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विशेष रिर्पोट खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

कानून के मुताबिक देश में बलात्कार नॉन-कंपाउंडेबल अपराध है यानि इसके लिए किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता है। शिंभू बनाम हरियाणा राज्य के मामले में कहा गया था कि बलात्कार एक गैर-शमनीय अपराध है। यह समाज के ख़िलाफ़ अपराध है इसमें किसी भी तरह का समझौता करने या समझौता करने के लिए छोड़ने का मामला नहीं है।

क्रिमिनल चार्जेज से बचने के लिए रेप रेप पीड़िता से शादी का पैटर्न चिन्ताजनक

“एक चिंताजनक पैटर्न सामने आ रहा है, जहां आरोपी क्रिमिनल चार्जेस से बचने के लिए रेप पीड़िता से शादी करते हैं और एफआईआर रद्द होने या जमानत मिलने के बाद पर उसे छोड़ देते हैं।”

ये टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की है। जस्टिस कांता शर्मा ने आगे कहा ये भी कहा कि ये कोई मजाक की बात नहीं है कि पहले रेप करें और फिर फंस जाए तो शादी कर लें। रेप जैसे जघन्य अपराध को माफ नहीं किया जा सकता है और ना ही आरोपी को सिर्फ इस आधार पर छोड़ा जा सकता है कि वह विक्टिम से शादी करने के लिए तैयार है या कर चुका है।

दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी उन सभी अदालती फैसलों को एक आइना

दिल्ली हाई कोर्ट की ये टिप्पणी उन सभी अदालती फैसलों को एक आइना है,जहां बलात्कार पीड़िताओं को न्याय में दोषी के साथ शादी करने के लिए कह दिया जाता है। दोषी को सज़ा से बरी सिर्फ इसलिए कर दिया जाता है क्योंकि वह पीड़िता से शादी करने के लिए राज़ी हो जाता है। हाल ही में राजस्थान हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के मामले को तब रद्द कर दिया था जब आरोपी और पीड़िता दोनों ने अपने मतभेद सुलझा लिए और शादी कर ली।

RAPE जैसे अपराधों को CRPC की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके रद्द नहीं किया जा सकता

हालांकि जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने ये भी स्वीकार किया था कि बलात्कार जैसे अपराधों को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके रद्द नहीं किया जा सकता है।

बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट के इस केस में एक और अहम टिप्पणी सामने आई जिसमें अदालत ने कहा कि भले ही यौन संबंध नाबालिग की सहमति से बनाया गया हो, जिससे वो पूरी तरह इनकार कर चुकी है, फिर भी FIR को रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता है क्योंकि यौन संबंध के लिए नाबालिग की सहमति का इस उद्देश्य के लिए कोई महत्व नहीं है।

इसके पूर्व भी हो चुका है सुप्रिम कोेर्ट के फैसले पर विवाद

आपको शायद याद होगा कि साल 2021 में तत्कालीन चीफ़ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने महाराष्ट्र में एक स्कूली छात्रा के बलात्कार के आरोपीसे पूछा था कि क्या वो पीड़िता से शादी करना चाहता है। सर्वोच्च अदालत के इस सवाल पर बड़ा विवाद देखने को मिला था। भारत की क़रीब 4000 महिलावादी ऐक्टिविस्ट्स और संगठनों ने एक चिट्ठी लिखकर चीफ़ जस्टिस बोबडे से अपना फ़ैसला वापस लेने की मांग थी।

कई और ऐसे मामले सामने आए जहां अदालतों ने बलात्कार के बाद उससे शादी करने के वादे पर या तो अभियुक्त को ज़मानत दे दी गई या मामले की एफ़आईआर ही रद्द कर दी गई। हालांकि सवाल अब भी बरकरार है कि क्या शादी बलात्कार करने का लाइसेंस है, औऱ ऐसा लाइसेंस मिलने के बाद बलात्कार अभियुक्त अपने आप को क़ानून की नज़र में दोषमुक्त कर सकता है।

