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रेडियो‚ टीवी‚ मीडिया एंकरिंग एवं लेखन कार्यशाला

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ।मीडिया के लिए लेखन साहित्यिक लेखन से अलग है। साहित्यिक लेखन में जहां शब्दजाल रचे जाने की लेखक के सामने स्वतंत्रता होती है। वह अपने शब्दों के विन्यास में अपनी भावनाओं को बांधकर एक कसी हुई कथा लिख सकता है। लेकिन निश्चित तौर पर उसका अपना निश्चित पाठक वर्ग होगा। पत्रकारिता की भाषा में जिसे लक्षित समूह यानी Target Audience कहा जाता है, उसके बारे में आम अवधारणा है कि पत्रकारिता के पाठक या दर्शक वर्ग की समझ साहित्यिक पाठक वर्ग की तुलना में कहीं ज्यादा सामान्य होती है। लिहाजा माना जाता है कि वह गंभीर और संष्लिष्ट भाषा को पचा नहीं पाएगा। इसलिए सहज भाषा का इस्तेमाल करने की सीख हर अनुभवी मीडियाकर्मी हर नए मीडियाकर्मी को देता है। जिस पर एक कार्यशाला का आयोजन उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, गोमती नगर, विपिन खंड एक, लोहिया पथ,निकट फन मॉल, लखनऊ में किया जा रहा है ।

सात दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन समारोह 27 जून सुबह 11 बजे अकादमी के वाल्मीकि रंगशाला में होगा।

बता दे कि कार्यशाला का उद्घाटन समारोह समारोह मंगलवार को सुबह 11 बजे अकादमी के वाल्मीकि रंगशाला में सम्पन होगा। सात दिवसीय विशेष प्रशिक्षण, रेडियो और टीवी पत्रकारिता क्षेत्र के साथ जानेमाने रेडियो आर जे और विभिन्न विशेषज्ञ प्रशिक्षण देंगे। जिसके लिए आप को कार्यशाला में प्रतिभाग के लिए मो0 9140000166 और 9415228228 पर सम्पर्क कर सकते है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि- मंत्री, संस्कृति एवं पर्यटन जयवीर सिंह होंगे। कार्यशाला प्रतिदिन सुबह 8 बजे से 10 बजे तक चलेगा।

करें आन लाईन पंजीकरण

सभी प्रतिभागी आन लाईन पंजीकरण कर सकते हैं जिसके लिए उन्हे पंजीकरण शुल्क-1000/- रु देना होगा। और पंजीकरण के लिए लिंक https://www.jimmckanpur.ac.in/summer-workshop/ पर जाकर अपनी जानकारी फिलअप करनी होगी। वही प्रतिभागी व्हाट्सएप्प समूह में भी जुड सकते है जिसके लिए htps://chat.whatsapp.com/CzFkMtNQd7DAhIdp5Lz2AR के लिंक पर जाकर क्लिक करना होगा।

करना होगा यह काम मिलेगी सुविधाएं

1- सभी प्रतिभागियों को प्रशिक्षण पूर्ण करने पर प्रमाण पत्र दिया जाएगा।
2- सभी प्रतिभागियों को सामूहिक अभ्यास के लिए एक टीम के साथ जोड़ा जाएगा।
3- प्रशिक्षण के लिए उम्र का और योग्यता का कोई बंधन नहीं है।
4- सभी को रेडियो, टीवी, और वेब मीडिया विशेषज्ञों से उचित मार्गदर्शन मिलेगा।

मीडिया लेखन (टीवी-रेडियो) की चुनौतियां और तकनीक

मीडिया के लिए लेखन साहित्यिक लेखन से अलग है। साहित्यिक लेखन में जहां शब्दजाल रचे जाने की लेखक के सामने स्वतंत्रता होती है। वह अपने शब्दों के विन्यास में अपनी भावनाओं को बांधकर एक कसी हुई कथा लिख सकता है। लेकिन निश्चित तौर पर उसका अपना निश्चित पाठक वर्ग होगा। पत्रकारिता की भाषा में जिसे लक्षित समूह यानी Target Audience कहा जाता है, उसके बारे में आम अवधारणा है कि पत्रकारिता के पाठक या दर्शक वर्ग की समझ साहित्यिक पाठक वर्ग की तुलना में कहीं ज्यादा सामान्य होती है। लिहाजा माना जाता है कि वह गंभीर और संष्लिष्ट भाषा को पचा नहीं पाएगा। इसलिए सहज भाषा का इस्तेमाल करने की सीख हर अनुभवी मीडियाकर्मी हर नए मीडियाकर्मी को देता है।

अंग्रेजी के उन शब्दों के प्रयोग भी धड़ल्ले से हो रहे हैं, जिनके लिए हिंदी के सहज शब्द उपलब्ध

