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खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। दवाओं का पैकेट रोडवेज की बसों से लगायत ऑनलाइन भेजे जा रहे हैं। कोरोना काल के बाद इस धंधे में और तेजी आई है। बीते फरवरी में अपर मुख्य सचिव ने कोडिनयुक्त कफ सीरप पर निगरानी के लिए जारी आदेश में भी इस बात का जिक्र किया है कि दवाएं अवैध तरीके से दूसरी जगहों पर भेजी जा रही हैं।

शहर के बीच बसा भालोटिया मार्केट पूर्वांचल में दवा की सबसे बड़ी मंडी है। यहां हर महीने 25 से 30 करोड़ का टर्न ओवर हो रहा है। एक दवा कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर चुके राजेश पांडेय बताते हैं कि कोरोना काल में दवा का कारोबार ही ऐसा था, जो चलता रहा। इसे देखकर दूसरे धंधों में लगे कुछ माफिया ने यहां अपना जाल फैला लिया।

वैध नेटवर्क की आड़ में चल रहा धंधेबाजों का खेल

चूंकि गोरखपुर से अगल-बगल के जिलों को वैध रूप से भी दवाएं भेजी जा रही हैं, इसलिए धंधेबाजों ने इस वैध नेटवर्क की आड़ में अपने धंधे को फैला दिया। इसके लिए हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की धंधेबाज कंपनियों से इन माफिया ने संपर्क किया और ब्रांडेड कंपनी की दवा और नाम जैसे रैपर में दवाएं मंगानी शुरू की।

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ग्राहक के लिए असली नकली की पहचान बनी टेडी खीर

असली और नकली में फर्क करने के लिए बैच नंबर समेत अन्य तकनीकी पहलू पर जाना होगा, जो किसी ग्राहक के लिए आसान नहीं है। सूत्रों का कहना है कि नेपाल बाॅर्डर के नजदीक बसे यूपी व बिहार के छोटे-छोटे कस्बों में खुली दुकानों के जरिए इन दवाओं को खपाया जा रहा है।

दवा कंपनियों पर कंट्रोल करने वाला विभाग नकली दवा बनाने वाली कंपनियों के आगे पूरी तरह समर्पण

भारत की कुछ दवा कंपनियों द्वारा विदेशों को नकली या अधोमानक दवाओं की आपूर्ति करने से देश के पूरे दवा कारोबार की छवि खराब हो रही है। भारतीय दवा उद्योग ने पिछले सालों में जो दुनिया में साख बनाई है, उसे ये फर्म तहस-नहस करने पर तुलीं हैं। दवा कंपनियों पर कंट्रोल करने वाला विभाग नकली दवा बनाने वाली कंपनियों के आगे पूरी तरह समर्पण किए हुए है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मार्शल आइलैंड्स और माइक्रोनेशिया में बेचे जाने वाले भारत- निर्मित गुइफेनेसिन कफ सिरप के लिए हाल में एक और अलर्ट जारी किया है। भारत में उत्पादित दूषित खांसी की दवाई के लिए सात महीने के भीतर यह तीसरा अलर्ट है। पिछले मामलों की पहचान गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में की गई थी। वहां कफ सीरप पीने से 66 बच्चों की मौत हुई थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माना भारतीय कम्पनियों का कफ सीरफ दूषित

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि एक भारतीय कंपनी का कफ सिरप मार्शल आइलैंड्स और माइक्रोनेशिया में दूषित पाया गया है। इन रसायनों की पहचान आस्ट्रेलिया के नियामक ने की थी। बीते छह अप्रैल को इसकी सूचना डब्ल्यूएचओ को दी गई।

अलर्ट में कहा गया है कि आस्ट्रेलिया के थेराप्यूटिक गुड्स एडमिनिस्ट्रेशन की गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं द्वारा सीने में बलगम और खांसी को दूर करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले में सिरप गुइफेनेसिन डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की अस्वीकार्य मात्रा पाई गई।