अदालत के कुछ हालिया बलात्कार और शादी के फैसलें

CASE NO 1– बीते साल 2022 में 10 अक्टूबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने अपने एक फैसले में बालात्कार के दोषी मोनू को इन दो तथ्यों के आधार पर ज़मानत दे दी थी कि पीड़िता और उसके पिता ने इस फ़ैसले का विरोध नहीं किया और पीड़िता पहले ही दोषी के बच्चे को जन्म दे चुकी हैं।

इस मामले में मोनू के ख़िलाफ़ अपहरण, बलात्कार और पोक्सो की धारा-3 और धारा-4 के तहत खीरी जिले की पुलिस ने मामला दर्ज किया था। घटना के समय पीड़िता की उम्र 17 साल थी। अदालत ने आदेश में कहा था कि, मोनू को इस शर्त पर रिहा किया जाए कि जेल से बाहर आने के तुरंत बाद वह रिहाई के 15 दिन के अंदर पीड़िता से शादी करेगा। वह शादी का रजिस्ट्रेशन करवाएगा। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मोनू पीड़िता को पत्नी और यौन हिंसा की घटना के बाद जन्मे बच्चे को एक बेटी के रूप में सभी अधिकार देगा।

CASE NO 02- इसी तरह 30 सितंबर को दोषी शोभन की ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान भी कुछ इसी तरह का आदेश सामने आया। अमेठी पुलिस द्वारा शोभन पर 19 वर्षीय लड़की के पिता की शिकायत पर बलात्कार, जहर देने, आपराधिक धमकी और गलत तरीके से कैद करने का मामला दर्ज किया था। नवंबर 2021 में इस मामले में एफआईआर दर्ज होने के समय पीड़िता सात महीने की गर्भवती थी। इस मामले में जज ने कहा था कि सर्वाइवर के वकील ने जमानत का विरोध किया है लेकिन तथ्यों का विरोध नहीं किया है। मेडिकल सबूत और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कि अभियोक्ता (प्रोसिक्यूटिक्स) ने बच्चे को जन्म दिया है। दोषी को ज़मानत देना उचित होगा। जज ने इसमें आगे जोड़ा था कि ज़मानत पर बाहर आते ही दोषी, सर्वाइवर से शादी करेगा।

CASE 02- इसी तरह अदालत में 28 सितंबर 2022 को सूरज पाल के केस की सुनवाई चल रही थी। सूरज पाल पर रायबरेली पुलिस द्वारा बलात्कार, पोक्सो और एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। 2 जुलाई 2021 से सूरज जेल में था। इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि आरोपी के वकील ने बताया है कि पीड़िता, उसके मुवक्किल के साथ साढ़े तीन महीनों तक सूरत में रही थीं। लॉकडाउन की वजह से वे वापस लौटे थे। आरोपी के वकील ने कहा, जैसे ही उन्हें जेल से रिहा किया जाएगा, वह अभियोक्ता से शादी करेगा क्योंकि मेडिकल आधार पर पीड़िता अब बालिग हो चुकी हैं। ऐसे में इन तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर दोषी को ज़मानत देना सही रहेगा।

CASE 03- ठीक इसी तरह 22 सितंबर को उन्नाव जिले के राम बाबू के मामले में भी अदालत में कहा कि दोषी, पीड़िता से औपचारिक तौर पर शादी करना चाहता है और उनकी बेटी की देखरेख करना चाहता है। इस मामले में भी अदालत ने कहा था कि अगर आरोपी शादी करने के लिए राजी है और वह उसे पत्नी की तरह सभी अधिकार देगा तो उन्हें आरोपी की ज़मानत से आपत्ति नहीं है।

