सलिल पांडेय
- उपदेश देना सरल तथा अपनाना कठिन तो है लेकिन अंतराल कम करना चाहिए
- सन्तों ने बताया उत्तम गृहस्थ जीवन के तौर-तरीके
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
धर्मग्रन्थों में जिन षोडष संस्कारों का उल्लेख है, उसमें विवाह-संस्कार अत्यंत उच्चकोटि का
मिर्जापुर। धर्मग्रन्थों में जिन षोडष संस्कारों का उल्लेख है, उसमें विवाह-संस्कार अत्यंत उच्चकोटि का संस्कार है। इसी संस्कार के बाद सृष्टि की गति आगे बढ़ती है और सभी संस्कारों की सार्थकता प्रतिपादित होती है। दो आत्माओं के मिलन का संस्कार के साथ महायज्ञ भी है विवाह-संस्कार। इसमें अग्नि को साक्षी मानकर जो वचन दिए और लिए जाते हैं, उसका अनुपालन ‘प्राण जाय पर वचन न जाहिं’ की तरह हो तो परिवार तथा समाज में हर्ष तथा उल्लास का वातावरण बना रहेगा।
उक्त उद्गार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवं माता जानकी के विवाह के उपलक्ष्य में विवाह-पंचमी के अवसर पर विन्ध्य सन्त मण्डल द्वारा आयोजित ‘विवाह की महत्ता’ विषयक संगोष्ठी में आए साधु-संतों ने व्यक्त किए। रविवार को नगर के गैबीघाट स्थित हनुमान मंदिर में उक्त आयोजन किया गया था जिसकी अध्यक्षता पुजारी रामानुज महाराज ने की।
चार आश्रमों की व्यवस्था की गई है जिसमें सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम
विषय-प्रवर्तन करते हुए बालनाथआश्रम, बरकछाके महात्मा धर्मराज महाराज ने किया तथा कहा कि ऋषियों ने चार आश्रमों की व्यवस्था की है जिसमें सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम है। इस आश्रम में ज्ञान के बाद गृहस्थ आश्रम में परिवार तथा धनार्जन करना चाहिए। इसके बाद वानप्रस्थ में पुण्य तथा संन्यास आश्रम में साधु-संतों की तरह निर्लिप्त जीवन जीना चाहिए। विवाह के बाद सन्तान जब उत्पन्न हों तो उन्हें सदाचार तथा संस्कारवान बनाना चाहिए।
प्रवचन करना सरल तथा उसे अपनाना कठिन
धर्मराज महाराज ने कहा कि यद्यपि प्रवचन करना सरल तथा उसे अपनाना कठिन है लेकिन इस खाई को पाटने का काम करना चाहिए। इसी कड़ी में गेरुआ तालाब (अष्टभुजा) स्थित आश्रम के महात्मा रामसुंदर दास महाराज ने ‘सन्त समागम दुर्लभ होई’ का उद्धरण देते हुए कहा कि सन्त जहां उपस्थित होते हैं, वहां संगम की त्रिवेणी नदी रूपी ज्ञान की नदी प्रवाहित होने लगती है। यह नदी शीतलता देती है। हर आश्रम के लोगों का उद्धार ज्ञान की नदी ही करती है। वक्ता के रूप में लोहदी कला (ककराही) स्थित कबीर मठ के सन्त राधेदास महाराज ने एक बोध कथा के जरिए गृहस्थों को चाहिए कि वे त्यागी भाव में रहें तथा स्वहित को त्याग कर परहित में लगें रहें जबकि सन्तों को धर्म के सिद्धान्तों को मजबूती से पकड़े रहना चाहिए।
संगोष्ठी में कचहरी बाबा आश्रम के महात्मा श्रीकांत महाराज ने संगठन के सशक्त स्वरूप की चर्चा की तथा कहा कि इसके लिए समय-समय पर विद्वत-संगोष्ठी की जाएगी। संचालन सलिल पांडेय ने किया तथा आभार मण्डल के कोतवाल तेजबली दास व्यक्त किया जबकि शांतिपाठ अंकुरदास ने किया।
इस अवसर पर पंचू महाराज, तेजस्वीदास, छेदी दास, भगवान दास, तपेश्वरदास, गिरजाशंकर, शिवराम साहब, गोपाल महाराज, विजय नारायण दास, जगदीश दास, अमरनाथ महाराज, जितई साहब, शंकरदास आदि सन्त तथा महात्मा उपस्थित थे।
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