शरीर में कहीं भी हो गांठ तो करायें जांच, हो सकती है टीबी

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

चंदौली। शरीर में अगर कहीं गांठ महसूस हो तो उसमें टीबी की संभावना हो सकती है। यह गांठ पेट,गले, लीवर और पैर में भी हो सकती है। गांठ वाली टीबी में खांसी या बलगम की शिकायत नहीं होती है जिस वजह से मरीज को टीबी होने का आसानी से पता नहीं चलता – यह कहना है जिला क्षय अधिकारी डॉ. राजेश कुमार का।

उन्होंने बताया टीबी दो प्रकार की होती है – पल्मोनरी टीबी जो फेफड़ों को प्रभावित करती है। और दूसरी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते है जिसमें शरीर के किसी हिस्से में गांठ हो जाती है।

ऐसे फैलता है फेफड़ों में संक्रमणइतने दिनों बाद होती है जानकारी

उन्होंने बताया कि फेफड़ों में संक्रमण, दो सप्ताह से अधिक खांसी , बुखार, बलगम से खून आना, सांस फूलना, सीने में दर्द, कमजोरी, थकान, वजन में अचानक कमी होना टीबी के सामान्य लक्षण हैं , लेकिन (सिस्ट) गांठ वाली टीबी जिनमें मरीज के पेट, गले या फेफड़े में गांठ हो जाती है वह लिम्फैडेनाइटिस रोग पैदा करने वाले एक जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति को बार-बार गांठ होती है।

गाँठ वाली टी वी की कहानी भुक्त्भोगी की जबानी

केस 1- सकलडीहा ब्लॉक की रोली कुमारी (17 वर्ष ) को सीने में गिल्टी महसूस होती थी। मई 2020 में निजी चिकित्सक से दवा शुरू की लेकिन स्वास्थ्य में सुधार होने की बजाय हालत बिगड़ती गयी। उन्हें बराबर बुखार रहता था। दिन में तीन-चार बार उल्टी भी होती थी। हालत ज्यादा खराब होने पर उन्हें समीप के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी) ले जाया गया। जांच हुई तो पता चला कि उन्हें टीबी है। 21 अक्टूबर 2022 से टीबी की दवा शुरू की। अब उनकी हालत में सुधार है। रोली बताती हैं कि “दवा के चलते सुधरी सेहत का नतीजा है कि अब वजन 37 से बढ़कर 45 किलोग्राम हो चुका है। डाक्टर ने जुलार्इ 2023 तक बिना नागा किये दवा खाने के लिए कहा है। इसके साथ ही बीच-बीच में जांच कराने की भी सलाह दी है।“
केस 2- नौगढ के बसली गांव निवासी सिद्धार्थ कुमार (15 वर्ष) को लगातार खांसी के चलते जनवरी 2011 में टीबी की पुष्टि हुई थी जिसका छह माह तक इलाज चलने के बाद वह ठीक हो गये । इसके कुछ ही दिनों बाद जुलाई 2022 में उनके पेट में दर्द होने लगा। दर्द इतना तेज होता था कि बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। सिद्धार्थ ने बताया “मैंने कई निजी चिकित्सालयों में उपचार कराया जिसमें दो लाख रुपये से ज्यादा खर्च हो गये। इलाज के लिए घर वालों ने पहले ही कई लोगों से पैसे उधार लिए थे और घर की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण इलाज छोड़ना पड़ा। तबीयत ज्यदा खराब होने पर घर के नजदीक स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाया गया। अल्ट्रासाउण्ड व अन्य जांच आसानी से हो गई और जांच में पता चला कि पेट में 18 एमएम की गांठ है, जिसमें टीबी है। 26 अगस्त 2022 से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से टीबी का इलाज शुरू किया। उस समय मेरा वजन 35 किलो था और आज 48 किलो का हूँ। आज एकदम ठीक हूँ। अब न तो उल्टी हो रही है और न बुखार है। दवा,जांच और इलाज में एक रुपये भी खर्चा नहीं हुआ। हर माह 500 रुपये मेरे खाते में आ रहें है, जिससे दूध,फल, पोष्टिक आहार ले रहा हूं।“

दोनों ही तरह की टीबी की जाँच और उपचार की सुविधा जिला एवं ब्लॉक स्तरीय प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध

दोनों ही तरह की टीबी की जाँच और उपचार की सुविधा जिला एवं ब्लॉक स्तरीय प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध है। अब ब्लॉक स्तर पर मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी और एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट (एक्सडीआर) एवं एक्स्ट्रा पल्मोनरी (गांठ) लिम्फ नोड टीबी के गंभीर मरीजों की जांच एवं उपचार की सुविधा भी दी जा रही है।

1490 मरीज टीबी के इलाज पर रखे गए ‚जिनके बैंक खातों में भेजे गये करीब 65 लाख रुपये निक्षय पोषण योजना के तहत

जिला समन्वयक पूजा राय ने बताया – जनपद में जनवरी 2022 से अब तक कुल 1490 मरीज टीबी के इलाज पर रखे गए हैंजिनके बैंक खातों में करीब 65 लाख रुपये निक्षय पोषण योजना के तहत भेजे गये हैं। उन्होंने बताया फेफड़े या लिम्फ नोड टीबी का इलाज एक जैसा ही होता है। इसमें मरीज को छह या 12 महीना इलाज पर रखा जाता है। कोई मरीज इलाज बीच में या अधूरा छोड़ देता है तो उसे दोबारा टीबी होने का खतरा बना रहता है।

खानपान में विशेष ध्यान देना भी टीबी उपचार का अहम हिस्सा

डीटीओ ने कहा कि खानपान में विशेष ध्यान देना भी टीबी उपचार का अहम हिस्सा है। मरीज को इलाज के दौरान पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। ब्रोकली, गाजर, टमाटर, शकरकंद जैसी सब्जियां खूब खानी चाहिए। इन सब्जियों में एंटीआक्सिडेंट्स भरपूर होते हैं। टीबी से पीड़ित व्यक्ति को फलों में अमरूद,सेब,संतरा,नींबू, आंवला देना चाहिए। विटामिन ए,ई और विटामिन सी भी इसमें काफी लाभकारी होता है जिससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। मरीज को मास्क लगाना बेहद जरूरी है,लेकिन एक ही मास्क का प्रयोग पूरा दिन न करें। ठंडी चीजों से परहेज करें। गुनगुना पानी का सेवन करना फायदेमंद होता है।

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