पितृसत्तात्मक समाज के चेहरे की वास्तविकता

ऐसे ही कुछ और फ़ैसले बीते सालों में केरल, गुजरात और ओडीशा हाई कोर्ट ने भी दिए, जिनमें नाबालिग के बलात्कार के बाद उससे शादी करने के वादे पर या तो अभियुक्त को ज़मानत दे दी गई या मामले की एफ़आईआर ही रद्द कर दी गई। हर बार इन फैसलों का विरोध हुआ। कई सवाल भी उठे जिनमें ये कहा गया कि ऐसे अदालती फैसले एक बार फिर बलात्कार को हिंसा की नहीं, बल्कि समाज में इज़्ज़त लुटने की नज़र से देख रहे हैं। ऐसे में मान लिया जाता है, मानो उसके लिए सज़ा अनिवार्य ही ना हो। ऐसे फ़ैसले पितृसत्तात्मक समाज के चेहरे की वास्तविकता है कि यहां यौन हिंसा की घटना महिलाओं के साथ होती हैं और उसके बाद उसका दोष भी उन्हीं को दिया जाता है। इसे ही विक्टिम ब्लेमिंग कहा जाता है।

हाईकोर्टे की एक महिला अधिवक्ता के मुताबिक

“बलात्कार पीड़ित लड़कियों पर पहले ही परिवार का बहुत दबाव रहता है, और फिर जब वो बड़ी हिम्मत के बाद अदालत पहुंचती हैं और वहां से भी शादी जैसे रास्ते का सुझाव सामने आता है, तो ये उनके लिए दोहरी हार होती है। आप कैसे अपने ही अपराधी को अपनी लाइफ पार्टनर बना सकते हैं, ये सोच ही गलत है। इस तरह का इंसाफ़ सुझाने से पहले ये सबको ये समझने की जरूरत है कि इसका औरत की ज़िंदगी पर क्या असर पड़ेगा।”

यौन हिंसा की घटना महिलाओं के साथ होती हैं और उसके बाद उसका दोष भी उन्हीं को

गौरतलब है कि एक बालात्कार आरोपी का पीड़िता से शादी करने का फ़ैसले पितृसत्तात्मक समाज के चेहरे की असली कहानी बयां करता है, जहां यौन हिंसा की घटना महिलाओं के साथ होती हैं और उसके बाद उसका दोष भी उन्हीं को दिया जाता है। इस व्यवस्था का मानना है कि बलात्कार के बाद महिला की जिंदगी कुछ बचती नहीं है, शादी के लिए वह अयोग्य हो जाती है और इसलिए पीड़िता के प्रति संवेदना दिखाने के लिए बलात्कार के दोषी से ही शादी का सुझाव, उसके हित की तरह देखा जाता है। हालांकि महिला कार्यकर्ता शुरू से इस तरह के फैसलों को रेप कल्चर को बढ़ावा देने वाला कहकर विरोध करते आए हैं, ऐसे में दिल्ली हाई कोर्ट की ये टिप्पणी उन तमाम आरोपियों के लिए एक चेतावनी और पीड़िताओं के लिए एक उम्मीद नज़र आती है।

धारा 376 आईपीसी- बलात्कार के लिए दण्ड , IPC Section 376 ( IPC Section 376. Punishment for rape )

जो भी व्यक्ति, धारा 376 के उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत दंडनीय अपराध करता है और इस तरह के अपराधिक कृत्य के दौरान लगी चोट एक महिला की मृत्यु या सदैव शिथिल अवस्था का कारण बनती है तो उसे एक अवधि के लिए कठोर कारावास जो कि बीस साल से कम नहीं होगा से दंडित किया जाएगा, इसे आजीवन कारावास तक बढ़ा या जा सकता हैं, जिसका मतलब है कि उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए या मृत्यु होने तक कारावास की सज़ा।

किसी भी महिला से बलात्कार किया जाना, चाहे वह किसी भी उम्र की हो, भारतीय कानून के तहत गंभीर श्रेणी में आता है। इस संगीन अपराध को अंजाम देने वाले दोषी को भारतीय दंड संहिता में कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान है। इस अपराध के लिये भारतीय दंड संहिता में धारा 376 के तहत सजा का प्रावधान है। तो क्या है धारा 376 और क्या हैं इसके तहत सजा का प्रावधान, आइए चर्चा करते हैं- ^
^आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013

लागू अपराध
1. बलात्कार
सजा – 7 वर्ष से कठोर आजीवन कारावास + आर्थिक दण्ड
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध और सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय है।

