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सलिल पांडेय

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

मिर्जापुर। यहां की भाजपा में तन-मन के साथ धन से भी आगे रहने वाले सन्तोष गोयल के अचानक इस्तीफे से फिलहाल पार्टी में कोई बड़ा भूचाल तो आता नहीं दिखाई पड़ रहा है लेकिन आने वाले दिनों में इस्तीफे की इस चिनगारी के और सुलगने की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा रहा है। पिछले 10 सालों में विभिन्न दलों की छोटी-मोटी पहाड़ी नदियों के शामिल होने से विराट बनकर बहती भाजपा के सिकुड़ने की कथा यहां से शुरू भी हो सकती है।

गोयल ने बड़े नेतृत्व पर गोल किया है

गोयल के इस्तीफे का प्रथम दृष्टया तो यही अर्थ निकाला जा रहा है कि सन्तोष गोयल नगर के नम्बर एक के नागरिक होना चाहते थे लेकिन उन्हें दोयम ही दर्जे पर ही रहने दिया गया लिहाजा वे अपने नाम के विपरीत अपना असन्तोष भाव इस्तीफा देकर झलका गए।

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तन-मन से ज्यादा धन की दी आहुति

बसपा के हाथी से कूद कर जब वे ‘कमलधारी’ हुए थे तब उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में ‘अरुणोदय’ की संभावना तलाशी तथा हर पल ‘अरुण’ को अर्घ्य देने लगे जबकि धर्मशास्त्रों में प्रातःकाल ही ‘अरुण’ की आराधना की जाती है। प्रायः ‘अरुण’-उपासना में केवल एक लोटा जल ही समर्पित किया जाता है लेकिन अरुण-उपासना में गोयल धूप-दीप- नैवेद्य- भोग-अलंकार में पीछे नहीं रहते थे लेकिन यहां की भाजपा अपने ‘ओरिजनल स्वरूप’ की जगह ‘परदेशी- परदेशी तेरे बिना जीना नहीं’ गीत गाती बताई जा रही है लिहाजा सन्तोष गोयल के सन्तोष नाम का सब्र फूट पड़ा और उन्हें लगा कि जिस अरुण-मन्त्र का जाप वे कर रहे हैं, उससे उल्टा असर पड़ रहा है और यह मंत्र अस्ताचल की ओर जाते ‘अरुण का मंत्र’ है। जिसके बाद तो अंधेरी रात ही आने वाली है।

इस्तीफे का मैटर

इस्तीफे में गोयल ने जो कुछ लिखा वह पूरी भाजपा के लोगों की अंतर्मन की कहानी तो है ही। इस बार पार्टी के अध्यक्ष पद पर मनोनयन के पूर्व हुए इंटरव्यू के बाद से ही लगने लगा था कि अगला अध्यक्ष कौन होगा? मैच फिक्सिंग की बात सामने आई। राष्ट्रीय स्तर तक के नेताओं की फोटो-स्टेट कॉपी समझे जाने वाले इंटरव्यू से जब पीछे हट गए तो पेंसिल से भाग्य लिखाने के लिए लालायित लोगों को कौन पूछे?

सुलगती आग को हवा मिली तो..?

सन्तोष गोयल तो एक उदाहरण हैं। ठहाका लगाकर ‘कप-प्लेट’ में मजबूरी की चाय पीकर अपना अस्तित्व बचाए रखने वाले ‘कमलछाप’ लोग यह तो स्वीकार ही कर रहे है कि ‘अमित-वरदान’ से ऐसा सब कुछ हो रहा हैं। हम कर भी क्या सकते हैं?

दिव्या-प्रकरण

जिले से जिस तरह डीएम दिव्या मित्तल को हटाया गया और सत्ता के भीष्म पितामह से लेकर द्रोणाचार्य तक खामोश रहे, उससे यहां का व्यापारी समुदाय हतप्रभ और आहत हुआ था। राजनीति में चुनावी-चासनी की परंपरा के चलते कहीं न कहीं व्यापारी राजनीति करने वाले इस ट्रांसफर को तब से पचा नहीं पा रहे जब यह बात सरेआम होने लगी कि ‘बाबा’ के आशीर्वाद के बावजूद ट्रांसफर में ‘बाद-शाह’ मात का हाथ है। प्रदेश नहीं बल्कि देश की राजधानी नई दिल्ली के फोन पर सभी माननीय आंख बंद कर ट्रासंफर मांग-पत्र पर धड़ाधड़ दस्तख़त कर बैठे।

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आगामी दिनों में और किनारे लग सकते हैं

गांव की प्रधानी से लेकर नगरीय क्षेत्रों में सभासदी के टिकट से वंचित और अंसतोष की ज्वाला में धधक रहे लोगों के लिए सन्तोष गोयल का लेटर-बम प्रभावित कर सकता है। लंबे दिनों से वे यूथ जो बूथ पर ड्यूटी देते-देते बूढ़ होते जा रहे हैं वे भी कसमसाते दिख रहे हैं। पांच राज्यों के चुनाव में जिस तरह एमपी को विधायकी के लिए उतारा जा रहा, उससे यहां भी सभी सकपकाए हैं। कहीं मुख्यमंत्री उपमुख्यमंत्री हो जा रहा। ऐसी स्थिति में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद तो सामान्य नहीं धुरन्धर भी दूर नजर आ सकते हैं। समय और समय की धार देखी जा रही है ताकि सही वक्त पर ‘वार’ किया जा सके।