महान स्वतंत्रता सेनानी रामविलास सिंह की पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि

✍️गणेश दत्त पाठक

आज हमारा देश स्वतंत्र है। हमारे देशवासी सापेक्षिक रूप से सुकून से हैं। उनके पास राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक अधिकार हैं। सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ के समावेशी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही है। लेकिन जरा याद कीजिए फिरंगी दासता का वह दौर, जब अत्याचार और उत्पीड़न से मानवता कराह उठती थी। उस उत्पीड़न से व्यथित होकर कई रणबांकुरे, आजादी के दीवाने, फिरंगी हुकूमत की चूले हिलाने के लिए त्याग और बलिदान के पथ पर चल पड़े। ऐसे अनेक स्वतंत्रता सेनानी रहे, जिन्होंने अपने लहू से देश की आजादी की दास्तां लिखी। यह अलग तथ्य है कि भारतीय इतिहास लेखन परंपरा हमारे अमर बलिदानियों की दास्तां को संजोने में न्याय नहीं कर पाई और अनेक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे, जिनकी कहानी गुमनामी के अंधेरे में खो गई। एक ऐसे ही महान स्वतंत्रता सेनानी थे राम विलास सिंह। उन्होंने न सिर्फ अपने त्याग से आजादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपितु समाज के प्रति संवेदना, नारी शिक्षा के प्रति समर्पित प्रयास और किसानों मजदूरों के हित में कार्य करके मानवता की महान सेवा की। आज जबकि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो हमारा कर्तव्य हो जाता है कि रामविलास बाबू जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों के व्यक्तित्व और कृतित्व के मधुर स्मृति को नमन अवश्य किया जाए।

फिरंगी सत्ता द्वारा आमजन के उत्पीड़न ने झकझोरा रामविलास बाबू को

जहानाबाद जिले के दक्षिणी भाग में गया की उतरी सीमा पर मखदुमपुर प्रखंड में यमुना नदी के किनारे स्थित छोटे से गांव खलकोचक की पावन पवित्र धरती पर बाबू रामविलास सिंह जी का जन्म 10 फरवरी, 1894 को हुआ था। वह समय फिरंगी दासता का था। ब्रिटिश हुकूमत के तले भारतीय लोग शोषण, अत्याचार और व्यथा के दंश को झेल रहे थे। अभी हमने कोरोना महामारी को देखा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार की अतिशय सक्रियता को देखा। लेकिन ब्रिटिश दासता के दौर में महामारी, अकाल की स्थिति में जनता कराह उठती थी। फिरंगी बेपरवाह होकर शोषण में लिप्त रहते थे। बचपन से किशोरावस्था तक का यह अनुभव रामविलास बाबू को झकझोर गया।

राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में रही रामविलास बाबू की बड़ी भूमिका

उनका झुकाव राष्ट्रीय आंदोलन की तरफ बढ़ा। वे स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े। आजादी की टोली बनाकर गांव गांव में स्वयं सेवक बनाने लगे। राष्ट्रीय चेतना का संचार उनका प्रमुख लक्ष्य बन गया। महात्मा गांधी उस दौर में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता बनते जा रहे थे। चंपारण आंदोलन के दौरान गांधी जी के नेतृत्व ने अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया था। गांधी जी से प्रभावित होकर रामविलास बाबू भी असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। असहयोग आंदोलन के समय रामविलास बाबू युवा थे और पूरी ऊर्जा के साथ ब्रिटिश सरकार के साथ असहयोग की नीति का प्रचार प्रसार करते रहे। विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार, सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार, अदालतों के बहिष्कार के गांधी जी के निर्देशों के तहत आम जनता को प्रेरित करते रहे।

गांधी जी के सृजनात्मक कार्यों में सहयोग

आजादी के विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी के साथ रामविलास बाबू गांधी जी के समाज के संदर्भ में रचनात्मक और सृजनात्मक सुधार कार्यों में भी सक्रिय सहयोग करते रहे। हरिजन कल्याण से संबंधी अनेक कार्यों में इनकी सहभागिता रही। नारी शिक्षा के संदर्भ में भी रामविलास बाबू बेहद सक्रिय रहे । उनका मत रहा कि जिस समाज में नारी खुशहाल होगी वहीं समाज उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकता है। इसलिए नारी उत्थान के लिए हरसंभव सहयोग करने में वे आगे रहे। फिरंगियों के शोषण के कारण उस दौर में गरीबी इतनी ज्यादा रहती थी कि लड़कियों की शादी एक बहुत बड़ी चुनौती होती थी । ऐसी गरीब लड़कियों की शादी में रामविलास बाबू यथा संभव सहयोग दिया करते थे। समय समय पर रामविलास बाबू धार्मिक न्यासों, मंदिरों पर जाकर गुप्त दान किया करते थे।

