भारत सरकार के आजादी के अमृत महोत्सव अनशन हीरोज इतिहास में राष्ट्र सृजन अभियान के संस्थापक एवं सृजन क्रांति के प्रेणेता महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू रामविलास सिंह जी का नाम हुआ दर्ज।
खबरी पोस्ट नेशनल नेटवर्क
चंदौली। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा भारत सरकार के आजादी के अमृत महोत्सव अनशन हीरोज इतिहास में राष्ट्र सृजन अभियान एवं सृजन क्रांति के जनक भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी किसान नेता गरीब मजदूरों के मसीहा ‚समाज सुधारक‚ शिक्षाविद‚ राष्ट्र रत्न जननायक बाबू रामविलास सिंह जी का इतिहास हुआ दर्ज । उक्त बाते राष्ट्रसृजन अभियान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व बृक्ष बंधु डॉ परशुराम सिंह ने खबरी से एक विशेष भेट वार्ता के दौरान बताई। उन्होने बताया कि देश के महान स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता बाबू रामविलास सिंह जी स्वतंत्रता आंदोलन के महती सभा में लड़ाकूओ को संबोधित करते हुए कहते थे कि देश का मजलूम गरीब नहीं उठा तो देश पीछे छूट जाएगा और यदि उठ खड़ा हुआ तो भारत फिर विश्व गुरु बन जाएगा। वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने कहा था कि हिंदू घटेगा अथवा बटेगा तो राष्ट्र टूट जाएगा अतः हिंदुओं को जगना एवं संगठित होना जरूरी है । पंडित लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के संस्थापक ने कहा था कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है इसे मैं लेकर ही रहूंगा।
मां भारती के अमर सपूत के द्वारा कही गई वचनों को पूरा करने का अवसर– डॉ पी०के०सिन्हा
राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ प्रदुमन कुमार सिन्हा ने दूरभाष पर बताया कि आज भारत के 140 करोड़ लोगों को मां भारती के अमर सपूत के द्वारा कही गई वचनों को पूरा करने का अवसर है। उन्होने कहा कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचार, विजन, मिशन एवं सोच का ही प्रतिफल है कि भारत आज अपने आजादी के 75 वी वर्षगांठ के आजादी का अमृत महोत्सव पावन अवसर पर देश के भूले बिसरे अनशन हीरोज को स्मरण कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को देश दुनिया को बतलाने में सफल हुआ है।
बैटर मी, बैटर बी, बैटर भारत, बैटर वर्ल्ड के रास्ते पर चल कर ही विश्व में आयेगी शांति
वही आर एस ए के प्रमुख श्री सिन्हा ने बताया कि राष्ट्र सृजन अभियान परिवार भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्र सृजन अभियान के संस्थापक एवं सज्जन क्रांति के प्रेरणा दादा श्री बापू रामविलास सिंह जी के इतिहास को भारत के अनशन हीरोज के इतिहास के साथ दर्ज करने के लिए आभार एवं बधाई पत्र लिख कर भेजेगा और आर एस ए प्रमुख डॉ प्रदुम्न कुमार सिन्हा ने कहा कि दादा श्री बाबू रामविलास सिंह जी के मूल मंत्र बैटर मी, बैटर बी, बैटर भारत, बैटर वर्ल्ड के रास्ते पर चल कर ही विश्व में शांति आएगी।
आइए जानते है महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू रामविलास सिंह जिन्होने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बिहार राज्य के गया सामहरणालय से अंग्रेजी ध्वज यूनियन जैक उतारकर भारतीय तिरंगा फहराया था
महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू रामविलास सिंह ब्रिटीश हुकूमत के दौरान बिहार राज्य के गया सामहरणालय से अंग्रेजी ध्वज यूनियन जैक उतारकर भारतीय तिरंगा फहराये थे। जहां वे अंग्रेजो के गोलियों से घायल हो गए थे बाबू रामविलास सिंह जी के द्वारा यूनियन जैक आज भी राष्ट्र सृजन अभियान के पास अमूल्य निधि के रूप में सुरक्षित है । बाबू रामविलास सिंह जी का यह कालखंड उनको जीवन का उत्कर्ष काल था बाबू रामविलास सिंह जी ने अपने जीवन में कभी भी पद मर्यादा की चाह नहीं की। वे सदैव अपना जीवन भारत माता की रक्षा के लिए समर्पित सर्वस्व कर गए। बाबू रामविलास सिंह जी ने पूज्य बापू महात्मा गांधी, सरदार पटेल, राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, स्वामी सहजानंद सरस्वती डॉ श्री कृष्ण सिन्हा जैसे अनेकों महापुरुषों के द्वारा चलाए गए आंदोलन के केंद्र में रहकर बढ़-चढ़कर सदैव हिस्सा लेते रहे बाबू रामविलास सिंह जी ने अपने ही समाज के जमीदारों के विरुद्ध बिगुल फूककर खेतिहर किसानों को जमीदारो के चंगुल से मुक्त कराया था । उन्होने जो पाठ पढ़ाया था दूसरों के सुख में खुश होना एवं दूसरों के दुख में दुखी होना वह हम सभी भारत वासियों के लिए समाज को मूल धारा में लाने के लिए आज भी प्रासंगिक है इस कार्य के लिए राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ परशुराम सिंह, राष्ट्रीय महासचिव ललितेश्वर कुमार, एवं राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी के एन राय ने मोदी को पत्र लिखकर आभार जताया है।
