सिस्टम में हुई गलतियों को देखकर अब ये मान लेना ही सही होगा कि हर बार सांसें बंद होने पर ही इंसान मृत नहीं होता. बल्कि, कई बार चलता-फिरता इंसान भी सरकारी कागजों में मृत घोषित कर दिया जाता है. देश ने पहले भी कई ऐसे सरकारी लापरवाही के मामले देखे हैं लेकिन ये ताजा मामला किसी एक व्यक्ति के जीवन से जुड़ा नहीं है 

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

ग्रेटर नोएडा। जिन्दा ब्यक्ति को जिन्दा साबित करने में लग जा रहे 15 माह हो भी क्यो न जब इसी प्रकार के लापरवाह अधिकारी कर्मचारी होंगे तो और क्या हो सकता है। जहाॅं प्रदेश की योगी सरकार सबका साथ सबका विकास का दंभ भर रही है। उसमें इस प्रकार की लापरवाही की हद देखिए बुजुर्ग उपजिलाधिकारी से लेकर जिलाधिकारी और समाज कल्याण विभाग के समक्ष जाकर अपने आप को जिंदा बताता है। मगर अधिकारी आश्वासन देकर हर बार टरका देते हैं। बुजुर्ग अपने आपको जिंदा साबित करने के लिए 15 माह तक विभाग में दफ्तर के चक्कर लगाता रहा है तब जाकर पेंशन चालू की जाती है। जी हाॅं यह मामला ग्रेटर नोएडा में दनकौर ब्लाक के महमूदपुर गुजरान गांव निवासी ब्रह्म सिंह(77) का है। जो बैंक जाते हैं और वहां पता चलता है कि उनको मृत घोषित कर दिया गया है।

उपजिलाधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक बुजुर्ग को अपनी चप्पल घसीटते बीत गये 15 माह


जिन्दा पीड़ित ब्रह्म सिंह ने बताया कि वह इधर-उधर काम करके किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। उम्र अधिक होने पर अब काम भी नहीं होता है। पांच साल से उसको पांच सौ रुपये हर महीने वृद्धा पेंशन मिलती थी। करीब डेढ़ साल पहले अचानक पेंशन आनी बंद हो गई।
पेंशन नहीं आने पर उसने विभाग से संपर्क किया। वहां से जानकारी मिली की उसके मृत होने की रिपोर्ट लेखपाल ने भेजी है। इस रिपोर्ट के बाद उसके मृत होने पर पेंशन बंद कर दिया है। बृध्द को खुद को जिन्दा साबित करने में 15 महीने तक विभाग के चक्कर लगाता रहा तो किसी तरह अधिकारियों ने जीवित समझा। तब अब जाकर तीन माह की पेंशन उनके खाते में आई है। बुजुर्ग ने बताया कि 15 महीने की बकाया पेंशन राशि के लिए लगातार जिला प्रशासन और समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर लगा रहा है। लेकिन वह उसे अभी नही मिल सकी हे। सर्वे के दौरान लेखपाल की रिपोर्ट मृत आने पर पेंशन के खाते को ब्लॉक कर दिया गया था। विभाग को व्यक्ति के जिंदा होने की सूचना पर उसको अनब्लॉक करके पेंशन शुरू करा दी है। इस तरह के केवल ग्रेटर नोएडा के ही नही उत्तर प्रदेश के बहुतायत जिलों के मामले है जिसमंे लेखपालों की लापरवाही के बदौलत जीवित ब्यक्ति भी कागज में मृत हो जा रहा है। आखिर इस लापरवाही की हद की क्या केवल सजा बृध्द को ही मिलनी चाहिए या फिर जो इसके सजा का वास्तविक पात्र हो उसे भी मिलनी चाहिए। इस बात को पूछने पर जिला समाज कल्याण अधिकारी ने बताया कि जांच की जा रही है दोषी के विरूध्द कार्यवाही की जायेगी।