साहित्य प्रेमी थे रामविलास बाबू

रामविलास बाबू की साहित्य में भी विशेष रुचि थी। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर , रविन्द्र नाथ ठाकुर, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, मैथिली शरण गुप्त जैसे साहित्यकारों की रचनाओं से रामविलास बाबू ऊर्जस्वित होकर राष्ट्र सृजन अभियान में ऊर्जावान और समर्पित सिपाही की भूमिका निभाते रहे।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया सम्मानित

आजादी के 25 वीं वर्षगांठ के पावन पर 15 अगस्त, 1972 को जब केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र और पेंशन की घोषणा की तो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा गया की एक विशाल सभा में ताम्र पात्र और रेशमी शॉल से रामविलास बाबू सम्मानित किए गए।

समता मूलक समाज के निर्माण का भाव रहा उनकी ऊर्जा का आधार

व्यक्तिगत तौर उनकी शालीनता, सौम्यता, संवेदनशीलता, सुकांत स्वरूप, अभिवंचितों के उद्धार का चिंतन, समता मूलक समाज के निर्माण का भाव, उनकी विशेष थाती थी। उनकी अंतर्दृष्टि अधिकतर सामाजिक समस्याओं तक पहुंच जाती थी। उनकी शांति और क्रांति के प्रति असीम निष्ठा थी।

गांवों में घूम घूम कर राष्ट्रीय आंदोलन को दी मजबूती

फिरंगी दासता के दौर में भारत के लोग दहशत में रहा करते थे। स्थिति यह होती थी कि कोई गांधी जी या स्वतंत्रता का समर्थक गली से गुजरता था, तो बच्चों को लोग छुपा लिया करते थे। डर रहता था कि कहीं बच्चे पर राष्ट्रवादी प्रभाव न पड़ जाए। ऐसी विकट परिस्थिति में रामविलास बाबू गांव गांव घूमकर राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में जुटे रहते थे। गांधी जी के अभियानों के बारे में बताकर जनसमुदाय को राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी के लिए प्रेरित करते थे।

गया कलेक्ट्रेट पर फहराया तिरंगा

जब 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ तो जनता ने आंदोलन में बेहद सक्रिय भूमिका निभाई। सभी बड़े राष्ट्रीय नेताओं के गिरफ्तार हो जाने के बाद जनता ने ही आंदोलन की बागडोर संभाली। राष्ट्रीय ध्वज को सरकारी संस्थानों पर फहराने के मुहिम में रामविलास बाबू ने गया समाहरणालय पर ब्रिटिश ध्वज यूनियन जैक को उतार कर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहरा दिया। वह यूनियन जैक आज भी उनके
पौत्र राष्ट्र सृजन अभियान के प्रमुख प्रद्युमन कुमार सिन्हा के पास सुरक्षित है। रामविलास बाबू को छह माह के कारावास की सजा भी दी गई थी।

ब्रिटिश सरकार के नाक में कर दिया था दम

रामविलास बाबू ने अपनी क्रांतिकारी हरकतों से भारत छोड़ो आंदोलन के दौर में ब्रिटिश हुकूमत की नाक में दम कर रखा था। कभी पोस्ट ऑफिस जलाने का प्रयास तो कभी रेल पटरियों को उखाड़ने का प्रयास। राष्ट्रवादी ऊर्जा से लैस रामविलास बाबू ने अंग्रेजी सरकार के लिए मुश्किलों को खड़ी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राष्ट्रीय नेताओं से सीखे त्याग और संवेदना के गुण

युवा अवस्था में ही रामविलास बाबू राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हो चुके थे। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे गांधीजी के निर्देशों के पालन में बेहद सक्रिय रहे। गांधी जी के अलावा जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, स्वामी सहजानंद, सुभाष चंद्र बोस, बाबू वीर कुंवर सिंह, चंद्रशेखर आजाद, जयप्रकाश नारायण के पदचिन्हों पर चलने का रामविलास बाबू ने भरपूर प्रयास किया।

शांति और क्रांति दोनों में निष्ठा थी

फिरंगी दासता के दौर में रामविलास बाबू शांति पूर्ण प्रदर्शनों के साथ क्रांतिकारी प्रयासों के द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन को सहयोग प्रदान किया। वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्याग्रह में भी भरोसा रखते थे तो चंद्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी विचारों में भी। देश सेवा के लिए जब जैसी आवश्यकता पड़ी वैसी भूमिका को निभाया।

किसानों के प्रति रहे हमेशा बेहद संवेदनशील

रामविलास बाबू स्वतंत्रता के पूर्व से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक आजीवन किसानों के हिमायती बने रहे।। किसानों के मसलों पर सदैव वे संवेदनशील बने रहे। उनकी परेशानियों को रामविलास बाबू ने बड़ी मुखरता से उठाया और हरसंभव सहायता के लिए सदैव आगे रहे। किसान आंदोलन को गति देते रहे और जमींदारी उन्मूलन में भी सहयोग दिया।

