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रिपोर्ट अनमोल कुमार

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

पर्यटन, आध्यत्म व धार्मिक स्थल गया जिले में स्थित है बराबर पहाड़

धर्म कर्म डेस्क । बिहार में पर्यटन, आध्यत्म व धार्मिक स्थल गया जिले में स्थित है बराबर पहाड़।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह पहाड़ काफी महत्त्वपूर्ण है। भगवान श्रीकृष्ण, शिव, पाण्डव और बाणासुर से सम्बन्धित है यह प्राचीन पर्वत है, जो अब पहाड़ी के रूप में विराजमान है। पृथ्वी पर यह एकमात्र पहाड़ी है, जो भगवान श्रीकृष्ण और शिव के बीच हुए भयंकर युद्ध का साक्षी है। विश्व के गिने-चुने पहाड़ों में बराबर पहाड़ी शामिल है जो खण्डित है, जड़ से चोटी तक पूरी तरह टुकड़ों में बँटा है। यहाँ भगवान शिव सिद्धेश्वरनाथ शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। सालोंभर भक्तों और पर्यटकों से बराबर पहाड़ी गुलजार रहती है।

कई विशाल चट्टानें बहुत छोटी चट्टानों पर स्थित है, पर आश्चर्य है कि ये गिरते नहीं ‚ आखिर क्या है कथाएं

बराबर पहाड़ी के टूटे होने की एक कथा प्राचीन भारतीय ग्रन्थ में उपलब्ध है। उस की संक्षिप्त चर्चा मैं यहाँ कर रहा हूँ। वामनरूपधारी भगवान को पृथ्वी दान देनेवाले राजा बलि के सौ पुत्रों में बाणासुर ज्येष्ठ था। उदार, बुद्धिमान व अटल प्रतिज्ञा के लिए प्रसिद्ध बाणासुर भगवान शिव की भक्ति में मग्न रहता था। वह शोणितपुर (वर्तमान असम का तेजपुर) में राज्य करता था।

भगवान शिव के आशीर्वाद से बाणासुर ने एक हजार भुजाएँ प्राप्त की। हजार भुजा प्राप्त कर वह समूची पृथ्वी पर तहलका मचाने लगा। उस ने कई पर्वतों को अपने हाथों से तोड़ डाला। इसी दौरान उस ने बराबर पहाड़ पर भी प्रहार किया और इसे चूर कर दिया। पूरा पहाड़ छोटे-बड़े चट्टानों के रूप में है। कई विशाल चट्टानें बहुत छोटी चट्टानों पर अवलम्बित हैं, पर आश्चर्य है कि ये गिरते नहीं।

जब शिव जी बने बाणासुर के पहरेदार

हजार हाथों के अलावा शिवजी ने अन्य वरदान माँगने को कहा तो बाणासुर ने कहा- आप मेरे किले के पहरेदार बन जाये। लाचारी में शिव उस के किले के रक्षक बन गये।
बाणासुर अत्यन्त बलशाली हो गया। उस से कोई राजा या देवता युद्ध करना नहीं चाहते थे। सभी भयभीत रहने लगे। तब बाणासुर ने शिवजी से युद्ध करनी चाही मगर शिष्य होने के कारण शिवजी ने मना कर दिया। उन्होंने बाणासुर को एक ध्वज दिया और कहा कि जिस दिन यह फट जायेगा, उस दिन तुम से युद्ध करनेवाला (श्रीकृष्ण) अवतार लेगा। यह सुन बाणासुर डर गया। उस ने पुनः तपस्या की और अपनी हजार हाथों से कई सौ मृदंग बजाकर शिवजी को प्रसन्न किया और श्रीकृष्ण से युद्ध के दौरान उन के सहयोग व अपने प्राण की रक्षा का वरदान पा लिया।

जब बाणासुर ने भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरूध्द और अपनी पुत्री उषा को किया कैद

बाणासुर की एक पुत्री उषा थी। उषा से विवाह के लिए कई राजा आये किन्तु बाणासुर सब को अपमानित कर भगा देता था। एक दिन उषा ने स्वप्न में एक सुन्दर राजकुमार देखा और मन-ही-मन उस से प्रेम करने लगी। यह बात सखी चित्रलेखा को बतायी। चित्रलेखा मायावी थी जो सुन्दर कलाकृति बनाती थी। उस ने माया से उषा की आँखों में झाँका और स्वप्न-दृश्यों को देखकर उस राजकुमार का चित्र बना दिया। चित्रलेखा ने कहा कि यह चित्र श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का है। उषा के आग्रह पर चित्रलेखा ने माया के बल पर द्वारिका से अनिरुद्ध को अदृश्य कर उषा के सामने प्रकट कर दिया। तब दोनों ने ओखिमठ नामक स्थान (केदारनाथ के पास) में विवाह किया, जहाँ आज भी उषा-अनिरुद्ध नाम से एक मन्दिर है। बाणासुर ने अनिरुद्ध और उषा को कैद कर लिया।

