अनिल दूबे

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ।गोमतीनगर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में सोनभद्र जिले से पधारे पंडित माधवाचार्य जी महराज ने राम,व कृष्ण के जन्म की कथा श्रवण कराते हुए भक्तों को बताया कि पृथ्वी पर जन्म लेने वाले सभी ग्रहों के अधिन होते हैं।

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भगवान होते है ग्रहों से परे‚वे होते है ग्रहो के प्रभाव से बंचित

भगवान ग्रहों से परे होते हैं उनके उपर ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन यही भगवान जब पृथ्वी पर अवतरित हुए तो उनके उपर ग्रहों ने अपना प्रभाव से गुजरना पड़ा, माध्वाचार्य महराज ने बताया कि बृहस्पतिसंहिता में कहा गया है कि, ग्रहाधीनं जगत्सर्वं ग्रहाधीनाः नरावराः। कालज्ञानं ग्रहाधीनं ग्रहाः कर्मफलप्रदाः।। अर्थात- सम्पूर्ण चराचर जगत ग्रहों के अधीन है। और सभी मनुष्यों को ग्रहों के ही अधीन होकर श्रेष्ठता को प्राप्त करते है।

मनुष्य को काल का भी ज्ञान इन्हीं ग्रहों के अधीन और यही ग्रह ही मनुष्य के कर्मो के फल को देने वाले

मनुष्य को काल का भी ज्ञान इन्हीं ग्रहों के अधीन है और यही ग्रह ही मनुष्य के कर्मो के फल को देने वाले होते हैं। महराज जि ने कथा श्रवण कराते हुए कहा कि भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम पारलौकिक लीला में तो ग्रहों से परे हैं किन्तु जब वे पृथ्वी पर लौकिक लीला करने आते हैं तो वे भी ग्रह योगों और उनके प्रभाव से भाग नहीं पाते। वर्तमान श्रीश्वेतवाराहकल्प के सातवें वैवस्वत मन्वंतर के पच्चीसवें चतुर्युगीय के मध्य त्रेतायुग में जब परम विष्णु श्रीराम के रूप में जन्म लिया तो शुभ-अशुभ ग्रहों के प्रभाव का सामना करते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।

भगवान राम की कुंडली

 भगवान राम का जन्म कर्क लग्न और कर्क राशि में ही हुआ। इनके जन्म के समय लग्न में ही गुरु और चंद्र, तृतीय पराक्रम भाव में राहु, चतुर्थ माता के भाव में शनि, और सप्तम पत्नी भाव में मंगल बैठे हुए हैं जबकि नवम भाग्य भाव में उच्चराशिगत शुक्र के साथ केतु, दशम भाव में उच्च राशि का सूर्य और एकादश भाव में बुध बैठे हुए हैं। 
इनकी की जन्मकुंडली में श्रेष्ठतम गजकेसरी योग, हंस योग, शशक योग, महाबली योग, रूचक योग, मालव्य योग, कुलदीपक योग, कीर्ति योग सहित अनेकों योगों की भरमार है।
कुंडली में बने योगों पर ध्यान दें तो, चंद्रमा और बृहस्पति का एक साथ होना ही जातक धर्म और वीर वेदांत में रुचि लेने वाला होता है। 

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बृहस्पति की पंचम विद्या भाव पर अमृत दृष्टि, सप्तम पत्नी भाव पर मारक दृष्टि और नवम भाग्य भाव पर भी अमृत दृष्टि पड़ रही है। जिसके फलस्वरूप भगवान राम की कीर्ति और भाग्योदय का शुभारंभ 16वें वर्ष में ही हो गया था और पूर्ण भाग्योदय 25 वर्ष से आरंभ हुआ। कथा से पूर्व काशी के आचार्यों के द्वारा पूरे विधि-विधान से भगवान का पूजन किया जाता है और भागवत पारायण कर आरती प्रसाद दिया जाता है।