समावेशी विकास के पक्षधर

रामविलास बाबू सदा समावेशी विकास के प्रबल पक्षधर रहे। समावेशी विकास से तात्पर्य सबके विकास से ही होता है। नारी के साथ किसान और समाज के अन्य वर्गों के हितों के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए। परतंत्र भारत के दौर में भी समाज में मौजूद विसंगतियों को दूर करने के लिए उन्होंने यथा संभव प्रयास किए। उनकी यश गाथा का गुणगान आज भी जहानाबाद जिले के लोग श्रद्धा भाव से करते थे।

नैतिक मूल्यों में विशेष आस्था

रामविलास बाबू ने आजीवन नैतिक मूल्यों को विशेष तरजीह दी। राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी का दौर हो या स्वतंत्रता उपरांत समाजसेवा का दौर रामविलास बाबू के लिए नैतिक मानदंड सदैव महत्वपूर्ण रहे। आज के राजनीतिक नेतृत्व को रामविलास बाबू के नैतिक आदर्श बहुत कुछ सीख देते नजर आते हैं।

निजी हित की जगह राष्ट्र हित को सदैव वरीयता दी

स्वतंत्रता सेनानी रामविलास बाबू ने जिंदगी के हर दौर में निजी हित की जगह राष्ट्र हित को वरीयता दी। राष्ट्र के लिए वे यथासंभव योगदान देने में वह कभी पीछे नहीं रहे। गांव गांव में राष्ट्रीय चेतना के जागरण के संदर्भ में उनका योगदान अद्वितीय रहा। तिरंगा के प्रति उनका स्नेह और सम्मान इतना ज्यादा रहा कि गया के कलेक्ट्रेट पर तिरंगा फहराने के अदम्य साहस के समक्ष फिरंगी दहशत ने घुटने टेक दिए।

बेहद साधारण जीवन शैली

रामविलास बाबू समृद्ध राष्ट्र के सृजन के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करते रहे लेकिन उनकी जीवन शैली बेहद साधारण रहती थी। वे सादा जीवन उच्च विचार के प्रबल पक्षधर थे। उनकी सोच में कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की त्रिवेणी बहती रहती थी। कश्मीरियत से अभिप्राय कौमी एकता के प्रति सद्भावपूर्ण विचार से होता है।

कभी पद की लालसा नहीं रही

स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान की बात हो या स्वतंत्र भारत की रामविलास बाबू ने कभी पद को वरीयता नहीं दी। वो तो सदा मां भारती के लाडले बने रहे और अपने समर्पित प्रयासों से राष्ट्र की सेवा करते रहे। कभी उन्हें पद की लालसा नहीं रही। उनकी लालसा तो सिर्फ आम जन की सेवा और राष्ट्र की आराधना ही रही।

बेटर me, बेटर we, बेटर India, बेटर world की संकल्पना के सबल संपोषक

महान स्वतंत्रता सेनानी रामविलास बाबू की सोच बहुत बड़ी थी। उनका मानना था कि यदि मैं बेहतर होऊंगा तो हम बेहतर होंगे। हम बेहतर होंगे तो हमारा देश बेहतर होगा। हमारा देश बेहतर होगा तो हमारी दुनिया भी बेहतर होगी। इस महान सोच को धरातल पर लाने के लिए रामविलास बाबू ने आजीवन प्रयास किया। उनका यह सोच हमारी दुनिया के लिए एक शानदार सौगात ही है। इस सोच के अनुसरण से हम एक बहुत सुंदर खुशहाल दुनिया सृजित अवश्य कर सकते हैं।

1994 में अलविदा कह दिया मां भारती के इस सुपुत्र ने

जो भी धरती पर आया उसे एक दिन दुनिया छोड़ कर जाना होता है। रामविलास बाबू भी हमें छोड़ कर 7 सितंबर, 1994 को महाप्रयाण कर गए। लेकिन उन्होंने समृद्ध भारत का जो सपना देखा था, उसे पूरा करने के लिए शायद अभी बहुत कुछ करना बाकी है। समावेशी विकास और समृद्ध भारत को लक्षित हर प्रयास ही रामविलास बाबू के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

आज जबकि हमारा देश आजादी का अमृत उत्सव मनाने जा रहा है तो आवश्यक है कि स्वर्गीय रामविलास बाबू जैसे उन रणबांकुरो के त्याग और बलिदान को नमन किया जाए। रामविलास बाबू जैसे हजारों स्वतंत्रता सेनानियों का त्याग और महान योगदान ही है कि आज हम सुकून से सांस ले रहे हैं। स्वंत्रता सेनानियों को नमन, उनके कृतित्व का वंदन, हमें ऊर्जस्वित, प्रेरित और तरंगित करता रहेगा ताकि हम राष्ट्र और देश के सृजन अभियान में अपने प्रयासों की आहुति देते रहे।