यूपी में OBC आरक्षण के बिना निकाय चुनाव कराने के आदेश पर घमासान, सीएम योगी से लेकर अखिलेश यादव और मायावती तक किसने क्या कहा?

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। हाईकोर्ट के फैसले के बाद योगी सरकार की ओर से पिछड़ों का आरक्षण तय करने के बाद ही UP NIKAY CHUNAV कराने के निर्णय से साफ हो गया है कि इसमें चार से पॉच माह का वक्त लगेगा। सरकार को आयोग का गठन करना होगा और आयोग की निगरानी में ही अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की प्रक्रिया अपनानी होगी। उधर, फरवरी में सरकार ग्लोबल इंवेस्टर समिट करा रही है। फरवरी-मार्च में यूपी समेत विभिन्न बोर्डों की परीक्षाएं भी होनी हैं। ऐसे में सरकार के लिए अप्रैल या मई से पहले UP NIKAY CHUNAV कराना संभव नहीं है।

नगर विकास विभाग की लचर तैयारी से चुनाव प्रक्रिया देर से शुरू हुई


2017 में नगर UP NIKAY CHUNAV के लिए 27 अक्तूबर को अधिसूचना जारी की गई थी और तीन चरणों में संपन्न हुए चुनाव की मतगणना 1 दिसंबर को हुआ था। इस लिहाज से इस वर्ष भी समय पर चुनाव कराने केलिए सरकार को अक्तूबर में ही अधिसूचना जारी करनी थी, लेकिन नगर विकास विभाग की लचर तैयारी से चुनाव प्रक्रिया देर से शुरू हुई। वार्डों और सीटों के आरक्षण दिसंबर में हुआ। पांच दिसंबर को मेयर और अध्यक्ष की सीटों का प्रस्तावित आरक्षण जारी किया गया। नगर विकास विभाग यह मान कर चल रहा था कि 14 या 15 दिसंबर तक वह चुनाव आयोग को कार्यक्रम सौंप देगा, लेकिन मामला हाईकोर्ट में फंस गया।

आखिर क्या रही चूक की वजह ?

रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण की अधिसूचना जारी करने को लेकर कई स्तरों पर हुई चूक हुई। सूत्रों के मुताबिक हर बार UP NIKAY CHUNAV में स्थानीय निकाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन इस बार रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण तय करने तक की प्रक्रिया से निदेशालय को दूर रखा गया, जो बड़ी चूक है। इस काम में अनुभवी के स्थान पर नए अधिकारियों को लगा दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2010 में दिए उस फैसले का भी नहीं रखा ध्यान

नगर विकास विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2010 में दिए उस फैसले का भी ध्यान नहीं रखा, जिसमें स्पष्ट निर्देश थे कि चुनाव प्रक्रिया शुरू करने से पहले आयोग का गठन कर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए वार्डों और सीटों का आरक्षण किया जाए। विभाग ने सिर्फ नए नगर निकायों में रैपिड सर्वे कराते हुए पिछड़ों की गिनती कराई और आरक्षण तय कर दिया। पुराने निकायों में रैपिड सर्वे ही नहीं कराया।

खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहे जिम्मेदार अधिकारी


सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले से हुई किरकिरी से सरकार नाराज है। इसका खामियाजा जिम्मेदार अधिकारियों को उठाना पड़ सकता है। चूक के लिए जल्द ही अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी। प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों पर कार्रवाई तय मानी जा रही है। उधर, इसकी भनक लगते ही अपनों को बचाने के लिए उच्च स्तर पर लीपापोती शुरू हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट में भी आसान नहीं है सरकार की राह

नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद अब सरकार सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करेगी। विधिक विशेषज्ञों का मानना है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की लाइन पर ही अपना फैसला सुनाया है इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में भी सरकार के लिए राह आसान नहीं होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने यदि अपना ताजा फैसला बदला तब ही सरकार को राहत मिल सकती है।

UP NIKAY CHUNAV को लेकर हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद सियासी घमासान भी शुरू किसने क्या कहा?

