प्रदूषण से मुक्ति का हक मांगती दुनिया
ʺʺबहुत हुई नादानियां ‚अब समझने का प्रयास करते है‚ जो दिया है प्रकृति ने हमे‚ उसका धन्यवाद करते है। ‘‘
खबरी नेशनल न्यूज नेटवर्क
पर्यावरण प्रदूषण के साथ मतदाता प्रदूषण में भी हो रही तेजी
चकिया‚चंदौली। प्रदेश में वर्तमान समय से मतदाता प्रदूषण और पर्यावरण प्रदूषण तेजी से बढ़ता जा रहे है। दिन-प्रतिदिन अवैध रूप से पेड़ों को काटा जा रहा है। यह सब मिलीभगत से ही संभव है। प्रदूषण को कम करने के लिए उद्योग शहर से बाहर लगाने चाहिए और इनसे निकलने वाले धुएं को नियंत्रित करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। शहरों को ग्रीन जोन बनाने के लिए वृहद रूप से पौधे लगाने के लिए वन विभाग और सामाजिक संगठनों को संयुक्त रूप से अभियान चलाना चाहिए। इसके लिए रोड डिवाइडरों और रोड के किनारों पर पौधे लगाए जाने चाहिए। घर-घर जाकर लोगों को पौधे वितरित किए जाने चाहिए। लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। यह कहना है राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व चंदौली जिले के इलेक्शन स्वीप आईकान डॉ परशुराम सिंह का।
बीता वर्ष साक्षी है जब असाधारण परिवर्तन देखने को मिला
श्री सिंह ने कहा कि देश में बीता वर्ष साक्षी है कि इस बार जलवायु में जो असाधारण परिवर्तन हुए, जैसे सावन की विदाई के बावजूद अक्तूबर में धारासार बारिश लौट आई और धान की पैदावार को कम कर दिया, किसानों की जिंदगी बिगाड़ दी। लगता है, अगर पर्यावरण प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को खत्म न किया जा सका तो इस सदी के आखिर में यह धरती धधकने लगेगी। इस पर रहना मुश्किल हो जाएगा।
पर्यावरण प्रदूषण के चलते ही थम गई थी देश की राजधानी में जिंदगी
पिछले दिनों पर्यावरण प्रदूषण की वजह से हर साल की तरह दिल्ली की जिंदगी रुक गई। स्कूल बंद हो गए। धुंध का प्रसार दिल्ली ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में फैल गया। लोगों का दम इस प्रकार घुटने लगा कि सुबह की सैर भी गुनाह लगने लगी। ऐसी हालत में इस आसन्न आपात मृत्यु से बचने के लिए एक ही रास्ता रह जाता है कि बिना कोई राजनीति किए, अपना दायित्व दूसरे पर धकेलने की चेष्टा किए बगैर पर्यावरण प्रदूषण का मुकाबला किया जाए, नहीं तो जैसा कि संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में चेतावनी दी है, हम नरक के हाईवे पर बढ़ रहे हैं। भारत सहित सभी देश इसको खत्म करने के लिए सहयोग करें या मरें।
दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वालों में चीन‚ अमेरिका और भारत
दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले चीन और अमेरिका से भी कहा जा रहा है कि वे कार्बन उत्सर्जन में कमी लाएं और सबके साथ मिलकर मानवता को नष्ट होने से बचाएं। भारत में पर्यावरण प्रदूषण ने ऐसे गुल खिलाए हैं कि हमारी फसलों की गुणवत्ता कम हो रही है।
गौरतलब है कि दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजर्न से धरती को धधका कर तबाही की तरफ ले जाने वाले देशों की सूची में सबसे ऊपर चीन है, जो पंद्रह गीगाटन का उत्सर्जन करता है। चीन अकेला भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ के सताईस देशों से ज्यादा उत्सर्जन करता है। इसलिए चीन क्या धरती को एक धधकते हुए नरक की ओर ले जाने का खलनायक भी बनेगा? भारत भी बेगुनाह नहीं, वह साढ़े तीन गीगाटन गैस उत्सर्जन करता है और तीसरे स्थान पर है।
जलवायु के स्तर ने इस तरह के अनिश्चित परिवर्तन कर दिए हैं कि आम लोगों का जीना दूभर हो गया है
भारत के बचाव में कहा जा सकता है कि हमारा देश आबादी अधिक होने से प्रति व्यक्ति केवल 2.4 टन उत्सर्जन करता है, जबकि दुनिया का औसत उत्सर्जन 6.3 टन प्रति व्यक्ति है। अमेरिका भी बड़ा गुनहगार है, क्योंकि वहां पंद्रह टन प्रति व्यक्ति औसत उत्सर्जन होता है, जो दुनिया में सबसे अधिक है। इसके बाद चीन और रूस आते हैं। तो क्या इन बड़े देशों पर यह दायित्व नहीं कि वे इस गैस उत्सर्जन को शून्य तक लेकर आएं?
