ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम, नर-नारायण, हयग्रीव का अवतार हुआ था. इसी दिन से बद्रीनाथ के कपाट भी खुलते हैं और इसी दिन वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. अक्षय तृतीया पर मूल्यवान वस्तुओं की खरीदारी की जाती है. इस दिन सोना खरीदना सबसे शुभ होता है. इससे धन की प्राप्ति भी होती और दान का अक्षय बना रहता है. ये साल का स्वयंसिद्धि मुहूर्त है. इस दिन बिनी किसी शुभ मुहूर्त के शुभ काम हो सकते हैं.

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वेव धर्म डेस्क

इस बार अक्षय तृतीया का त्योहार 22 अप्रैल यानी आज मनाया जा रहा है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन किए गए शुभ एवं धार्मिक कार्यों के अक्षय फल मिलते हैं. इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अपनी उच्च राशि वृषभ में होते हैं, इसलिए दोनों की सम्मिलित कृपा का फल अक्षय हो जाता है. अक्षय का अर्थ होता है- अक्षय का अर्थ होता है- जिसका क्षय ना हो. माना जाता है कि इस तिथि को किए हुए कार्यों के परिणाम का क्षय नहीं होता है।

अक्षय तृतीया 22 या 23 अप्रैल 2023 कब ? करें कनफयूजन दूर खबरी के साथ

  • वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 22 अप्रैल 2023 को सुबह 07.49 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 23 अप्रैल 2023 को सुबह 07.47 मिनट तक रहेगी.
  • पंचांग के अनुसार 22 अप्रैल को तृतीया तिथि अधिक समय तक रहेगी, पूजा और खरीदारी का मुहूर्त भी इसी दिन प्राप्त हो रहा है. ऐसे में 22 अप्रैल को लक्ष्मी-नारायण की पूजा और मूल्यवान चीजों की खरीदारी शुभ रहेगी. वहीं अक्षय तृतीया पर स्नान का विशेष महत्व है, ऐसे में 23 अप्रैल को ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदी में स्नान करना पुण्यकारी रहेगा.

ये है महापुरूष चिरंजीवी

अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात: अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि, इनका रोज सुबह जाप करना चाहिए। इनके जाप से भक्त को निरोगी शरीर और लंबी आयु मिलती है।

अश्वत्थामा- गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वथामा भी चिरंजीवी है। शास्त्रों में अश्वत्थामा को भी अमर बताया गया है।
राजा बलि- भक्त प्रहलाद के वंशज हैं राजा बलि।भगवान विष्णु के भक्त राजा बलि भगवान वामन को अपना सबकुछ दान कर महादानी के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया था।
हनुमानजी- त्रेता युग में श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी को माता सीता ने अजर-अमर होने का वरदान दिया था। इसी वजह से हनुमानजी भी चिरंजीवी माने हैं।
ऋषि मार्कंडेय- भगवान शिव के परमभक्त ऋषि मार्कंडेय अल्पायु थे, लेकिन उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र सिद्ध किया और वे चिरंजीवी बन गए।
वेद व्यास- वेद व्यास चारों वेदों ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का संपादन और 18 पुराणों के रचनाकार हैं।  
परशुराम- भगवान विष्णु के दशावतारों में एक हैं परशुराम। परशुरामजी ने पृथ्वी से 21 बार अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया गया था।
विभीषण– रावण के छोटे भाई और श्रीराम के भक्त विभीषण भी चिरंजीवी हैं।
कृपाचार्य- महाभारत काल में युद्ध नीति में कुशल होने के साथ ही परम तपस्वी ऋषि है। कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु है।

अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त –

  • 22 अप्रैल 2023, शनिवार
  • अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त – 07:49 AM से 12:20 PM बजे तक
  • अवधि – 4 घण्टे 31 मिनट्स
  • तृतीया तिथि प्रारंभ – 22 अप्रैल 2023, को 07:49 AM बजे
  • तृतीया तिथि समाप्त – 23 अप्रैल 2023, को 07:47 AM बजे

अक्षय तृतीया पूजा विधि –

  • इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु भगवान की पूजा विशेष रूप से की जाती है.
  • इस दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान कर के साफ कपड़े पहनें.
  • मंदिर को साफ करें, इसके बाद मंदिर में सभी भगवानों को गंगाजल अर्पित करें.
  • फिर फूल और प्रसाद अर्पित करें. मां लक्ष्मी को लाल रंग का फूल चढ़ाएं और भगवान विष्णु को कमल और चमेली का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है.
  • भोग में पीले रंग की मिठाई और खीर का भोग लगाएं.
  • इसके बाद दीपक जलाएं और आरती करें.
  • भगवान से घर में सुख-समृद्धि की कामना करें और हाथ जोड़कर आर्शीवाद लें.

