सलिल पांडेय
नन्हें बच्चों के लिए सर्वोत्कृष्ट संसद/विधानसभा तो मां की गोद और आँचल ही है
पर गोद में बाल रूप भगवान को पालन-पोषण करने से ज्यादा आनन्द राजनीतिक क्षेत्र से लेने के लिए बेचैन हैं तमाम माताएं
इससे वँचित किया गया तो घातक परिणाम झेलने के लिए तैयार रहना होगा
समाजशास्त्री एवं मनोविशेषज्ञ चिंतन करें
1-हर कोई संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण का स्वागत कर रहा है।
2-इसका कारण राजनीतिक मजबूरियां भी हो सकती हैं।
3-त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था में तो यह लागू पहले से ही है।
4-बहुत से लोगों की राय है कि अब तो हर क्षेत्र में 100% आरक्षण महिलाओं को दे दिया जाए।
बच्चों के मौलिक अधिकार पर भी सोचना होगा
1-घर का पुरुष और महिला (पति-पत्नी) सदस्य अपने नन्हें बच्चों को किसके भरोसे जीने के लिए करेंगे?
2-क्या उन्हें अपने माता पिता के प्राकृतिक और नैसर्गिक स्नेह-प्यार और छत्रछाया की जरूरत नहीं है?
3-क्या मामूली वेतनभोगी नौकर माता-पिता का स्थान ले सकेंगे?
4-पश्चिमी देशों में परिवार इन्हीं कारणों से विखण्डित होने की बातें की जाती हैं।
उदाहरण: कुछ ही पल माता पार्वती सिर्फ़ स्नान के लिए पुत्र से दूर हुईं और पुत्र का सिर कट गया था
1-ऐसी स्थिति में यदि मां किसी पद पर हैं तब गृहस्थी के लिए पिता को घरेलू दायित्व दिया जाए।
2-जहाँ भी 33% महिला आरक्षण है, उस क्षेत्र में लाभान्वित महिला के पति को बच्चों के लालन-पोषण तथा पौष्टिक आहार आदि के इंतजाम एवं देखभाल के लिए अनिवार्य रूप से आरक्षित किया जाए।
25 वर्ष से ऊपर की महिला और पुरुष राजनीति करेंगे तो बच्चे क्या करेंगे?
1-नन्हें बच्चों को माता-पिता की छत्रछाया से अलग करना अत्यंत क्रूरतापूर्व कार्रवाई कही जाएगी।
2-भारतीय संस्कृति में 10 साल तक के बच्चे देवी-देवता माने गए हैं।
3-उन्हें निरीह स्थिति में नौकर के सहारे छोड़ना अत्यंत घातक और स्वार्थपूर्ण सोच है, क्योंकि जिस तरह देखभाल रक्त-संबंधों के लोग कर सकते हैं, वह नौकर/नौकरानी नहीं कर सकती।
4-माता-पिता के स्पर्श और दृष्टि से बच्चों को शक्ति और संस्कार मिलता है। यह विविध शोधों में स्पष्ट हो गया है।
5-पक्षियां घोसलों में अंडों को स्पर्श से शक्ति देती हैं । अनेक जीवजन्तु दृष्टि और चिंतन से शक्ति देते हैं।
6-मनुष्य राजनीतिक चिंतन में लग कर बच्चों को निरीह छोड़ने के लिए उद्यत हैं।
7-नतीजा स्पष्ट है। वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं। माता-पिता के अपमान की घटनाएं बुलेट-ट्रेन तथा चक्रवृद्धि ब्याज की दर से बढ़ रही हैं।
फिर वृद्धावस्था में पुत्र मुंह मोड़ेगा तो मत कहना कि सन्तान नालायक है!
1-उक्त दलीलों को दकियानूसी विचार भी कहा जा सकता है लेकिन यह कहीं से महिला उत्थान के संदर्भ में विरोधी विचार नहीं है।
2-नन्हें बच्चों के लिए सर्वोत्कृष्ट संसद मां की गोद है, मां का आँचल और पिता की छत्रछाया है।
3-दोनों इससे भाग गए तो फिर बच्चों को अपने भाग्य के सहारे ही जीना पड़े।