसी भी जाति के अपने आसपास किसी शाहरुख की उपस्थिति की आशंका को जरूर टटोल रहे होंगे। अंकिता के मामले में न्याय नहीं मिल पाएगा तो पता नहीं कितने माता पिता के लिए ऐसे दर्दनाक हादसे हकीकत बन जायेंगे। अभी इस मामले में सख्त कार्रवाई की दरकार है ताकि समाज में सख्त संदेश जा सके।