आर्थिक तंगी से है परेशान तो कर ले अक्षय तृतीया को ये काम

अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं और निजात पाना चाहते हैं, तो अक्षय तृतीया पर घर में श्रीयंत्र स्थापित करें। आप चाहे तो पूजा गृह में भी स्थापित कर सकते हैं। इसके बाद विधि विधान से श्रीयंत्र की पूजा उपासना करें। अक्षय तृतीया के दिन धन प्राप्ति आदि के लिए लोग कई टोटके और उपाय आजमाते हैं। हम यहां कुछ उपाय बता रहे हैं

  • -अगर आप पुण्य कमाना चाहते हैं, तो अक्षय तृतीया के दिन दान जरूर करें। इस दिन अन्न, जल, अर्थ आदि चीजों का दान कर सकते हैं। खासकर, अक्षय तृतीया पर जौ का दान करना उत्तम होता है। इसके अलावा, गुड़, चीनी, फल, सब्जी, शीतल पेय आदि चीजों का भी दान कर सकते हैं।
  • -अक्षय तृतीया के दिन शंख खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन दक्षिणावर्ती शंख खरीदें। वहीं, पूजा के समय शंख जरूर बजाएं। इस उपाय को करने से घर में व्याप्त नेगेटिव एनर्जी दूर हो जाती है।
  • -अक्षय तृतीया के दिन सोने-चांदी की चीजें खरीदने का विधान है। आप भी बरकत चाहते हैं इस दिन सोने या चांदी की लक्ष्मी की चरण पादुका लाकर घर में रखें और इसकी नियमित पूजा करें।
  • -अक्षय तृतीया के दिन 11 कौड़ियों को लाल कपडे में बांधकर पूजा स्थान में रखने से देवी लक्ष्मी आकर्षित होती हैं। देवी लक्ष्मी के समान ही कौड़ियां भी समुद्र से उत्पन्न हुई हैं।
  • -अक्षय तृतीया के दिन केसर और हल्दी से देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।
  • -अक्षय तृतीया के दिन घर के पूजा स्थल पर एकाक्षी नारियल स्थापित करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
  • -इस दिन पितरों की प्रसन्नता और उनकी कृपा प्राप्ति के लिए जल कलश, पंखा, खड़ाऊं, छाता, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा, फल, शक्कर, घी आदि ब्राह्मण को दान करने चाहिए।
  • -इस दिन गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी, नमक, शहद और कन्या यह बारह दाक्लिकन का महत्व है।
  • -सेवक को दिया गया दान एक चौथाई फल देता है।
  • -कन्या दान इन सभी दानों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है इसीलिए इस दिन लोग शादी विवाह का विशेष आयोजन करते हैं।

सोना खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त

  • 22 अप्रैल को 07:49 AM से 23 अप्रैल 05:48 AM तक
  • सुबह मुहूर्त (शुभ) – 07:49 AM से 09:04 AM
  • शाम मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – 12:20 PM से 05:13 PM
  • रात्रि मुहूर्त (लाभ) – 06:51 PM से 08:13 PM
  • रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 09:35 PM से 01:42 AM, अप्रैल 23

श्री यंत्र, पीली कोड़ी, शंख, जौ खरीदने के फायदे

श्री यंत्र- माना जाता है कि श्री नाम से लक्ष्मी माता की कृपा बरसती है. अक्षय तृतीया के दिन श्री यंत्र खरीद कर घर लाना बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन श्री यंत्र को पूरे विधि विधान के साथ स्थापित करना चाहिए.

पीली कौड़ी- कौड़ी में पीले रंग की कौड़ी माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को बेहद पसंद है. अक्षय तृतीया के दिन पीली कौड़ी खरीद कर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु के चरणों में रख दें. फिर अगले दिन लाल कपड़े में लपेटकर अलमारी में रखें.

शंख- शंख को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है. अगर आप अक्षय तृतीया के दिन शंख अपने घर लाते हैं तो भी आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. घर में शंख रखने वाले लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.

