सलिल पांडेय

★भूखे भजन न होगी नौकरी, निकल रही अब इंकलाब की टोली’
★नगरपालिका में कबीर की उलटबाँसी की गूंज
★प्रायः निर्वाचित प्रतिनिधि धरना देते रहे, इस बार अधिकारी देंगे धरना
★लम्हों ने ख़ता की सदियों ने सजा पाई की हालत

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

मिर्जापुर। ‘जबरा मारे रोए न देय’ कहावत पिछले नगरपालिका परिषद में लागू थी जिसमें लक्ष्मण-रेखा लांघ कर लिए गए ऐक्शन के चलते नगरपालिका के दो अधिकारियों का वेतन 7-8 माह से रुका हुआ है। जिसकी चिंगारी अब आग का गोला बनने जा रही है। एक अधिकारी के बाकायदा लिखित नोटिस की गूंज सुनाई पड़ रही । पक्षधरों का कहना है निलंबित कर्मचारी को भी गुजारा-भत्ता के रूप में आधा वेतन दिया जाता है जबकि उन्हें अधेला वेतन भी नहीं मिल रहा है।

मामला सिटी-क्लब को गैर हाथों सौंपने और न सौंपने की रस्साकस्सी से जुड़ा है

मामले को लेकर जो शोर मचा है वह यह है कि नगर के अति महत्वपूर्ण इलाके डीएम और एसपी ऑफिस की आंख के सामने सिटी क्लब को लगभग एक लाख 20 हज़ार रुपए माह किराए पर देने के लिए पिछले बोर्ड के कतिपय सिपहसालार वैसे ही आतुर थे जैसे मन्थरा राम की गद्दी छीनकर भरत के लिए इसलिए लालायित थी ताकि भरत के राज्य में उसकी बकैती चलती रहे। जबकि सिटी क्लब में करोड़ों-करोड़ों का पैसा मेंटनेंस में सरकारी लगा है । 5 साल के लिए यदि यह प्राइवेट हाथों में जाता तो फिर इसे छुड़ा पाना वैसे ही असंभव था जैसे दिन में तारों को देखने की उम्मीद पाल कर रखना।

क्या है ऐसा मामला

ऐसा इसलिए कि प्राइवेट व्यक्ति जब कभी नगरपालिका के खिलाफ कोर्ट जाता है तो नगरपालिका के गले में ‘हार’ का आदेश प्रायः लगता रहा है। पिछले 50 वर्षों में और खासकर निर्वाचित बोर्ड के कार्यकाल में किसी मुकदमे में पालिका जीती हो तो उसका रिकार्ड यदि जनता के सामने प्रस्तुत हो जाए तो पालिका को ‘नरक’पालिका कहने वालों को जवाब देने में आसानी हो जाएगी।

कर निर्धारण अधिकारी के कर (हाथ) काटे गए

सर्वप्रथम सिटी क्लब को प्राइवेट करने के मामले में कर निर्धारण अधिकारी का कद छोटा इसलिए किया गया ताकि दूसरे लोग दहल जाएं। उनका वेतन रोकने का प्रस्ताव पालिका एक्ट के विरुद्ध जाकर पास किया गया जबकि शासन से नियुक्त अधिकारी का वेतन रोकने का अधिकार बोर्ड को नहीं है बल्कि शासन में पत्र लिखने का है। कर निर्धारण अधिकारी की सेवा-पुस्तिका में कार्रवाई दर्ज करने की भी ख्वाहिश पिछले बोर्ड के कतिपय लोगों के मन में थी। इसमें कई ऐसे थे जो उन दिनों ‘नपा में जमकर लूट है, लूट सको तो लूट’ मन्त्र का जप शायद करते रहे हैं। अंतिम बैठक में ईओ का वेतन भी रोकने की यद्यपि शर्त रखी गई थी लेकिन किसी ने मिनिट-बुक में शब्दों के साथ खेल कर दिया और जनवरी से ईओ का भी वेतन रोक दिया गया।

लूट और लूट का साथ देने वालों को देर-सबेर सजा मिल कर रहती है

केवल पालिका के लिए नहीं जीवन के हर क्षेत्र में अन्यायी को ही नहीं अन्याय का साथ देने वालों को भी दंड का कुछ हिस्सा (डिविडेंड) उनके खाते में जाता है। यही कारण है कि बोर्ड का लगभग नवीनीकरण हो गया। अत्यंत मजबूत दिखने वाले सड़क पर आ गए। 38 में 26 सभासद घर बैठ गए। उनमें हो सकता है कि कुछ अन्याय के साथ न रहे हों लेकिन मौन रहने के चलते महाभारत में भीष्म जैसे प्रतापी को भी बाणों की शैय्या पर सोना पड़ा था।

रणक्षेत्र बन गया था नगरपालिका परिषद

जिस परिषद का दायित्व जनता के हित में होना चाहिए था, वह कभी ’18-’19 में डीएम से और बाद में अपने ही अधिकारियों से युद्ध में लग गया। बीच में कोरोना काल की कथा की चर्चा कोरोना से ज्यादा रोना हालत में पहुंचा देगी।

6 जुलाई को होगी बोर्ड की बैठक

नपा के नए अध्यक्ष श्याम सुंदर केसरी की दूसरी बैठक 6 जुलाई को होगी। यद्यपि बजट के लिए बैठक बुलाई गई है लेकिन वेतन का मुद्दा भी आ सकता है। क्योंकि नियम विरुद्ध वेतन रोकने का मामला कोर्ट की ओर भी जा सकता है। मानवाधिकार संगठन के कतिपय कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि काम कराकर वेतन न देना मानवाधिकार हनन की श्रेणी में आता है। बहरहाल जनहित में इस पार या उसपार होना चाहिए। चाहे अधिकारी हटें या वेतन रोक का निर्णय गलत है तो उसे रद्द होना चाहिए। वरना रस्साकस्सी में जनहित के मुद्दे आटा-चक्की के दो पाटन में गेहूं और घुन की तरह पिसते रहेंगें।