कुछ दिन पहले यूएस फूड एंड ड्रग एडमिस्ट्रेशन ने कहा है कि भारत की दवा कंपनी के आई ड्राप से उनके यहां तीन मौत हों गई।आठ लोगों की आखों की रोशनी चली गई।नेपाल ने पहले ही भारत की 16 भारतीय दवा कंपनियों को ब्लैक लिस्ट कर दिया है।

यह प्रतिबंध अफ्रीकी देशों में खांसी के सिरप से बच्चों की हुई मौत के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी चेतावनी के बाद लगाया गया है। नेपाल दवा प्राधिकरण ने इस संबंध में एक सूची जारी की है।

भारतीय कफ सीरप से हुई थी 66 बच्चों की मौत

अफ्रीकी राष्ट्र गाम्बिया में भारतीय कफ सीरप से हुई 66 बच्चों की मौत की घटना के कुछ समय बाद दिल्ली एनसीआर के ट्रॉनिका सिटी में कैंसर की नकली दवा बनाने वाली फैक्ट्री पकड़ी गई। इस फैक्ट्री की बनी नकली दवाएं चीन को भेजी जाती हैं।

औषधि विभाग की टीम ने उसी दौरान में उत्तर प्रदेश के संभल में संयुक्त छापामारी कर बड़ी मात्रा में नकली दवाएं बरामद की थी। इससे करीब डेढ़ महीने पहले बागपत में भी नकली दवाएं पकड़ी गर्इं थीं। दिल्ली की क्राइम ब्रांच की टीम ने इसी दौरान एमबीबीएस डॉक्टर पवित्र नारायण, बीटेक इंजीनियर शुभम मुन्ना के अलावा दो अन्य लोगों को हिरासत में लिया है।

ट्रॉनिका सिटी के इन प्लॉट पर बने कमरों को खुलवाया गया तो वहां बड़ी मात्रा में अधबनी दवा की गोलियां, कैप्सूल, ब्लिस्टर पैक स्ट्रिंप, प्लास्टिक बोतलें, पैकिंग का सामान, कार्टन, और कई अन्य तरह की दवाइयां मिलीं। इनमें महंगे दामों पर बिकने वाली कैंसररोधी दवाइयां मिलीं।

देशभर में फैला है नकली दवाओं का जाल

इन दवाओं पर विदेशी कंपनी का नाम पाया गया। मध्य प्रदेश की रीवा पुलिस ने कार्रवाई करते 129 पेटी नकली कफ सिरप बरामद किया है। जब्त सिरप की कीमत 18 लाख के करीब बताई जा रही है। पुलिस ने तीन आरोपियों को भी गिरफ्तार किया है।

आरोपी घर से नकली कफ सिरप के कारोबार को संचालित कर रहे थे। जम्मू -कश्मीर के उधमपुर जनपद में नकली कफ सीरप से दस बच्चों की मौत के मामले में 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है। इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मृतकों के परिजनों को तीन-तीन लाख रुपये का मुआवजा देने का फैसला सुनाया था।

उधमपुर जिले की इस घटना को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी ) के फैसले के खिलाफ जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एम एम सुंदरेश ने कहा कि इस मामले में अधिकारी लापरवाह पाए गए।

देश बन रहा नकली दवा का बड़ा उत्पादक

ये सब घटनांए बताती हैं कि देश नकली दवा का बड़ा उत्पादक बन गया है। कोरोना काल में तो इस कारोबार में और बढ़ोतरी हुई। आॅनलाइन शॉपिंग बढ़ने से इस धंधे को बढ़ोतरी मिली है। एक रिपोर्ट के मुताबिक आॅनलाइन खरीदी जाने वाली दवाओं में 30 प्रतिशत नकली हैं।