आइए जानते है जन्म भूमी और कर्मभूमि का इतिहास ‚इकलौते बेटे थे बाबू रामविलाश जी
बाबू रामविलास सिंह का जन्म एक किसान परिवार में 10 फरवरी, 1894 को हुआ था। बिहार के जहानाबाद जिले के मखदुमपुर रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित खलकोचक बाबू रामविलास सिंह जी की जन्मभूमि है। पिता साधुशरण सिंह संयुक्त परिवार में आठ भाइयों के बीच सबसे बड़े थे। इनके इकलौते पुत्र के रूप में जन्मे रामविलास सिंह का बचपन लाड़-प्यार में बीता। किसी शिक्षा प्रेमी किसान के घर पर जाकर इन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी।
स्वामी सहजानन्द सरस्वती के प्रताप के प्रभाव में आकर किसान आंदोलन एवं समाजसेवा में कूद पड़े
उस जमाने में स्वामी सहजानन्द सरस्वती के प्रताप के प्रभाव में आकर किसान आंदोलन एवं समाजसेवा में कूद पड़े। यह काल देश-विदेश में चल रहे संघर्षों, आंदोलनों और मुद्दों का काल था। सामाजिक स्तर पर ये गांधीजी, सहजानन्द सरस्वती तथा बाद में विनोबा भावे और जयप्रकाश में राष्ट्रीय जागरण का प्रतिरूप पाने लगे। वे आजीवन राष्ट्रवादी समाजवादी तत्वों के सान्निध्य में रहे। मखदुमपुर, जहानाबाद और उसके आस-पास में ये शिक्षा तथा महिला सशक्तिकरण के लिए गांधीजी के नेतृत्व में कार्य कर रहे थे तो वहीं स्वामी सहजानन्द के नेतृत्व में काश्त आन्दोलन कर रहे थे और कभी यमुना (स्थानीय नदी) को बांधकर खेतों के लिए पानी का प्रबंध कर रहे थे। राष्ट्रीय नेताओं के त्याग, तप और बलिदान बाबू रामविलास सिंह जी को गांधीवादी, ईमानदार, देशभक्त और समाज-निर्मात्री बनाया जिसने दलितोत्थान को अपने जीवन का एकमात्र मकसद बनाया हमेशा खादी वस्त्र धारण करते थे। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान अनेक संगी-साथी के साथ एक गांव से दूसरे गांव, एक शहर से दूसरे शहर में स्कूलों, कॉलेजों, आश्रमों तथा धर्मशालाओं में रहकर सक्रिय रहे।
1923 में लगान का विरोध करनेवाला आंदोलन बाबू रामविलाश सिंह जी के नेतृत्व में हुआ
असहयोग आन्दोलन के बाद 1923 में लगान का विरोध करनेवाला आंदोलन इनके नेतृत्व में हुआ। इस कारण इन्होंने एक अलग पहचान बनाकर अनवरत लड़ाई जारी रखी। आजादी की लड़ाई में पहली बार 1932 में ये दो माह के लिए जेल गए। गया के अनुमंडल अधिकारी ने अंग्रेजों के खिलाफत के कारण देशद्रोह के जुर्म में सश्रम दो माह की कारावास की सजा दी, 22 फरवरी से 31 अप्रैल, 1932 तक ये केन्द्रीय कारावास, गया में रहे। अंग्रेजों ने इन्हें पुनः खिलाफत आन्दोलन के अंतर्गत देशद्रोह के जुर्म में कुछ ही माह बाद 26 जनवरी, 1933 को गिरफ्तार कर लिया तथा केन्द्रीय कारावास, गया में भेज दिया। इन्हें छह माह की सजा हुई। वे जेल में रहकर भी स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित कर रहे थे तो कुछ ही दिनों बाद इन्हें पटना के कारागार में भेज दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद वे और भी तीव्र गति से स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गये ।
समाज सेवा के कार्य को आजीवन किया पूरा
शिक्षा संस्थाओं के रूप में प्राथमिक विद्यालय खलकोचक मखदुमपुर, उच्च विद्यालयों, संस्कृत महाविद्यालय एवं अनेक महाविद्यालयों की स्थापना में सक्रिय सहयोग किया। आजादी के दो दशक बाद उन्होंने किसानों और स्कूलों के बीच अपने को समेट लिया। 15 अगस्त, 1972 तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों इन्हें भी ताम्रपत्र भेंट कर एवं सूता का माला पहनाकर, गया (बिहार) की महत्ती सभा में सम्मानित किया गया। बाबू रामविलास सिंह द्वारा समाजसेवा का जो कार्य शुरु किया गया था उसका निर्वाह उन्होंने जीवन पर्यंत किया। 100 वर्ष की शतायु आयु में 7 सितम्बर, 1994 को एक एम्बुलेंस में, गया के केन्द्रीय कारावास के पास इनकी मृत्यु हो गई।