2040 तक हर हाल में कोयले का इस्तेमाल खत्म कर दिया जाए
वही उन्संहोने कहा कि संकट कट कम नहीं है। यूएनईपी की गैस उत्सर्जन रिपोर्ट बताती है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन यों ही होता रहा तो इस सदी के आखिरी साल या 2100 में धरती का तापमान 2.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा, जबकि यह 1.50 डिग्री से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए, नहीं तो यह धरती रहने के काबिल नहीं रह जाएगी। इस समय भी जो जलवायु का स्तर हमारे सामने है, उसने इस तरह के अनिश्चित परिवर्तन कर दिए हैं कि आम लोगों का जीना दूभर हो गया है। गर्मी के दिनों में भयानक सर्दी पड़ती है।
सर्दी के दिनों में गर्मी हो जाती है। बारिश के दिनों में बारिश नहीं होती और जब बारिश का मौसम बीतता है तो धारासार बारिश होती है। कैसे रोकेंगे इसे? बड़े देशों ने वादा किया था कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए वे सौ अरब डालर का कोष बनाएंगे, लेकिन इस वादे को दस साल हो गए, पूरा नहीं हुआ। जर्मनी ने जोखिम वाले अट्ठावन देशों में जी-20 समूह के तौर पर इसीलिए पर्यावरण प्रदूषण से जूझने के लिए एक वैश्विक कवच की शुरुआत की थी। इसके लिए बीमा और आपदा सुरक्षा वित्त को मजबूत करने पर जोर दिया गया था। मगर इस दिशा में कदम बढ़ते नजर नहीं आ रहे।पर्यावरण प्रदूषण से बचने का मार्ग यही है कि 2040 तक हर हाल में कोयले का इस्तेमाल खत्म कर दिया जाए।
जिंदगी से रोमांस गायब होगा उसकी जगह चली आएगी एक अजब धुक–धुकी
श्री सिंह ने कहा कि अगर पर्यावरण प्रदूषण जलवायु में इसी प्रकार अनिश्चित और प्रलयंकर परिवर्तन लाता रहेगा, तो बाद में जीवन का कोई अर्थ नहीं रहेगा। प्रेम गीतों का कोई अर्थ नहीं रहेगा। जिंदगी से रोमांस गायब हो जाएगा। उसकी जगह चली आएगी एक अजब धुकधुकी, जो किसी भी समय इस अप्रत्याशित मौत से सहमी रहेगी। इस सहम से बचने के लिए जिंदगी को सहज ढंग से जीने के लिए आवश्यक है कि पर्यावरण प्रदूषण से जूझने की इस चुनौती का मुकाबला दृढ़ता के साथ किया जाए।
पाँच वर्ष में एक बार हमे मिलता है सरकार चुनने का मौका चाहे वह गाँव ‚नगर निकाय‚ या राज्य व देश की हो
चुनाव पांच सालों के बाद ही आते हैं। इन चुनावों का मकसद हम अपने गाँव ‚राज्य व देश के लिए अच्छे प्रतिनिधियों का चयन करना होता है ताकि नगर निकाय से लेकर देश में या राज्य में अच्छी सरकार का गठन किया जा सके। भारत में लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र में मतदान से हमें सरकार चुनने का मौका मिला है। लोगों को यह मौका बड़ी मुश्किलों के बाद मिला है।
किसी भी तरह के लालच में आकर वोट नहीं करना चाहिए
चुनाव में हर मतदाता को अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग जरूर करना चाहिए। मतदान में हर मतदाता को हर हाल में सभी को भाग लेना चाहिए। मतदान बहुत ही गंभीर विषय है। मतदाताओं को पूरी सोच विचार के बाद ही किसी प्रत्याशी को वोट देना चाहिए। किसी भी तरह के लालच में आकर वोट नहीं करना चाहिए।