दरअसल ये फर्जी कंपनियां इतनी सफाई से अपने प्रॉडक्ट्स की आॅनलाइन मार्केटिंग करती हैं कि कोई भी आसानी से धोखा खा सकता है। साल 2020 की तुलना में 2021 में घटिया क्वालिटी वाले और नकली मेडिकल उत्पादों के मामले 47 फीसदी बढ़ गए। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि दुनिया भर में बिकने वाली करीब 35 फीसदी नकली दवाएं भारत से आती हैं।

वहीं वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारतीय बाजार में बेचे जाने वाले सभी फार्मास्युटिकल सामानों में से लगभग 20 प्रतिशत नकली हैं।
विदेशों को नकली दवाई भेजे जाने से भारत की दवाइयों की शुद्धता पर बड़ी आंच आ सकती है।

इससे देश की साख गिर रही है। नकली दवा का कारोबार करने वाले के विरूद्ध कठोर कार्रवाई हो। ऐसा करने वालों को आजीवन कारावास भी कम है। साथ ही इनकी संपत्ति भी जब्त होनी चाहिए।

साल्ट में छिपा है असली और नकली का खेल

दवा व्यवसाय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि दवाओं के असली-नकली वाले इस खेल में असल मामला साल्ट का है। दवाओं का साल्ट महंगा नहीं होता, बल्कि उसकी टेस्टिंग, प्रचार, परिवहन और टैक्स आदि के चलते ब्रांडेड कंपनी का रेट बढ़ जाता है। उसी साल्ट और ब्रांडेड कंपनी के नाम पर बनाई गई दवा पर न तो किसी प्रकार का टैक्स देना होता है और न ही कोई अन्य खर्च। लिहाजा वह असली ब्रांड से आधे रेट पर बेच दी जाती है।

जानिए दवा के दुकानदारों का खेल

इससे दुकानदार को भी 50 प्रतिशत तक मुनाफा मिलता है। दुकानदार उस दवा को 10 से 15 प्रतिशत डिस्काउंट देकर ग्राहक को बेच देता है। गोरखपुर से नेपाल के मैदानी इलाकों में भी बड़े ब्रांड की दवाएं जाती हैं। वैध रूप से इन दवाओं को भेजने में काफी खर्च आता है।

धंधे से जुड़े लोगों को कॉपी राइट का मामला मैनेज की दरकार

इसलिए इनमें मुनाफा भी कम होता है, जबकि असली ब्रांड के नाम वाली ही वही दवा 50 प्रतिशत मुनाफा देती है। इसमें भी असली वाला साल्ट होता है। इसलिए अगर दवा पकड़ी भी गई तो रिपोर्ट सब स्टैंडर्ड (अधोमानक) श्रेणी में आता है। बस इस धंधे से जुड़े लोगों को कॉपी राइट का मामला मैनेज करना होता है।

नशे के लिए प्रयुक्त हो रहा कफ सीरप
नकली और मिश्रित दवाओं के इस खेल के साथ-साथ बड़े पैमाने पर कोडिनयुक्त कफ सीरप का भी खेल चल रहा है। इस साल्ट वाली कफ सीरप को बच्चों के लिए खतरनाक बताया गया है। इसमें अफीम का प्रयोग होता है, इसलिए इसका प्रयोग लोग नशे के लिए करते हैं।

बिहार में शराबबंदी के कारण सीरप का किया जा रहा उपयोग

बताया जाता है कि बिहार और नेपाल के सीमावर्ती इलाके में इस सीरप का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। बिहार में शराबबंदी के चलते भी इसका प्रयोग बढ़ा है। इसे पीने वालों के मुंह से शराब की दुर्गंध नहीं आती, इसलिए भी इसकी डिमांड अधिक है।

नेपाल के मैदानी इलाकों में इसकी खपत बिहार से भी अधिक हो गई है। पिछले साल महराजगंज में करीब 700 करोड़ की जो दवाएं पकड़ी गई थीं, उसमें इसी प्रकार के सीरप और टेबलेट थे। इन पर असली ब्रांड के रैपर लगाए गए थे।

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