वेद के अनुसार आचरण करना ही धर्म है, और उसके विपरीत आचरण करना ही अधर्म

अनिल दूबे की रिर्पोट

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

बक्सर। जिले के अद्योगिक थाना क्षेत्र के रामोबरीया गांव में चल रही भागवत कथा श्रवण करा रहे स्वामी मधुसुदनाचार्य महराज ने कहा कि सनातन धर्म सृष्टि के आरंभ से पहले से हैं। जो इससे पहले भी सृष्टि में था। यदि इस सृष्टि में इसका समय देखें तो भी जब से दुनिया में मनुष्य ने प्रथम बार आँखें खोली तब से अब तक और जब तक यह संसार रहेगा तब तक सनातन धर्म ही शेष रहेगा।

कितने भी मत/पंथ/संप्रदाय खड़े होंगे फिर भी सनातन वैदिक धर्म रहेगा हमेशा

कितने भी जन्म होंगे, कितने भी मत/पंथ/संप्रदाय खड़े होंगे फिर भी सनातन वैदिक धर्म हमेशा रहेगा। 
सनातन धर्म की कभी उत्पत्ति नहीं हुई क्योंकि यह अनादि है और जो अनादि ईश्वरीय धर्म हैं वह उत्पन्न नहीं होता। और जो उत्पन्न नहीं होता वह नष्ट भी नहीं होता।

जो उत्पन्न होता है वह नष्ट हो जाता है। इसलिए सनातन धर्म ईश्वरीय नियमों का संग्रह है जिन्हें कभी समाप्त नहीं किया जा सकता।

सनातन धर्म कोई रिलीजन ‚ संप्रदाय ‚ मत, पंथ, या मजहब नहीं

सनातन धर्म कोई रिलीजन नहीं है। संप्रदाय भी नहीं है। मत, पंथ, या मजहब भी नहीं है। यह सार्वभौमिक सत्य नियम है। विश्व का सबसे पुराना धर्म ‘वैदिक धर्म’ ही है। इसे ही सनातन धर्म कहते हैं।
महराज जी ने बताया कि वेद के अनुसार आचरण करना ही धर्म है, और उसके विपरीत आचरण करना ही अधर्म है। क्योंकि वेद ही इश्वरीय ज्ञान है। जो सृष्टि के आदि मे मिला वैदिक धर्म है, वैदिक धर्म के अलावा सभी मत या विचार मनुष्य के स्वयं की कल्पना से किये गए मिश्रित ज्ञान का पुस्तक है। जैसे ईसाई मत, जैन मत, बौद्ध मत, इस्लाम, सिख मत इत्यादि। धर्म सबको पक्षपात रहित न्याय पूर्वक सत्य ग्रहण करना और असत्य का सर्वथा परित्याग सिखाता है।

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