यहां बोलचाल के नाम पर ना सिर्फ अंग्रेजी के उन शब्दों के प्रयोग भी धड़ल्ले से हो रहे हैं, जिनके लिए हिंदी के सहज शब्द उपलब्ध हैं। दुनिया में हर भाषा दूसरी भाषाओं की शब्द संपदा को अपनी जरूरत के मुताबिक अभिव्यक्ति को प्रवाहमान बनाने के लिए अपनाती रहती है। लेकिन उनकी शर्त बस इतनी सी होती है कि वे दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपनाकर उन्हें अपनी भाषिक संस्कृति में ढाल लेती हैं। उन्हें अपने व्याकरणिक नियमों में बांधती है और उन्हें अपनी परंपरा और संस्कृति में ऐसे रचाती-खपाती हैं, जिन पर बाहरी का मुलम्मा नजर भी नहीं आता।

टेलीविजन न्यूज रूप में खबरों का दबाव बढ़ा है, इसलिए सैद्धांतिकी कई बार प्रसारण के दबाव में पीछे रह जाती है

अपने देश में टेलीविजन का विस्तार आपाधापी के साथ उदारीकरण के दौर में हुआ, लिहाजा यहां टीवी सामग्री निर्माण की आधारभूत सैद्धांतिकी विकसित नहीं हुई। चुकि यूरोप और अमेरिका में टेलीविजन पचास के दशक में ही आ गया, लिहाजा वहां एक सैद्धांतिकी ना सिर्फ विकसित हुई है, बल्कि वह कामयाबी के तौर पर कार्य भी कर रही है। लेकिन यह भी सच है कि आज के दौर में टेलीविजन न्यूज रूप में खबरों का दबाव बढ़ा है, इसलिए सैद्धांतिकी कई बार प्रसारण के दबाव में पीछे रह जाती है। क्यों कि कई खबरों की उम्र बहुत कम होती है।

टीवी सामग्री निर्माण की मान्य सिध्दांत

1. सबसे पहले विषय की तलाश
2. शूटिंग, इंटरव्यू, बाइट लेना
3. शूटिंग के बाद उचित विजुअल/बाइट का सेलेक्शन (चयन)
4. स्पेशल इफेक्ट की तैयारी, जरुरी ग्राफिक्स का निर्माण
5. समग्री के लिए स्क्रिप्ट लेखन
6. तैयार स्टोरी को डिजिटल फॉर्म में तैयार करना
7. डिजिटल स्टोरी को अपनी साइट, सिस्टम में प्रकाशित करना, नेट पर अपलोड करना

चूंकि टेलीविजन जनसंचार का सबसे लोकप्रिय व सशक्त माध्यम है। लिहाजा इसमें ध्वनियों के साथ-साथ दृश्यों का भी ना सिर्फ समावेश होता है, बल्कि उस पर जोर होता है। इसके लिए समाचार लिखते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शब्द व पर्दे पर दिखने वाले दृश्य में समानता हो और कहीं दोनों बेमेल नजर नहीं आएं।

टेलीविजन में कोई भी सूचना निम्न चरणों या सोपानों को पार कर दर्शकों तक पहुँचती है –

• फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज
• ड्राई एंकर
• फ़ोन इन
• एंकर-विजुअल
• एंकर-बाइट
• लाइव
• एंकर-पैकेज

जाहिर है कि हर चरण के लिए लेखन की प्रक्रिया अलग होती है। फ्लैश में वन लाइनर या दो लाइनों में खबर पेश की जाती है। ड्राई एंकर का मतलब कि खबर को एंकर सिर्फ जुबानी पढ़कर सुनाए। ऐसा इसलिए होता है कि तब तक या तो विजुअल नहीं आए होते हैं या फिर जरूरी तैयारी नहीं होती है। इस बीच संवाददाता से संपर्क होता है तो उससे फोन पर खबर ली जाती है। इसे फोन इन या फोनो कहा जाता है। इस बीच विजुअल आ जाता है। तब विजुअल के जरिए खबर की जानकारी एंकर देता है। उसे एंकर विजुअल कहा जाता है। फिर घटनास्थल से पीड़ित या खबर बनाने वाली बाइट आ जाती है। तब उसकी बाइट को एंकर पेश करता है। उसे एंकर बाइट कहा जाता है। फिर हो सकता है कि तब तक वहां लाइव प्रसारण देने वाली वैन पहुंच गई हो। इसलिए रिपोर्टर से सीधे घटना की खबर ली जाती है। इसे लाइव कहा जाता है।

उदाहरणार्थ-एक टेलीविजन स्क्रिप्ट

एंकर
रेल यात्रियों को नए साल में रेलवे की तरफ से राहत की सौगात मिलेगी..अब यात्रियों को बिना पेन्ट्री कार वाली ट्रेनो में भी पसंद का खाना पसंदीदा समय पर मिलेगा…. इस ई-कैटरिंग सेवा की शुरूआत दिसंबर के आखिरी हफ्ते से शुरू हो जाएगी.इसके लिए रेलवे दो टोल फ्री नंबर जारी करेगा..जिस पर यात्री फोन या एसएमएस करके अपनी पसंद का खाना अपनी सीट पर मंगवा सकेगा.

