सलिल पांडेय
- एक्सिस बैंक : लुटेरों के हिस्से खुशियों का टैंक तो मृतक गार्ड के हिस्से आश्वासनों का रैक!
- ‘मुल्ज़िम जल्द पकड़े जाएंगे’ का भरोसा पर पूर्व में कई घटनाओं में अंत तक नहीं पकड़े गए थे
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
मिर्जापुर। बेलपत्र बाबा भोलेनाथ को बहुत पसंद है। बेलपत्र ऊपर और बाबा का शिवलिंग नीचे तो उनका रूप कृपालु हो जाता है। भोलेनाथ इतने भोले हैं कि देवताओं पर भी प्रसन्न हो जाते हैं तो दैत्यों को भी वरदान देने में पीछे नहीं हटते, ऐसा उल्लेख धर्मग्रन्थों में पदे-पदे ऋषियों ने किया भी है। ताजा सन्दर्भ लें तो बेलतर में भोलेनाथ की मौजूदगी साक्षात दिखती है। इस इलाके में कारोबार भी तेजी से फल-फूल जाता है। घर के बाहर पटरी पर ठेला लगाने का 500/- रु किराया प्रतिदिन के हिसाब से लिया जाता है। यानी अस्थाई दुकान का 15000/- महीने की आमद है तो यहां स्थित एक बैंक में साल-दो साल के अंतराल पर दैत्य स्वरूप लुटेरों का भी भाग्य चमक उठता है। हजार-दो हजार या लाख दो लाख नहीं बल्कि इन दैत्यों के हिस्से औसतन साढ़े 42 लाख रुपए हाथ लग ही जा रहे हैं। दो साल पहले 50 लाख और गत 12 सितंबर को 35 लाख का औसत साढ़े 42 लाख होता है। यानी साढ़े तीन लाख रुपए महीने की आमदनी बदमाशों को हो जा रही है।
एक्सिस बैंक पर एक्सेस ख़ुफ़िया नजर की जरूरत
इस तरह की बात एक्सिस बैंक के अनेक लोगों को अच्छी नहीं लगेगी लेकिन जिन्हें अच्छी न लग रही ये वे जरा यहीं बता दें कि 40 से 50 लाख की लूट-हेराफेरी इसी बैंक में इधर कुछ सालों में क्यों हो रही है? क्या इससे आमधारणा यह नहीं बन रही कि कम तनख्वाह पर काम करने वाले प्राइवेट बैंक की साख पर बट्टा नहीं लग रहा?
विगत कुछ सालों में जो निकाले गए या नौकरी छोड़ कर गए लोग क्या कर रहे?
सरकारी विभागों से लेकर प्राइवेट बैंकों तक में अल्प वेतन में काम करने वालों की क्या स्थिति है, यह जगजाहिर है। न इनके सर्विस की गारन्टी और न सर्विस बुक बनता है, लिहाजा अनेक स्थलों से ख़बर आती ही रहती है कि ऐसे कर्मी कुछ भी करने से पीछे नहीं रहते। तनख्वाह 8-10 हजार से शुरु होता है और अधिकतम 18-20 तक जाता है। ऐसे अनेक कर्मी जब देखते हैं कि उनके साथ वही काम करने वाले तृतीय स्तर के कर्मी 70-80 हजार पा रहे हैं तब इसे अनेक कर्मी फाऊल गेम खेलने का प्लान भी अवश्य बनाते होंगे। कहीं पब्लिक को परेशान करते हैं और जहां ऊपरी कमाई का मौका नहीं मिलता तो ‘बुभुक्षित: किं न करोति पापं’ को अपने जीवन का मंत्र बना लेते अवश्य होंगे ।
इन पर भी नज़र हो
मुहल्ले के साथ अन्य बैंकों तथा आसपास के जिलों में विविध नौकरियों से बर्खास्त गार्डों पर नज़र रखी जाए। इस दिशा में भी एक्शन की जरूरत है।
कहीं मुर्गा-दारू, तो कहीं मलाई-रसमलाई तो कहीं पक रही आश्वासनों की खिचड़ी!
लुटेरे जहां होंगे दारू-मुर्गा का दौर चलता होगा। जो ‘बॉस’ होगा वह शोले फ़िल्म के गब्बर सिंह की तरह ‘तीनोंSSS बच गए?’ की जगह ‘जीओ मेरे चारों लाल’ कहकर पीठ ठोकता होगा। कभी-कभी पुलिस की भी अपराधियों से मिलीभगत की बातें सामने आती हैं। यदि इस मामले में कोई पुलिस वाला सुरागर्सी में लगा होगा तो उसको ‘मलाई-रसमलाई’ चाभने का अवसर मिल ही गया होगा जबकि मृतक गार्ड के परिवार में आश्वासनों की खिचड़ी पक रही है।
कैसे बनती होगी यह खिचड़ी!
परिजनों के हृदय में धधकती आग पर मुल्जिम जल्द पकड़े जाएंगे के वायदे के बटुले में, सहानुभूति के बटुले में, आँसूंओं के रूप में बहाए पानी, आश्वासनों की दाल तथा कदम-कदम पर साथ देने के चावल से खिचड़ी पक रही है। इसमें तरह-तरह के अखबारी पन्नों का नमक तथा ढेरों चल रहे वीडियो का तड़का दिया जा रहा है।
मुल्जिम जल्द पकड़े जाएंगे लेकिन जल्द की कोई सीमा नहीं बताई जा रही
इस बीच फर्ज-अदायगी के निमित्त यह भी कहा जा रहा कि मुलजिम जल्द पकड़े जाएंगे। लेकिन जल्दी की कोई सीमा नहीं बताई जा रही। ऐसे ही सिंचाई कर्मी मूलचंद की हत्या, लालगंज में तीन बच्चों की रहस्यमय हत्या, तकरीबन 15 साल पहले लोहदी के पास तत्कालीन ASP के गनर की हत्या के समय भी कुछ ऐसे ही जल्दी का आश्वासन दिया गया था। यह जल्दी आज तक पेंडिंग है । आश्वासनबाजों को कुछ तो बोलना है, वरना लोग क्या कहेंगे, लिहाज़ा इतना वाक्य बोलना जरूरी भी है।