हाईकोर्ट ने कानून को कानून को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ बताते हुए आदेश दिया है कि सरकार मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में समायोजित करे
यूपी सरकार ने अक्टूबर 2023 में SIT का गठन किया है. SIT की टीम मदरसों को हो रही विदेशी फंडिंग की कर रही है जांच
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
लखनऊ।इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असांविधानिक करार दिया। कहा कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला यानी कि इसके खिलाफ है। जबकि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का अंग है। कोर्ट ने राज्य सरकार से मदरसे में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में तत्काल समायोजित करने का निर्देश दिया है। साथ ही सरकार को यह भी सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि छह से 14 साल तक के बच्चे मान्यता प्राप्त संस्थानों में दाखिले से न छूटें।
सरकार द्वारा जांच में अवैध तरीके संचालित होते पाए गए हजारों मदरसों को बंद करने की तैयारी
जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने याची अंशुमान सिंह राठौर व पांच अन्य की याचिकाओं यह अहम फैसला दिया है। याचिकाओं में उप्र मदरसा बोर्ड शिक्षा कानून की सांविधानिकता को चुनौती देते हुए मदरसों का प्रबंधन केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा किये जाने के औचित्य आदि पर सवाल उठाए गए थे। प्रदेश में मदरसों की जांच के लिए सरकार ने अक्तूबर 2023 में SIT का गठन किया था। जांच में अवैध तरीके संचालित होते पाए गए हजारों मदरसों को बंद करने की तैयारी चल रही है।
धर्मनिरपेक्षता और शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन
याची की ओर से कहा गया कि इस कानून को बेहद गलत तरीके से बनाया गया। इसमें धर्मनिरपेक्षता और शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन किया गया। कहा कि इस देश में सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा देने का कानून है, जबकि मदरसों में इसे दीनी तालीम तक सीमित कर दिया गया है। कहा कि सरकार अगर किसी शैक्षिक संस्था को अनुदान दे रही है तो उसे बच्चों से फीस नहीं लेनी चाहिए। लेकिन, मदरसों ने इसका भी उल्लंघन किया है। कहा कि इस कानून को इतना ताकतवर बनाया गया कि केवल स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि कॉलेज तक को नियंत्रित करने की शक्तियां इसमें निहित कर दी गईं।
कोर्ट ने फैसले के साथ 5 अन्य सवाल उठाने वाली संदर्भित याचिकाओं को संबंधित कोर्ट में वापस भेजने का दियाआदेश
मदरसा बोर्ड की ओर से याचिका का विरोध किया गया। राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह ने पक्ष पेश किया। मामले में नियुक्त न्यायमित्र अधिवक्ता ने भी दलीलें दीं। कोर्ट ने फैसले के साथ अंशुमान सिंह सिंह राठौर की याचिका मंजूर कर ली। बाकी 5 अन्य सवाल उठाने वाली संदर्भित याचिकाओं को संबंधित कोर्ट में वापस भेजने का आदेश दिया।
16512 : प्रदेश में मान्यता प्राप्त कुल मदरसे
– इनमें से 560 सरकार से अनुदानित
– 8500 के करीब गैर मान्यता प्राप्त
हाईकोर्ट के फैसले का भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष बासित अली ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले से बच्चों को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि मदरसों के हालात में बदलाव होना चाहिए। मदरसों में आज भी बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं।
निर्णय पढ़ने के बाद बोर्ड उठाएगा कदम-चेयरमैन इफि्तखार अहमद जावेद
बोर्ड के चेयरमैन इफि्तखार अहमद जावेद ने कहा कि कोर्ट के फैसले को पढ़ने के बाद आगे का निर्णय लिया जाएगा। 20 साल के बाद इस कानून को असांविधानिक करार दिया गया है। जरूर कहीं कोई गड़बड़ी हुई है। हमारे वकील कोर्ट में पक्ष सही से नहीं रख सके।
सुप्रीम कोर्ट जाएगा पर्सनल लॉ बोर्ड
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि हम इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
बिना मान्यता विदेशी फंडिंग से चल रहे हजारों मदरसे
सरकार में प्रदेश में तमाम मदरसों को विदेश से फंडिंग होने के मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय एसआईटी का गठन किया था। इसमें करीब 13 हजार मदरसों में तमाम गड़बड़ियां होने का खुलासा अपनी रिपोर्ट में किया है। बीते छह माह से जांच कर रही एसआईटी अपनी दो रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है। जांच पूरी होने के बाद अंतिम रिपोर्ट दी जाएगी। एसआईटी की अब तक की पड़ताल में सामने आया है कि नेपाल सीमा से सटे जिलों में सैंकड़ों की संख्या में मदरसे खोले जा चुके हैं। इनमें से ज्यादातर अपनी आय व व्यय का हिसाब एसआईटी को नहीं दे सके। चंदे से मदरसे के निर्माण का दावा तो किया, लेकिन पैसा देने वालों का नाम नहीं बता सके।
जानें क्या बोले- मौलाना सूफियान निजामी
वहीं यूपी मदरसा बोर्ड पर आए फैसले पर मौलाना सूफियान निजामी ने कहा इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला मदरसों के सिलसिले में मंजरे आम पर आया है. हम यह कहना चाहेंगे कि हमारे मुल्क के संविधान ने हमे यह इफ्तेदार दिया है कि हम अपने दायरे कायम करें. ताकि वहां से मुसलमान तालिम हासिल कर सके. जाहिर से बात है कि मदरसा बोर्ड भी हमारे सरकार का अंग है और उत्तर प्रदेश सरकार मदरसा बोर्ड का भी गमन करती है. यह कहना गलत होगा कि मदरसों में केवल कुरआन हदीस की तालीम दी जाती है. वहां पर हिंदी, अंग्रेजी, कम्प्यूटर के साथ साइंस की भी तालीम दी जाती है. अब तो स्मार्ट क्लास से भी तालीम दी जा रही है. मुझे लगता है इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर सोच विचार करने की जरूरत है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चैलेंज करने की जरूरत है.
अखिल भारत हिन्दू महासभा ने भी दी प्रतिक्रिया
वहीं अखिल भारत हिन्दू महासभा के प्रवक्ता शिशिर चतुर्वेदी ने कहा जिस प्रकार हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया है जिसमें यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा है कि यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है. जिस प्रकार से एक पुस्तक से धर्म की शिक्षा दी जा रही हो. जिस प्रकार से कट्टर पंथ का पाठ पढ़ाया जाता हो, ये बिना टेट एग्जाम दिए शिक्षक भर्ती हो जाते हैं. जिस प्रकार सरकारी भर्तियों की लूट होती है. ये सब बंद होना चाहिए, इन सब मदरसों को प्राइमरी स्कूल में तब्दील करना चाहिए. इनको जो धन दिया जा रहा है अवैध तरीके से वो भी बंद होना चाहिए।
मौलाना सैफ अब्बास बोले, हाईकोर्ट के फैसले से हम आश्चर्यचकित हैं
मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से हम आश्चर्यचकित हैं। मदरसा अधिनियम मौलवी ने नहीं सरकार ने बनाया है। अब मदरसा के छात्रों और शिक्षकों का क्या होगा? उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो आगे की अदालतों में जाएंगे।