सलील पांडेय की रिर्पोट
- लाश पर तो कौए और चील मंडराते देखा जाता है, इंसान मंडराते भी देख लिया लोगों ने
- एक्सिस बैंक लूट से मुंह मोड़े यार-दोस्त मलाई-रसमलाई के चक्कर में दौड़ पड़े?
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
मिर्जापुर। इसी जिले के चुनार-किला में समाधि लेने वाले ज्ञान के किलाधीश भर्तृहरि द्वारा रचित ‘नीतिशतकम्’ का श्लोक साक्षात आंखों के सामने देखने को मिला जब ईसा पूर्व के ‘अशोका-द-ग्रेट’ सम्राट अशोक और मध्यकाल के मुगल बादशाह ‘अकबर-द-ग्रेट’ की ऐतिहासिक प्रसिद्धि के विपरीत ‘पॉपुलर-द-ग्रेट’ की एक कथा जिले में घटित हो गई जिसमें कलियुगी भगवानों ने ‘मृत व्यक्ति के शव का भक्षण तथा खून पीने का’ नया अध्याय लिख दिया। शव में तो कुछ ही क्षणों में दुर्गंध आ जाता है जबकि इन महान व्यक्तित्वों ने नाक पर जरूर पट्टी बांध ली होगी, उन्हें दुर्गंध नहीं आई। आंख तो धृतराष्ट्र स्टाईल में है ही। कुछ दिखता ही नहीं तो हया-शरम और पानी आएगा कहाँ से ?
भर्तृहरि के नीतिशत को चरितार्थ करते मनुष्य रूप में पशु
‘साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाण- हीनः’ – इस श्लोक में थोड़ा परिवर्तन की जरूरत है। पहली पंक्ति में ‘संवेदना, दया और सेवा विहीन:’ जोड़ कर अगली लाइन जस की तस लिख दी जाए तो मामला सटीक बैठता है। अगले श्लोक में ‘मनुष्य रूपेण मृगा: चरन्ति’ पंक्ति भी लालायित है, ऐसे लोगों की खिदमत में।
लाश पर तो चील और कौए मंडराते हैं जबकि कौरवनरेश की भी आंखों में पानी आ ही गया था
हुआ यह कि लालगंज क्षेत्र के अति निर्धन एक युवक की मृत्यु के बाद नगर के जंगीरोड स्थित एक हॉस्पिटल जिसे ‘यमराज के हॉस्पिटल’ की संज्ञा दी जाती है, वहां इलाज के लिए आए युवक के परिजनों से 70-80 हज़ार ऐंठने के बाद भी जब उसे नहीं बचाया जा सका तब उसकी डेड बॉडी को ‘यमराज के दलाल चिकित्सकों’ ने वाराणसी भेजने के लिए जबर्दस्ती जिस ढंग से नाकाम कोशिश की, उससे ही शक हो गया कि युवक जिंदा नहीं है। परिजनों ने जब आपत्ति की और हल्ला- बोल करना शुरू कर दिया तब आधुनिक जमाने के पॉपुलर-द-ग्रेटों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई और वे थरथराने लगे तथा पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया था।
क्या करें क्या न करें?
ये पॉपुलर-द-ग्रेट श्रेणी के लोगों ने पहले तो खुद ही मामला रफा-दफ़ा करना चाहा क्योंकि ‘मामला निपटाओ विंग’ की मदद लेने में ‘जज़िया-कर’ देना ही पड़ता है। जब कोई उपाय नहीं सूझा तब ‘हुजूर, माई-बाप हाज़िर हों’ की मुनादी करानी ही पड़ गई।
भए प्रकट कृपाला, हिस्सा लेने वाला
नगर के एक्सिस बैंक लूट मामले में जहाँ लखनऊ से लेकर जिले भर के ऑफिसरों को बिना ‘अल्प्राजोलम’ टैबलेट के नींद नहीं आ रही और पुलिस के ऑफिसरों को दो कौर भोजन निगलते नहीं बन रहा, वहीं मलाई-रसमलाई तथा शुद्धतम घी की जलेबी-इमिरती की फ़िराक में रहने वाले कतिपय ‘मौसेरे भाई’ का रिश्ता रखने वाले खादीधारी और अनैतिक कार्यों के ऐक्सपर्ट यार-दोस्त आ गए मौके पर। जबतदस्ती सुलहनामा लिखवाने के लिए विवश कर दिया उन असहायों को, जिनके उत्थान के लिए डबल इंजन सरकार दिन रात अप-डॉउन लाइन पर परमानेंट ग्रीन सिग्नल के दौड़ते रहने का दावा करती है।
हर मरने वाले के साथ ऐसा क्यों होता है?
यहां मरीज तो मरीज, एक डॉक्टर भी जब रहस्यमय ढंग से पिछले वर्षों में मरा था तब भी बवाल हुआ था। इस अस्पताल का नाम ही ‘बवाल अस्पताल’, यमराज हितैषी केंद्र कर दिया जाए तो कम नहीं है।