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सलिल पांडेय

  • अगले मंगलवार 26/9 को कहाँ लगेगा नम्बर, इसका अनुमान लगाने लगे हैं लोग !
  • लग तो ऐसा रहा कि एक्सिस बैंक की हर शाखा में पुलिस चौकी खोलनी पड़ेगी और प्रभारी IPS लेविल का ही तैनात करना पड़ेगा।
  • ‘बड़े हाथों’ की स्तपरस्ती होगी तो केस वर्कआउट नहीं बल्कि पूरी तरह ‘आउट’ हो सकता है।

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

मिर्जापुर। उचक्कागिरी और लूट की पटकथाओं से एक्सिस बैंक ‘लूट का प्रैक्टिस बैंक’ बनता जा रहा है। मिर्जापुर में दो साल के भीतर 85 लाख उचक्कागिरी और लूट के बाद छत्तीसगढ़ में 5 करोड़ 62 लाख की लूट से जो निष्कर्ष निकाला जा रहा है, वह यह है कि बैंक इसी तरह की घटनाओं से या तो तालाबन्दी की ओर जा सकता है या इसकी देश भर की शाखाएं धरती के ऊपर नहीं बल्कि पाताल लोक में ही खोली जाएगी या हर बैंक में एक तगड़े IPS की इंचार्जी में बैंक में पुलिस चौकी खोलनी पड़ सकती है और साथ ही प्राइवेट इस बैंक में हर ग्राहक एक सिक्योरटी गार्ड लेकर जमा-निकासी करने जाए। इसके अलावा बैंक के हर प्राइवेट स्तर के बहुत कम वेतन एवं इंसेंटिव पाने वाले कर्मियों को घर से पुलिस अभिरक्षा में सुबह लाया जाए बैंक तथा शाम सकुशल घर वापस पहुँचाया जाए।

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अगला अटैक?

लूट को दमदार अंतरप्रांतीय बनाए रखने के लिए 12 सितंबर को यूपी के मिर्जापुर जिले में 35 लाख और दूसरे मंगलवार को छत्तीसगढ़ में साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा लूट को देखते हुए अनुमान यही है कि अगला टारगेट शेयर मार्केट के हाई छलांग की तरह इससे दो-तीन गुना अधिक हो सकता है।

अगला मंगलवार 26 सितंबर को है

लगतार दो मंगलवार पुलिस और निजी सुरक्षा तंत्र का क्लीन बोल्ड कर विकेट चटकाने के बाद अगला नम्बर बिहार, मध्यप्रदेश या झारखंड में हो सकता है। ताकि पुलिस इन घटनाओं को अंतरप्रांतीय गिरोह मानकर तथा एक दूसरे प्रांतों के ऊपर दोषारोपण कर अपनी-अपनी पीठ खुद ही ठोके और लोकल मददगार पर से ध्यान हट जाए।

26 को वामन द्वादशी है और इसी दिन अवतरित हुए वामन भगवान ने दैत्य-सम्राट बलि को रसातल में भेजा था

यदि 26 सितंबर को एक्सिस बैंक में लुटेरों ने ‘लूट की प्रैक्टिस’ की, तब तो सार्थक हो जाएगा कि एक्सिस बैंक का भविष्य गर्दिश में है। घाटा खाते-खाते बैंक तालबन्दी का शिकार न हो जाए।

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लूट के रुपयों का हिसाब हो

°जांच टीम को चाहिए कि लूट की वास्तविक रकम क्या थी, इस पर भी गौर करे। ऐसा तो नहीं कि लूटा कुछ जाए और रकम बढा चढ़ाकर बताया जाए। यदि ऐसा साबित होता है तो लूट की आड़ में कुछ और इरादों पर शक जाएगा ही।

छत्तीसगढ़ के बाद जांच का दायरा बदलना पड़ेगा

यह दावा सही नहीं लगता कि मिर्जापुर की घटना के मुल्जिमों की पहचान हो गई है, सिर्फ पकड़ना तक बाकी है। अनुमान के आधार पर विगत दो दशकों के हिस्ट्रीशीटरों की धड़पकड़ और पूछताछ की बात सही है लेकिन पुलिस के हावभाव से लग यही रहा है कि ‘तीर-तुक्का’ का मामला है। इतने बड़े लुटेरों पर ‘बड़े हाथ की सरपरस्ती’ होगी तो केस वर्कआउट नहीं बल्कि डेड-आउट हो सकता है। पूरे रुपए और असलहे बरामद ही हो जाए, इसकी गारन्टी नहीं दी जा सकती है।