जब भगवान शिव ने बाणासुर के तरफ से किया भगवान श्री कृष्ण से युध्द

अन्ततः श्रीकृष्ण और बलराम ने बाणासुर पर हमला कर दिया। भयंकर युद्ध हुआ। बाणासुर की तरफ से भगवान शिव भी श्रीकृष्ण से युद्ध किये। श्रीकृष्ण ने बाणासुर के छियानबे हाथों को काट डाले। तब बाणासुर ने उषा-अनिरुद्ध का विवाह कर दिया और सब सुखी-सुखी रहने लगे।

बाणासुर का राज्य विस्तार

बाणासुर को अधिकतर ग्रन्थों में शोणितपुर का शासक बताया गया है। पर, कुछ ग्रन्थों में उस के शासन क्षेत्र का विस्तार भी बताया गया है। उत्तर में बामसू (वर्तमान उत्तराखण्ड का लमगौन्दी), मध्य भारत में बाणपुर (मध्यप्रदेश) में भी बाणासुर का राज था। बाणासुर बामसू में रहता था। बाणासुर को आज भी उत्तराखण्ड के कुछ गाँवों में पूजा जाता है। बाणासुर का राज्य विस्तार वर्तमान उत्तराखण्ड में भी था। अतः बाणासुर के नाम से एक पर्वत ‘वारणावत पर्वत’ उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में भी है।

बराबर पहाड़ी पर सिद्धेश्वरनाथ शिवलिंग हैं, वैसे ही वारणावत पर्वत पर विमलेश्वर महादेव का मन्दिर

जिस प्रकार बराबर पहाड़ी पर सिद्धेश्वरनाथ शिवलिंग हैं, वैसे ही वारणावत पर्वत पर विमलेश्वर महादेव का मन्दिर है।
शिवभक्त बाणासुर से सम्बन्धित ‘वारणावत’ नाम का स्थान भी है जो ग्रन्थ में प्रसिद्ध है। ‘महाभारत’ के अनुसार, वारणावत में ही पाण्डवों को जलाकर भस्म कर देने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह बनवाया था। युधिष्ठिर ने जिन पाँच ग्रामों को युद्ध से पूर्व दुर्योधन से माँगा था, उन में से एक वारणावत भी था। महाभारत के आदिपर्व में वर्णन है कि वारणावत में शिवोपासना से सम्बन्धित भारी मेला लगता था, जिसे ‘समाज’ कहा जाता था। इस प्रकार के ‘समाजों’ का उल्लेख अशोक के शिलालेख संख्या एक में भी है। माना जाता है कि शिवभक्त बाणासुर यहाँ शिवोपासना से सम्बन्धित मेले का आयोजन करवाता था। वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ जिलान्तर्गत ‘बरनावा’ स्थान ही प्राचीन वारणावत है। हिण्डन और कृष्णा नदी के संगम पर मेरठ नगर से 15 मील दूर बरनावा स्थित है।

नामकरण

बराबर पहाड़ी का वर्णन ग्रन्थों में ‘बाणावर्त पर्वत’ के नाम से है।

यह नामकरण शोणितपुर के राजा बाणासुर के नाम पर पड़ा। कालान्तर में यह अपभ्रन्शित होकर ‘बराबर पहाड़’ हो गया। ऊँचाई कम होने के कारण इसे अब पहाड़ी कहा जाता है- बराबर पहाड़ी।

सात गुफाएँ

बराबर पहाड़ी में सात प्राचीन गुफाएँ हैं। ये विस्तृत प्रकोष्ठों के रूप में निर्मित हैं। तीन गुफाओं में मौर्य वंश के प्रसिद्ध शासक अशोक के अभिलेख अंकित हैं। अभिलेख से विदित होता है कि अशोक ने वन और पर्वत के बीच गुफाओं का निर्माण परिभ्रमण करनेवाले भिक्षुओं के ठहराव के लिए करवाया था। बराबर पहाड़ी की दो गुफाएँ अशोक द्वारा शासन के 12वें वर्ष और 19वें वर्ष में भिक्षुओं को दान में दी गयी थीं। तीन गुफाओं का आकार बड़ा है- कर्णचौपार, विश्वझोपड़ी और सुदामा गुफा। गुफा की दीवारें अब भी काफी चिकनी हैं। एक गुफा में अन्दर बेंच की तरह ऊँचा बैठने का स्थान है। बताया जाता है कि उस पर परिव्राजक साधु टोली के प्रमुख (गुरु) बैठते थे और शिष्यगण नीचे बैठकर उन से निर्देश लेते या ध्यान करते थे। एक ‘लोमस ऋषि गुफा’ है जो लोमस ऋषि से सम्बन्घित है।

