सलील पांडेय जी एक जीवंत कलमकार व ब्यंगकार है ‚खबरी में स्थाई स्तम्भ के रूप में बराबर अपने कृतियों से आम जनमानस को अपनी बेवाक लेखनी से दो चार कराते रहते है‚ आज भी उनकी एक उम्दा लेखनी जिसमें …….– सम्पादक खबरी पोस्ट
सलिल पांडेय
- आसमान से बरसेला की आग हो : सड़क-गली सब सून भयल हो कलमू
- पिछले सप्ताह रही आह भी और वाह भी
गर्मी की आह है तो PWD में पदोन्नत एवं सख्त एक्शन की वाह भी
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
मिर्जापुर। ग्रीष्म ऋतु में सूरज की आग में धरती जलती है । यह तपन वर्षा ऋतु के आने पर ही कम होती है । इसमें सर्वाधिक तपने वाला नक्षत्र मृगशिरा है । जो काशी के पंचांग के अनुसार इस वर्ष 8/9 जून को रात्रि 1:10 बजे से 22/23 जून आर्द्रा नक्षत्र रात्रि 1:48 बजे तक अपनी तपिश बनाए रखेगा । इस अवधि में तापमान बढ़ने से पूरी धरती पर दाहकता बनी रहती है ।
प्रकृति की दाहकता की तरह मनुष्य की वैचारिक दाहकता और आचार-विचार में ज्वलनशीलता भी कम घातक नहीं
प्रकृति की दाहकता की तरह मनुष्य की वैचारिक दाहकता और आचार-विचार में ज्वलनशीलता भी कम घातक नहीं । इसके तहत मनीषियों ने काम-क्रोध आदि अग्नि को भी घातक कहा है । गोस्वामी तुलसीदास ने ‘काम क्रोध मद लोभ सब, नाथ नरक के पंथ’ से यह स्पष्ट भी कर दिया है । तपने वाले नक्षत्र मृगशिरा के बारे में ग्रन्थों में एक कथा का उल्लेख है । जिसके अनुसार भगवान ब्रह्मा एक बार काम-वासना से जलने लगे । वे अपनी ही पुत्री सन्ध्या पर अनुरक्त हो गए । ब्रह्मा की मनोवृत्ति भांपकर वह मृग (हिरनी) बन गयी । यह देखकर ब्रह्मा मृग (हिरन) बन के सन्ध्या का पीछा करने लगे ।
वह भाग कर भगवान शंकर के पास गई । भगवान शंकर ने हिरनी बनी संध्या को शरण दिया लेकिन कामासक्त ब्रह्मा जो मृग बन गए थे और कामाग्नि से झुलस रहे थे, वे पीछा नहीं छोड़े जिससे उन पर महादेव कुपित हो गए। कामासक्त को कुछ सूझता नहीं । महादेव के कोप की परवाह न कर ब्रह्मा और भी उग्र हो गए । तब महादेव ने उस कामाग्नि को निष्प्रभावी करने के लिए आर्द्रता का बाण चलाया और ब्रह्मा का सिर काट दिया । मृग रूप धारण किए ब्रह्मा का सिर मृगशिरा नक्षत्र है और महादेव का सिर काटने के लिए चलाया वाण आर्द्रा नक्षत्र के रूप में जाना जाता है । मृगशिरा नक्षत्र से झुलसते जगत को आर्द्रा नक्षत्र की वर्षा से राहत मिलती है । शिवमहिम्न स्त्रोत के 22वें श्लोक में इसका उल्लेख मिलता है ।
इस प्रसंग के प्रतीकात्मक स्वरूप पर दृष्टि डाली जाए तो वह प्रासंगिक भी लगता है। मनुष्य जन्म के बाद शिक्षा-दीक्षा का पालन-पोषण उसी तरह करता है जैसे पुत्री का पालन-पोषण किया जाता है। इस दृष्टि से शिक्षा-दीक्षा बेटी होती है। जब आगे चलकर इसके बल पर व्यक्ति जीवन की जरूरतों का भोग करता है तो यही शिक्षा-दीक्षा का स्वरूप पत्नीवत हो जाता है। भौतिक संसाधनों के अतिरेक से मान-मर्यादा का हनन भी होता है। ब्रह्मा की सन्दर्भित कथा को इस रूप में भी देखना चाहिए।
गर्मी में वाह
सम्मान का सिलसिला उर्मिला तक पहुंचा
छोटी अवस्था में मिर्जापुरी कजली को मां की ममता समझ कर पली-बढ़ी लोकगायिका श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव सीढ़ी-दर-सीढ़ी ऊपर बढ़ती गई तो उनकी गायन-शैली बादल बन देश ही नहींपर-देश तक छा गई। स्थानीय आर्यकन्या इंटर कॉलेज की प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्हें कजली की धुन में डूबे देखा जाता रहा। उनके पदचाप से लेकर हर अंदाज़ से कजली अपना रूप-रंग बिखेरती रही। इस वर्ष उत्तर प्रदेश संगीत नाट्य अकादमी ने उन्हें अलंकृत किया तो विन्ध्य-नगरी की शान कही जाने वाली कजली-विधा के हर दीवानों को गर्मी के मौसम में सावन की रिमझिम की बरसात का आनन्द मिलता नजर आया।
एक सीढ़ी ऊपर चढ़े SE श्री अशोक कुमार द्विवेदी
मिर्जापुर PWD के SE धर्मानुरागी अशोक कुमार द्विवेदी धर्मक्षेत्र विन्ध्य-मण्डल में एक सीढ़ी ऊपर चढ़कर चीफ इंजीनियर हो गए। 17 जून को उन्होंने मुख्य अभियंता का पदभार ग्रहण किया। राजकीय सेवा में AE, EE, SE की इन तीन सीढ़ियों के बाद चीफ इंजीनियर की चौथी सीढ़ी का संयोग विंध्याचल मन्दिर की चार सीढ़ियों के बाद मां विंध्यवासिनी के दर्शन-लाभ जैसा ही है।