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खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

अनिल द्विवेदी की रिर्पोट

आजमगढ़ । जनपद के सरायमीर स्टेशन रोड स्थित छोटी अयोध्या में चल रही भागवत कथा में जौनपुर से पधारे डॉ रजनीकांत द्विवेदी ने भागवत कथा में गोपेश्वरनाथ महादेव की कथा को श्रवण कराते हुए कहा की एक बार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव गहन समाधि (ध्यान) लगाए हुए थे। और श्री कृष्ण वृन्दावन में वंशीवट पर अपनी मधुर बांसुरी बजा रहे थे।

भगवान शिव को सुनाई दी श्री कृष्ण की दिव्य बांसुरी की मधुर धुन

भगवान शिव को श्री कृष्ण की दिव्य बांसुरी की मधुर धुन सुनाई दी। उनकी मधुर धुन को सुनकर भगवान शिव की समाधि टूट गई। भगवान शिव बांसुरी की धुन से इतने मोहित हो गए की वे वृन्दावन चले आए, जहाँ श्री कृष्ण, राधा रानी और गोपियों के साथ महारास करने वाले थे। लेकिन महारास के द्वार पर ब्रज की अति सुंदर गोपियों और वृंदा देवी (गोपियों में मुख्य गोपी) द्वारा भगवान शिव रोक दिये गए।

इस निज महारास मंडल में, श्री कृष्ण को छोड़कर कोई भी पुरुष को प्रवेश की अनुमति नहीं

ललिता देवी (श्री राधा रानी की सखी प्रमुख) ने कहा: “इस निज महारास मंडल में, श्री कृष्ण को छोड़कर कोई भी पुरुष को प्रवेश की अनुमति नहीं हैं”। महारास करने का मुख्य कारण रासेश्वरी श्री राधा रानी द्वारा अपनी सखियों को रस देना है । इसलिए बिना श्री राधा रानी की कृपा के यह संभव नहीं, ऐसा ललिता देवी ने शिव जी को उपदेश दिया ।
दूसरा विकल्प नहीं था तो भगवान शिव महारास के प्रवेश द्वार के बाहर बैठ गए और रासेश्वरी श्री राधा रानी का नित्य रूप ध्यान एवं चिंतन किया। जब श्री राधा रानी को इस बारे में पता चला तो दयालु जगत की माता श्री राधा रानी ने गुप्त रूप से  ललिता देवी सखी को शिव के पास भेजा।

महारास का रस लेना चाहते हैं तो लेना होगा श्री राधा रानी का आश्रय

ललिता देवी ने भगवान शिव से कहा कि यदि आप महारास का रस लेना चाहते हैं तो उन्हें श्री राधा रानी का आश्रय लेनी चाहिए, मानसरोवर में स्नान करें, तभी आप प्रवेश कर सकते हैं अर्थार्त अर्थात् आप गोपी का रूप धारण करके महारास में प्रवेश कर सकते है। भगवान शिव ने  ललिता देवी सखी की बात मान मानसरोवर में डुबकी लगाई और सुन्दर गोपी का वेश धारण किया और महारास में प्रवेश किया।

जब श्री कृष्ण ने कहा गोपेश्वर, मैं आपको गोपी रूप में देखकर बहुत प्रसन्न हूं

महारास के दौरान श्री कृष्ण जी ने नई गोपी (भगवान शिव) के बारे में पूछताछ की। श्री कृष्ण ने ललिता देवी को शिव जी को अपने पास लाने के लिए कहा।भगवान श्री कृष्ण ने भगवान शिव को “शिवानी” गोपी (शिव द्वारा धारण) के रूप में देखा, श्री कृष्ण पहले तो शंकर जी को देखकर हँसे और उन्हें संबोधित करते हुए बोले : “हे गोपेश्वर, मैं आपको गोपी रूप में देखकर बहुत प्रसन्न हूं। क्योंकि आपने पहले से ही भाग लिया है और अपनी इच्छा पूरी कर ली है, अब मैं आपको रास द्वारपाल (महारास के द्वारपाल) के पद की पेशकश करता हूं। मैं आपको आशीष भी देता हूं कि आज से सभी गोपियाँ आपको सम्मान देंगी और गोपी भाव पाने के लिए आपका आशीर्वाद लेंगीं। आज भी, श्री गोपेश्वर महादेव भक्तों को वरदान देते हैं कि साधक ब्रज का सर्वोच्च रस प्राप्त कर सके। तभी से, गोपेश्वर महादेव के रूप में भगवान शिव वंशीवट के निकट यमुना नदी के तट पर निकुंज में रहते है। गोपेश्वर महादेव ब्रज के चार मुख्य मंदिरों में से है। गोपेश्वर महादेव सभी भक्तों को वरदान देते है ताकि भक्त गोपी भाव को प्राप्त कर सके। 
भगवान शिव कि वृंदावन में गोपेश्वर महादेव के रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर वृंदावन में वंशी वट और यमुना नदी के किनारे स्थित है।

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