जौ- अक्षय तृतीया के दिन आप अनाज में जौ खरीद सकते हैं. सवा किलो जौ खरीद कर अपने घर में रख दें. इससे घर में अनाज की कभी कमी नहीं होगी. साथ ही, घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी

भगवान परशुराम जी हनुमान जी की तरह आज भी जीवित देवताओं में से एक

हर साल अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है. इस बार परशुराम जयंती कल यानी 22 अप्रैल को मनाई जाएगी. अक्षय तृतीया के दिन मां रेणुका के गर्भ से श्री परशुराम अवतरित हुए थे।

भगवान विष्णु का अवतार माने जाते हैं परशुराम, जानें कैसे पड़ा उनका ये नाम

भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी के जन्म को लेकर मान्यता है कि वे वैशाख माह के शु्क्ल पक्ष की तृतीया तिथि को जन्में थे. परशुराम जी हनुमान जी की तरह आज भी जीवित देवताओं में से एक माने जाते हैं.

बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर वर्ष परशुराम जयंती मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अपना 6वां अवतार लिया था. इसी वजह से इस दिन अक्षय तृतीया के साथ परशुराम जयंती भी सेलिब्रेट की जाती है। भगवान परशुराम का जन्म भले ही ब्राह्मण कुल में हुआ हो लेकिन उनके गुण क्षत्रियों की तरह थे. ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पांच पुत्रों में से चौथे पुत्र परशुराम थे. परशुराम भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे।

परशुराम क्षत्रीय विरोधी नही क्षत्रप विरोधी रहे- डाॅ परशुराम सिंह

डा परशुराम सिंह जी का भी आज ही जन्म दिन

चकिया,चन्दौली। शनिवार को राष्ट्र सृजन अभियान के बैनर तले कटवाॅं माफी गाॅंव में राष्ट्रीय सनातन धर्मे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के साथ ही राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बृक्ष बंधु व बेटी बचाओं व बेटी पढ़ाओ के संयोजक डा0 परशुराम सिंह के आवास पर बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर व अपने जन्म दिन पर बोलते हुए डाॅं परशुराम सिंह ने कहा कि बाबा परशुराम ब्राह्मण समाज के भगवान् है। उन्हें सब उनकी वीरता और पराक्रम के कारण जानते है। उनका शास्त्र एक फरसा था जो कि महादेव द्वारा उन्हें वरदान में मिला था।

‘परशु’ में भगवान शिव समाहित हैं और ‘राम’ में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का

वे त्रेता युग के ऋषि थे जो की विष्णु भगवान् के अवतार थे। परशुराम जयंती का पर्व ज्यादातर ब्राह्मण और पंडित धर्म के लोगो द्वारा पूरे भारत वर्ष में बहुत ही श्रद्धा से मनाया जाता है। इसी दिन कृषि की भी शुरूआत की जाती है। क्यो कि भगवान परशुराम ने इसी दिन से जमीन पर फावड़े को चलाकर कृषि का बीज बोया था।
परशु’ प्रतीक है पराक्रम का। ‘राम’ पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। शास्त्रोक्त मान्यता तो यह है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें आपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित होते हैं, परंतु मेरी मौलिक और विनम्र व्याख्या यह है कि ‘परशु’ में भगवान शिव समाहित हैं और ‘राम’ में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए मेरे मत में परशुराम दरअसल ‘शिवहरि’ हैं। पिता जमदग्नि और माता रेणुका ने तो अपने पाँचवें पुत्र का नाम ‘राम’ ही रखा था, लेकिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न करके उनके दिव्य अस्त्र ‘परशु’ (फरसा या कुठार) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए। ‘परशु’ प्राप्त किया गया शिव से।

परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का नाम है, संतुलन जिसका पैगाम

शिव ठहरे संहार के देवता । परशु संहारक है, क्योंकि परशु ‘शस्त्र’ है। राम प्रतीक हैं विष्णु के। विष्णु पोषण के देवता हैं अर्थात राम यानी पोषण संरक्षण का शास्त्र। शस्त्र से ध्वनित होती है शक्ति। शास्त्र से प्रतिबिंबित होती है शांति। शस्त्र की शक्ति यानी संहार। शास्त्र की शांति अर्थात संस्कार। मेरे मत में परशुराम दरअसल ‘परशु’ के रूप में शस्त्र और ‘राम’ के रूप में शास्त्र का प्रतीक हैं। एक वाक्य में कहूँ तो परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का नाम है, संतुलन जिसका पैगाम है।एक बात और मै बता देना चाहता हूॅ कि भगवान परशुराम क्षत्रप विरोधी थे क्षत्रीय विरोधी नही।