रोल पैकेज
वीओ 1
बिना पेन्ट्री कार वाली ट्रेनों में यात्रा करने वाले यात्रियों को अब स्टेशन पर उतर कर खाने के लिए भटकना नहीं होगा….. GFX IN नए साल में सभी 143 बिना पेन्ट्री कार वाली ट्रेनों में ई-कैटरिंग की सुविधा शुरू कर दी जाएगी..रेलवे इसके लिए दो टॉल फ्री नंबर के साथ साथ इंटरनेट पर भी टिकट बुकिंग के समय फूड बुकिंग की भी सुविधा शुरू करेगा.GFX OUT..फिलहाल दिल्ली से चलने वाली 6 ट्रेनों में इसकी शुरूआत दिसंबर में कर दी जाएगी.

बाईट-अधिकारी
वीओ2
ई-कैटरिंग की सुविधा के लिए कुछ शर्ते भी हैं. GFX IN सिर्फ कंफर्म टिकट वाले यात्रियों को हीं ये सुविधा मिलेगी.. यात्री 18001034139 और 1204383892 नंबर पर फोन करके खाना बुक कर पाएंगे. फोन से बुक कराते वक्त यात्रियों को अपना पीएनआर बताना होगा. इसके बाद पीएनआर की जांच करने के बाद यात्री को मेन्यू बताया जाएगा और उसे कब खाना चाहिए ये पूछा जाएगा.ऑर्डर बुक होने पर यात्री के फोन पर मैसेज आ जाएगा..और मेल आईडी पर ईमेल चला जाएगा..रेलवे के टॉल फ्री 139 नंबर पर भी खाना बुक किया जा सकेगा.GFX OUT रेलवे की इस सेवा का यात्रियों ने स्वागत किया है..

बाईट- यात्री
वीओ3
दरअसल खाना लेने के लिए ट्रेन से उतरते वक्त जल्दबाजी में कई बार यात्रियों के साथ अनहोनी भी हो जाती है..कई बार उनकी ट्रेन तक छूट जाती है.लिहाजा रेल मंत्रालय ने यात्रियों की सुविधा के लिए ई-कैंटरिंग की व्यवस्था शुरू करने का फैसला लिया है.

रेडियो समाचार-लेखन के लिए बुनियादी बातें :
• समाचार वाचन के लिए तैयार की गई कॉपी साफ़-सुथरी ओ टाइप की हुई होनी चाहिए ।
• कॉपी को ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।
• पर्याप्त हाशिया छोडा़ जाना चाहिए।
• अंकों को लिखने में सावधानी रखनी चाहिए।
• संक्षिप्ताक्षरों और ज्यादातर कठिन संयुक्ताक्षरों के प्रयोग से बचा जाना चाहिए।

समाचार स्रोत के रूप में सोशल मीडिया

यहां एक बात और जाहिर करना चाहूंगा कि लेखन चूंकि एक कला है और जिस तरह हर कलाकार की अपनी शैली, अपनी रचनात्मकता होती है, उस तरह हर मीडियाकर्मी की अपनी शैली होती है। 

सोशल मीडिया के जमाने में अधिकतर लोग इससे पैसे कमाने की कोशिश में लगे हुए हैं. लाखों क्रिएटर ऐसे हैं जो हर महीने करोड़ो रुपये फेसबुक और यूट्यूब से कमा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों में टैलेंट और वीडियो बनाने का जज्बा होता है, लेकिन वे कैमरे पर आने से डरते हैं. क्या आपके साथ भी इसी तरह की कोई समस्या है. ऐसे मैं आपको अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. एआई टूल की मदद से आप अपनी बातों को लोगों तक पहुंचा सकते हैं।

 समाचार प्राप्त करने के लिए पारंपरिक मीडिया प्लेटफार्मो बजाय ऑनलाइन सोशल मीडिया प्लेटफार्मो का उपयोग है । जिस तरह 1950 से 1980 के दशक में टेलीविजन ने मीडिया सामग्री सुनने वाले लोगों के देश को मीडिया सामग्री देखने वालों में बदल दिया, उसी तरह सोशल मीडिया के उद्भव ने मीडिया सामग्री रचनाकारों का देश बनाया है ।

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