2 -एक पुलिस अधिकारी या एक सरकारी कर्मचारी या सशस्त्र बलों के सदस्य या जेल के प्रबंधन / कर्मचारी, रिमांड घर या अन्य अभिरक्षा की जगह या महिला / बच्चों की संस्था या प्रबंधन पर किसी व्यक्ति द्वारा बलात्कार द्वारा बलात्कार या किसी अस्पताल के प्रबंधन / कर्मचारी द्वारा बलात्कार और बलात्कार पीड़ित के किसी भरोसेमंद या प्राधिकारिक के व्यक्ति द्वारा जैसे किसी नज़दीकी संबंधी द्वारा बलात्कार|
दंड – 10 साल से कठोर आजीवन कारावास (शेष प्राकृतिक जीवन तक के लिए) + आर्थिक दण्ड
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध और सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय है।

यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है

क्या है धारा 376?

किसी भी महिला के साथ बलात्कार करने के आरोपी पर धारा 376 के तहत मुकदमा चलाया जाता है, जिसमें न्यायालय में पुलिस द्वारा जाँच पड़ताल के बाद इकट्ठे किये गए सबूतों और गवाहों के बयानों के आधार पर दोनों पक्षों के वकील दलीलें पेश करते हैं, दलीलों के आधार पर जज अपने अनुभव और विवेक से निर्णय लेते हैं, अंत में अपराध सिद्ध होने की दशा में दोषी को कम से कम सात साल व अधिकतम 10 साल तक कड़ी सजा और आजीवन कारावास दिए जाने का प्रावधान है। जिससे कि अपराधी को अपने गुनाह का अहसास हो और भविष्य में वह कभी भी बलात्कार जैसे संगीन अपराध को करने कि कोशिश भी न करे।

क्या धारा 376 पत्नी से दुष्कर्म करने पर भी लागू हो सकती है?

दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि 15 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ विवाह के बाद जब संभोग होता है, तो उसे बलात्कार ही माना जाएगा। हाईकोर्ट ने कहा है कि संभोग के लिए भले ही लड़की की रजामंदी हो या न हो, तब भी इसे बलात्कार ही माना जाएगा, और ऐसे मामलों में पुरुष को उसके धार्मिक अधिकारों के तहत कोई भी संरक्षण हासिल नहीं है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए. के. सीकरी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ का कहना था कि, ”15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ संभोग आई. पी. सी. की धारा 376 के तहत एक अपराध है। इस कानून के विषय में कोई अपवाद नहीं हो सकता है और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।”

आई. पी. सी. की धारा 375 परिभाषित करती है दुष्कर्म को

जब कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध, उसकी सहमति के बिना, उसे डरा धमका कर, दिमागी रूप से कमजोर या पागल महिला को धोखा देकर या उस महिला के शराब या नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं होने पर संभोग करता है, तो उसे बलात्कार कहते हैं। इसमें चाहे किसी भी कारण से संभोग क्रिया पूरी हुई हो अथवा नहीं, कानूनन वो बलात्कार की श्रेणी में ही रखा जायेगा। यदि महिला की उम्र 16 वर्ष से कम है तो उसकी सहमति या बिना सहमति से होने वाला संभोग भी बलात्कार के अपराध में ही गिना जाता है। इस अपराध को अलग-अलग हालात और श्रेणी के हिसाब से भारतीय दंड संहिता में इसे धारा 376, 376 (क), 376 (ख), 376 (ग), 376 (घ) के रूप में विभाजित किया गया है।

यह कानून प्रत्येक स्थिति में लागू होता है

भारतीय दंड संहिता की धारा 376 की उप धारा (2) के अनुसार यह बताया गया है कि कोई पुलिस अधिकारी पुलिस थाने परिसर की सीमा के अंदर और बाहर या कोई सरकारी कर्मचारी अपने पद और आधिकारिक या शासकीय शक्ति और स्थिति का दुरुपयोग महिला अधिकारी या कर्मचारी के साथ संभोग करेगा, तो वह भी बलात्कार ही माना जाएगा। यह कानून जेल, चिकित्सालय, राजकीय कार्यालयों, बाल एवं महिला सुधार गृहों पर भी लागू होता है। इस प्रकार के सभी बलात्कार के दोषियों को कठोर कारावास की अधिकतम सजा हो सकती है। जिसकी अवधि दस वर्ष या उससे अधिक हो सकती है, या आजीवन कारावास और जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।