ऐसे प्रत्याशी को ही वोट करे, जो अपने हलके के विकास के प्रति गंभीर हो
ऐसे प्रत्याशी को ही वोट करना चाहिए, जोकि अपने हलके के विकास के प्रति गंभीर हो। अपने हलके के लोगों के दुख सुख में शामिल होने वाला हो।नगरीय निकाय निर्वाचन में मतदाताओं की शत-प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जिले भर में मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।भारत में चुनावों का आयोजन भारतीय संविधान के तहत बनाये गये भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है। यह एक अच्छी तरह स्थापित परंपरा है कि एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोई भी अदालत चुनाव आयोग द्वारा परिणाम घोषित किये जाने तक किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
दो प्रमुख हक़ आये हमारे पास– पहला जीने का दूसरा मतदान का
1947 के पहले हम राजाओं के अधीन थे। राजाओं को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था और उन्हें अपनी प्रजा के जीवन/मृत्यु का हक़ प्राप्त था। ऐसा नहीं था कि सभी राजा लंपट या दुष्ट या धर्मांध थे तथापि राजा की इच्छा सर्वोपरि थी और हम उसे मानने के लिए बाध्य थे।
इस पृष्ठभूमि में हमारा संविधान आया। और बहुत सारी चीजों के साथ दो प्रमुख हक़ आये हमारे पास। पहला था जीने का हक़। सरकार को यह हक़ नहीं है कि वह बिना वजह हमें गिरफ्तार करें। यदि पुलिस हमें गिरफ्तार भी करें तो उन्हें 24 घँटों में हमे मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना पड़ता है। जिसमे या तो वह कोर्ट से हमारी हिरासत माँगे या फिर हमें आज़ाद करें।
दूसरा हक़ था वयस्क मतदान की पात्रता जो हमें अपने प्रतिनिधि चुनने की स्वतंत्रता देते है।
श्रीमती गाँधी ने आपातकाल के दौरान यही हक़ हमसे छीन लिए थे। यदि 1977 में जनता ने इंदिरा गाँधी को धूल नहीं चटाई होती तो वर्तमान में हमारे पास मतदान की पात्रता भी नहीं रहती।
जागरूकता के अभाव में निकालनी पडती है रैलिया‚करना पडता है मतदान का प्रचार
अब यदि अपने जीवन और अपने अधिकारों के प्रति भी हम उदासीन रहेंगे तो हम किसी और को हमारी दुर्दशा का उत्तरदायी नहीं मान सकते।हमारे भारत में या देश में 5 वर्ष में एक बार मतदान किया जाता है। कई लोग इसको बेकार समझते हैं और इसके चलते सरकार को हर बार मतदान जागरूकता अभियान चलाना पड़ता है। कई जगह रैली निकाली जाती है और मतदान का प्रचार किया जाता है।
भारत के भविष्य के लिए देखा जाय तो यह मानना है कि अगर
वो बट गया धर्म में किन्तु देश धर्म निरपेक्ष चाहिए। वो बेच आया वोट अपना ‚ उसे नेता ईमानदार चाहिए।
और अन्त में यह कहा जा सकता है कि अगर भारत वर्ष में –
One Nation‚one Constitution, One Regulation, One Election, India's fortune will be better.