पिता जमदग्नि की आज्ञा से अपनी माता रेणुका का उन्होंने किया वध

विश्वकर्मा के अभिमंत्रित दो दिव्य धनुषों की प्रत्यंचा पर केवल परशुराम ही बाण चढ़ा सकते थे। यह उनकी अक्षय शक्ति का प्रतीक था, यानी शस्त्रशक्ति का। पिता जमदग्नि की आज्ञा से अपनी माता रेणुका का उन्होंने वध किया। यह पढ़कर, सुनकर हम अचकचा जाते हैं, अनमने हो जाते हैं, लेकिन इसके मूल में छिपे रहस्य को सत्य को जानने की कोशिश नहीं करते। भगवान परशुराम का जन्म भले ही ब्राह्मण कुल में हुआ हो लेकिन उनके गुण क्षत्रियों की तरह थे. ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पांच पुत्रों में से चैथे पुत्र परशुराम थे. परशुराम भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे. मान्यता अनुसार एक बार परशुराम जी की माता रेणुका से कोई अपराध हो गया था. इस पर ऋषि जमदग्नि क्रोधित हो गए थे और उन्होंने अपने सभी पुत्रों को मां का वध करने का आदेश दे दिया. इस पर परशुराम जी के सभी भाईयों ने वध करने से मना कर दिया लेकिन परशुराम जी ने पिता आज्ञा का पालन करते हुए माता रेणुका का वध कर दिया।

पिता ऋषि जमदग्नि ने परशुराम जी को तीन वर मांगने को कहा था

इससे प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने परशुराम जी को तीन वर मांगने को कहा था। इस पर परशुराम जी ने पहला वर अपनी माता को दोबारा जीवित करने का मांगा था, वहीं दूसरा वर बड़े भाइयों को ठीक करने का और तीसरा वर जीवन में कभी भी पराजित ना होने का मांगा था. भगवान परशुराम भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथियों के भी गुरू थे । परशुराम जयंती’ हिंदुओं का एक प्रसिद्द त्यौहार है। यह पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन (तृतीया) को मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत में धूम-धाम से मनाया जाता है। अक्षय तृतीया का प्रसिद्द पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है।

अक्षय तृतीया मनाने के चार कारण

डॉ0परशुराम सिंह ने अक्षय तृतीया मनाने के चार कारण बताते है वे हते है कि –
1– अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम ने महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका देवी के घर जन्म लिया था. भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. अक्षय तृतीया पर भगवान परशुराम की पूजा करने का भी विधान है.
2- महाभारत लिखना शुरू किया
सनातन धर्म में महाभारत को पांचवे वेद के रूप में माना जाता है. महर्षि वेदव्यास ने अक्षय तृतीया के दिन से ही महाभारत लिखना शुरू किया था. महाभारत में ही श्रीमद्भागवत गीता समाहित है और अक्षय तृतीया के दिन गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना शुभ माना जाता है.
3- मां गंगा का अवतरण
अक्षय तृतीया के दिन ही स्वर्ग से पृथ्वी पर माता गंगा अवतरित हुई थी. माता गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए राजा भागीरथ में हजारों वर्ष तक तपस्या की थी. मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
4- माता अन्नपूर्णा का जन्मदिन
अक्षय तृतीया के दिन माता अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है. माता अन्नपूर्णा की पूजा करने से भोजन का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है. इस दिन गरीबों को भोजन कराने का विधान है. साथ ही देश भर में भंडारे भी कराए जाते हैं.
दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए , यह दिवस सर्वश्रे’ठ है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया पूरे एक वर्ष में उन साढ़े तीन शुभ मुहूर्त में से एक जिसे अबूझ मुहूर्त माना गया है। अबूझ मुहूर्त में किसी भी तरह के शुभ कार्य को करने के लिए पंडित से मुहूर्त नहीं निकला जाता है। अक्षय तृतीया के दिन सभी तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
शस्त्र और शास्त्र दोनों ही हैं उपयोगी, यही पाठ सिखा गए हैं हमें योगी जय श्री परशुराम

परशुराम शब्द का अर्थ (Parshuram word meaning):