यदि संबंध आपसी सहमति से बना है तो बलात्कार की श्रेणी में नहीं आएगा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि अगर कोई शिक्षित और 18 वर्ष से अधिक उम्र की लड़की रिलेशनशिप में किसी पुरुष के साथ अपनी सहमति से संबंध बनाती है, तो रिश्ते खराब होने के बाद वह उस व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप नहीं लगा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा है, चूँकि अपने समाज में यौन संबंध बनाना सही नहीं माना जाता है, तब भी यदि कोई महिला यौन संबंधों के लिए अपने प्रेमी या उस व्यक्ति से जिससे वह यौन सम्बन्ध बना रही है, से इंकार नहीं करती है, तो फिर उसे आपसी सहमति से बनाया गया यौन संबंध ही माना जाएगा।

क्या केवल धारा 376 में ही बलात्कार की सजा दी गयी है

भारतीय दंड संहिता,1860 में बलात्कार के दोषी के लिए धारा 376 में कड़ी सजा का प्रावधान दिया गया है, किन्तु कई परिस्तिथियां ऐसी भी होती हैं जहाँ धारा 376 की सभी शर्तें पूर्ण नहीं होती हैं, तब ऐसी अवस्था में भारतीय दंड संहिता में आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 के तहत कुछ अन्य धाराओं का प्रावधान दिया गया है, जिससे यदि किसी व्यक्ति ने किसी भी प्रकार से बलात्कार जैसे संगीन अपराध को अंजाम दिया है तो वह अपराधी किसी भी तरह से बच न सके और न्यायलय द्वारा उसे कड़ी से कड़ी सजा प्रदान की जाये। तो आइये जानते हैं कि धारा 376 के अतिरिक्त वह और कौन सी धाराएँ हैं-

  1. 376 (क)-
    यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के विभाजन के तहत अलग रहने के दौरान अपनी पत्नी के साथ उसकी मर्जी के विरुद्ध संभोग करता है तो वो भी बलात्कार की श्रेणी में ही आता है। जिसके लिए कानून में दो वर्ष तक की सजा और आर्थिक दंड का प्रावधान दिया गया है।
  2. 376 (ख)
    यदि किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा उसकी हिरासत में किसी भी स्त्री के साथ संभोग किया जाता है, तो इस दुष्कर्म को बलात्कार के अपराध की श्रेणी में गिना जाएगा। जिसके लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुसार पांच वर्ष तक की जेल की सजा के साथ आर्थिक दंड भी देना पड़ेगा।
  3. 376 (ग)
    जब कोई अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, जेल, रिमांड होम, हिरासत के किसी अन्य स्थान, स्त्रियों या बालको की संस्था का अधीक्षक या प्रबंधक या अस्पताल का कर्मचारी होते हुए, ऐसी किसी स्त्री, जो की उसकी हिरासत में है या उसके अधीन है या परिसर में उपस्थित है उस स्त्री को अपने साथ शारीरक सम्बन्ध बनाने के लिए उत्प्रेरित करने लिए अपनी शक्ति का दुरूपयोग करता है, तो उस व्यक्ति को पांच साल या दस साल की कारावास की सजा से दण्डित किया जाता है और जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।
  4. 376 (घ)
    जहाँ किसी स्त्री के साथ एक या एक से अधिक वयक्तियों द्वारा मिलकर या समूह बना कर सामूहिक बलात्कार किया जाता है, तो उन सभी व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति के बारे में यह समझा जायेगा की उसने बलात्कार का अपराध किया है। ऐसे में दोषी अपराधियों को न्यायलय द्वारा दण्डित किया जायेगा, जो की बीस साल की कारावास की सजा या आजीवन कारावास की सजा और जुर्माने के साथ भी दण्डित किया जाएगा। लेकिन ऐसा जुर्माना पीड़िता के चिकित्सीय खर्चो को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित होगा।
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