विशाल गुफा जहा पर सूर्य का प्रकाश नही पहुॅचता ‚ शोध का विषय

बड़ी गुफा के अन्दर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता। ऐसे में यह शोध का विषय है कि आखिर राजा अशोक के समय धुआँरहित वह कौन-सी प्रकाश व्यवस्था थी, जिस के प्रकाश में गुफा के अन्दर की निर्माण प्रक्रिया पूरी की गयी।
यहाँ मैं ने एक अधूरे निर्माणवाला गुफा भी देखा। प्रवेश द्वार से दो-तीन फीट तक गुफा की आन्तरिक दीवारें चिकना कर दी गयी हैं और शेष भाग पर पत्थर काटे जाने के निशान बरकरार हैं। इन के बारे में कहा जाता है कि निर्माण के दौरान अशोक के शासन काल की समाप्ति हो गयी और गुफा अधूरी रह गयी।

मनोरम वातावरण

यहाँ मनोरम व प्रदूषणरहित वातावरण है। प्राकृतिक छटाओं से परिपूर्ण बराबर पहाड़ी पर्यटकों को आकर्षित करती है। यहाँ वर्षभर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। बराबर पहाड़ी की प्राकृतिक वादियाँ, पाताल गंगा, नौका विहार, ऐतिहासिक व पुरातात्त्विक महत्त्ववाली गुफाएँ और झरना पर्यटकों को खूब आकर्षित करती हैं। झरने का जल अत्यन्त शुद्ध है, जिसे यहाँ के लोग पीते हैं।

बाबा सिद्धेश्वरनाथ

बराबर पहाड़ी की चोटी पर भगवान शिव सिद्धेश्वर शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। बाबा सिद्धेश्वरनाथ का मन्दिर काफी लोकप्रिय है।
यहाँ सालों भर जलाभिषेक करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। ‘शिवपुराण’ में कहा गया है कि भगवान शिव के नौ रूपों में ‘सिद्धनाथ’ का सर्वाेच्च स्थान है। यह साधना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सिद्धेश्वरनाथ या सिद्धनाथ मन्दिर के गर्भ गृह का प्रवेश द्वार छोटा है, जिस में झुककर अन्दर जाना पड़ता है। शिवलिंग के अलावा यहाँ आदिशक्ति का दुर्गा रूप और हनुमान की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। पहाड़ी के नीचे भी एक मन्दिर स्थानीय श्रद्धालुओं ने दशकों पूर्व स्थापित की है।

पहाड़ी के अन्दर मन्दिर

कहा जाता है कि बाणासुर ने बराबर पहाड़ी के अन्दर शिवलिंग स्थापित किया था। वह उस शिवलिंग की पूजा प्रतिदिन करने आता था। पहाड़ी के एक छोर से अन्दर की तरफ विशाल गुफा है जो जंगलों से अटा पड़ा है। यही अन्दर जाने का रास्ता है, जहाँ बाणासुर द्वारा स्थापित शिवलिंग है। अन्दर अब तक किसी के जाने का प्रमाण नहीं मिला है।

आये थे श्रीकृष्ण संग पाण्डव

कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव (पाण्डव) के साथ भगवान श्रीकृष्ण बराबर पहाड़ी के क्षेत्र में आये थे। परिभ्रमण के दौरान श्रीकृष्ण को प्यास लगी। तब अर्जुन ने धरती में तीर मारकर भूगर्भ जल को प्रकट किया। जहाँ अर्जुन ने तीर चलाया था, पहाड़ी पर वह स्थान आज भी गड्ढे के रूप में बरकरार है। पाताल गंगा के झरने का जल अब भी अत्यन्त शुद्ध है, जिसे पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

टुकड़ों में बँटी पहाड़ी‚सुविधाएँ विकसित

सरकार द्वारा इस स्थल को अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कई तरह की आधुनिक सुविधाएँ बहाल करायी गयी हैं। अब पाताल गंगा के निकट अत्याधुनिक संग्रहालय बनाया गया है। साथ ही कैफिटेरिया, सुदामा मार्केट कॉम्प्लेक्स, जल नौकाओं की सुविधा, अतिथिशाला और बाबा सिद्धनाथ मन्दिर तक जाने-आने के लिए सीढ़ियों का निर्माण श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।

पहुँच पथ
बिहार की राजधानी पटना से बराबर पहाड़ी की दूरी सड़क मार्ग से करीब 65 किलोमीटर है। भाड़े की गाड़ी या अपनी गाड़ी से यहाँ पहुँचा जा सकता है। रेलमार्ग से आने के लिए पटना जंक्शन से वैसी ट्रेन को पकड़ें जो पटना-गया रेलमार्ग से जाती हो और बेलागंज स्टेशन या बराबर हॉल्ट पर रूकती हो। यहाँ उतरकर भाड़े की गाड़ी से बराबर पहाड़ी तक पहुँच सकते हैं। यहाँ ठहरने के लिए सरकारी अतिथिशाला बना है। यहाँ खाने-पीने के सामान उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं।

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