अखिलेश यादव ने कहा कि BJP ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है, कल BJP दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी

इस मामले पर विपक्ष हमलावर है. विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने कहा कि आज UP NIKAY CHUNAV में आरक्षण विरोधी बीजेपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है। आज बीजेपी ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है, कल बीजेपी बाबा साहब द्वारा दिए गये दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी. आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछडों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील है।

गलती की सजा OBC समाज BJP को जरूर देगा –मायावती

बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि UP NIKAY CHUNAV में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी माननीय हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में बीजेपी और उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच व मानसिकता को प्रकट करता है. यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अनुपालन करते हुए ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाना था, जो सही से नहीं हुआ. इस गलती की सजा ओबीसी समाज बीजेपी को जरूर देगा।

प्रत्येक समुदाय व वर्ग के अधिकारों के संरक्षण हेतु भाजपा प्रतिबद्ध –भूपेंद्र चौधरी

उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में विधि सम्मत तरीके से प्रत्येक वर्ग और समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए इसे समय पर संपन्न कराना हमारी शीर्ष प्राथमिकता है. प्रत्येक समुदाय व वर्ग के अधिकारों के संरक्षण हेतु भाजपा प्रतिबद्ध है. किसी के साथ कोई भी अन्याय नहीं होगा.

अपना दल ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा

इसको लेकर अपना दल (एस) ने कहा है कि OBC आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है. हम इस संदर्भ में माननीय लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का अध्ययन कर रहे हैं. जरूरत पड़ी तो अपना दल ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।

क्या है हाईकोर्ट का आदेश?

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए, निकाय चुनावों के लिए 5 दिसम्बर को जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकार को निकाय चुनावों को बिना ओबीसी आरक्षण के ही कराने के आदेश दिए हैं। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर दाखिल 93 याचिकाओं पर एक साथ पारित किया।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा क्या है देखिए यहॉ–

1. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शहरी विकास विभाग में धारा 9-ए(5)(3) के तहत 5 दिसंबर 2022 को जारी अधिसूचना निरस्त की जाती है। इस अधिसूचना के रद्द हो जाने से हाल ही में जो सीटों को लेकर बदलाव सामने आया था, वो वापस हो गया है।

2 सरकार की तरफ से 12 दिसंबर 2022 को जो शासनादेश जारी किया गया था कि निकायों जहां कार्यकाल पूरा हो रहा है, वहां कार्यपालक अधिकारी और वरिष्ठतम अधिकारी के माध्यम से नगर पालिकाओं के खाते चलेंगे, उसे निरस्त कर दिया गया है।

3. हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि बिना ट्रिपल टेस्ट/शर्तों के ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता। दूसरा हाईकोर्ट ने ये भी कहा है कि चूंकि तय फॉर्मूले यानी ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को पूरा करने में कई महीने लग सकते हैं, ऐसे में चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के ही तुरंत कराए जाएं। मतलब ये कि हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद अब जो यूपी में नगर निकाय चुनाव होंगे, उसमें एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर कोई भी चुनाव लड़ सकता है। ये सीटें सामान्य/खुली श्रेणी के लिए अधिसूचित की जाएंगी।

4. हाईकोर्ट ने अपने इस आदेश में ये भी साफ कर दिया है कि अगर नगर पालिका निकाय का कार्यकाल समाप्त हो जाता है तो चुनाव होने और निकाय के गठन तक तमाम मामलों को एक कमेटी देखेगी, जो तीन सदस्यीय होगी और इसकी अध्यक्षता जिला मजिस्ट्रेट करेंगे। सदस्यों में कार्यकारी अधिकारी/मुख्य कार्यकारी अधिकारी/नगर आयुक्त शामिल होंगे। वहीं इस कमेटी में तीसरा सदस्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित होगा, जो जिले स्तर का अफसर होगा। साथ ही ये भी सनद रहे कि ये कमेटी कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती, सिर्फ रोजाना के कार्यों का ही निर्वहन करेगी।

5. हाईकोर्ट ने कहा है कि हम समझते हैं कि आयोग के लिए ये एक भारी और समय लेने वाला काम है लेकिन भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक जनादेश के कारण निर्वाचित नगर निकायों के गठन में देरी नहीं की जा सकती है। समाज के शासन के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव जल्द से जल्द हों, हम इंतजार नहीं कर सकते।

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