  • परशुराम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है. परशु अर्थात कुल्हाड़ी तथा राम इन दो शब्दों को मिलाने पर  कुल्र्हाडी के साथ राम का अर्थ निकलता है. जैसे राम, भगवान विष्णु के अवतार हैं, उसी प्रकार परशुराम भी विष्णु के अवतार हैं. इसलिए परशुराम को भी विष्णुजी तथा रामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है.
  • परशुराम के अनेक नाम हैं. इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है।

कौन थे परशुराम ? (Who is Parshuram)

  • परशुराम ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे. ऋषि जमादग्नि सप्तऋषि में से एक ऋषि थे.
  • परशुराम वीरता के साक्षात उदाहरण थे.
  • हिन्दू धर्म में परशुराम के बारे में यह मान्यता है, कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं.

परशुराम किसके अवतार थे

ऐसा मान्यता है कि भगवान परशुराम भगवान विष्णु के जी के 6वें अवतार के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे.

सनातन धर्म के प्रमुख पर्व के रूप में

हर हिन्दू इसलिए जानना चाहता है, क्योंकि उसने कभी वेद, उपनिषद, 6 दर्शन, वाल्मिकी रामायण और महाभारत को पढ़ा नहीं। यदि देखने और सुनने के बजाय वह पढ़ता तो उसको इसका उत्तर उसमें मिल जाता, लेकिन आजकल पढ़ता कौन है।

सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है। जो किसी समय, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए, भारी धर्मांतरण के बाद भी, विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी। इसी धर्म में आस्था रखती है। मूल सनातन धर्म का प्रतीक चिन्ह ॐ ही नहीं। बल्कि यह सनातन परंपरा का सबसे पवित्र शब्द है।

इस दिन खुलेंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट, जानिए तिथि और शुभ समय

  की उत्तराखंड चार धाम यात्रा का शुभारंभ 22 अप्रैल 2023 को अक्षय तृतीया से हो रहा है. हर साल शीत ऋतु में उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री 6 माह के लिए बंद हो जाते हैं. आइए जानते हैं चारों धाम का कपाट खुलने का समय और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी.

गंगोत्री धाम यात्रा – 22 अप्रैल 2023 (Gangotri Dham yatra 2023)

गंगोत्री धाम के कपाट 22 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर खुलेंगे, 21 अप्रैल को शीतकालीन प्रवास मुखवा से मां गंगा की उत्सव डोली गंगोत्री धाम के लिए रवाना होगी. गंगोत्री धाम के पट खुलने से पहले सहस्त्रनाम, गंगा लहरी पाठ किया जाता है. गंगोत्री में स्थित गौरी कुंड के बारे में कहा जाता है कि यहां गंगा खुद भगवान श‌िव की परिक्रमा करती हैं.उत्तराखंड के गढ़वाल में गंगोत्री हिमनद से गंगा नदी निकलती है.

चारधाम के पहले प्रमुख तीर्थ धाम यमुनोत्री के कपाट 22 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 41मिनट पर कर्क लग्न अभिजित मुहूर्त पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे. सनातन शास्त्रों में इसे असित मुनि का निवास बताया गया है. यमुनोत्री को सूर्य की बेटी और यम की बहन यमुना जी का उद्गम स्थल माना गया है. पवित्र यमुना नदी यमुनोत्री से निकलती है.

केदारनाथ धाम यात्रा – 25 अप्रैल 2023 (Kedarnath Dham Yatra 2023)

केदारनाथ धाम 25 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 20 मिनट पर मेघ लग्न में भक्त दर्शन कर पाएंगे. केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है. पौराणिक मान्यता है कि महाभारत युद्ध में अपने भाईयों की हत्या के पाप का पार्यश्चित करने के लिए पांडव केदारनाथ आए थे. यहां शिवलिंग की बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजा की जाती है.

बद्रीनाथ धाम यात्रा – 27 अप्रैल 2023 (Badrinath Dham Yatra 2023)

बद्रीनाथ धाम में 27 अप्रैल को सुबह 07 बजकर 10 मिनट पर तीर्थ यात्री बद्री विशाल के दर्शन कर पाएं. कहते हैं कि बद्रीनाथ धाम के दर्शन के बिना चार धाम यात्रा पूरी नहीं मानी जाती. जगत के पालन हार भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है. बद्रीनाथ के बारे में एक कथा प्रचलित है – ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’. अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, वह दोबार जन्म नहीं लेता. मोक्ष को प्राप्त होता है.

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