सलिल पांडेय

देव-शयन और दानव शयन

◆निद्रा, जागरण और आहार की परिधि में मनुष्य ही नहीं बल्कि हर जीव रहता है।
◆इसे जीवन का त्रिकोण भी कहा जा सकता है।
◆धर्मग्रन्थों में इन तीनों विषयों पर विशेष रूप से उल्लेख किया गया है तथा देवी-देवताओं से इसके लिए प्रार्थना भी की गई है।
◆निद्रा विषय पर तो श्रीदुर्गा सप्तशती के पंचम अध्याय में मां दुर्गा के विविध रूपों का उल्लेख किया गया है।
◆इसमें भी सर्वप्रथम भगवान विष्णु की माया, चेतनाशक्ति, बुद्धि के बाद चतुर्थ क्रम में ‘या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’ की प्रार्थना शामिल है।
◆इस क्रम का यह भी संयोग है कि प्रात:, मध्याह्न, सायं के बाद चतुर्थ क्रम में रात्रि आती है।
◆रात में ही शयन होता है ।

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◆निद्रा की कामना के पश्चात क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षमा, जाति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, कांति, लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, मातृ, भ्रांति आदि के रूप में मां दुर्गा की प्रार्थना उपासक करता है।
◆इससे यह प्रतीत होता है कि निद्रा का जीवन में अत्यंत महत्त्व है।
◆स्वास्थ्य विज्ञान के अनुसार भी स्वस्थ जीवन के लिए सुखद नींद अत्यंत आवश्यक है।
◆दिन भर क्रियाशील अवस्था के बाद आंतरिक शरीर में जिन अवयवों तथा तत्वों की क्षति होती है, उसकी पूर्ति नींद की अवस्था में होती है।
◆इसे इस रूप में समझने की जरूरत है कि लगातार दौड़ता हुआ व्यक्ति यदि कुछ क्षणों के लिए विश्राम कर लेता है तो उसे दौड़ने की पुनः ऊर्जा मिल जाती है।
◆यह शरीर में भी व्यावसायिक नियमों की तरह आहरण और वितरण का सिद्धान्त है।
◆निद्रा के बाद का जागरण व्यक्ति के लिए पुनर्जन्म की तरह ही होता है।
◆सुखद निद्रा के बाद सुखद जागरण अवश्य होता है।
◆रही बात सुखद निद्रा की तो वह सकारात्मक दिनचर्या तथा चिंतन से ही संभव है।
◆इस शयन को देवशयन मानना चाहिए ।
◆जबकि नकारात्मक कार्यों से नींद तो बाधित होती ही है, भूख में भी व्यवधान पड़ता है। दवाओं का उपयोग करना पड़ता है, देर सुबह जागने के बाद भी आलस्य बना रहता है।
◆उक्त परिस्थिति में मनुष्य न तो स्वस्थ रह सकेगा और न ही उत्तम कार्य कर सकेगा।
◆इसे दानव-शयन कहा गया है।
◆सुखद नींद और जागरण के साथ श्रीमद्भवतगीता में उत्तम और सात्विक आहार का उल्लेख है।
◆इस तरह स्वस्थ और उन्नत जीवन के लिए निद्रा, जागरण तथा आहार का योग आवश्यक है।
◆भगवान विष्णु की योगनिद्रा के गहरे निहितार्थ हैं।
◆चार माह का शयन वर्ष का एक तिहाई हिस्सा है। इससे तो यही अर्थ निकलता है कि 24 घण्टे में एक तिहाई समय का उपयोग शयन के लिए, एक तिहाई क्रियाशील रहकर कर्म तथा उद्यम के लिए और एक तिहाई अन्य कार्यों यथा स्नान-ध्यान, घर-गृहस्थी आदि के लिए करना चाहिए।
◆भगवान विष्णु योगनिद्रा के बाद जब जागृत होते हैं तब वह दिन प्रबोधिनी एकादशी का होता है।
◆कार्तिक माह में प्रकृति का स्वरूप आह्लादकारी हो जाता है, उस समय भगवान की योगनिद्रा समाप्त होती है।
◆स्थगित शुभकर्म शुरू हो जाते हैं।

◆इन सभी स्थितियों से यह झलकता है कि जीवन में योग तथा सुकून की नींद जिसकी है, वही निजी तथा सार्वजनिक जीवन में उत्तम कार्य कर सकता है।

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