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★मिर्जापुर लोकसभा सीट के प्रत्याशियों पर हो रही माथापच्ची

सलील पांडेय

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

मिर्जापुर। यहां की लोकसभा संसदीय सीट पर असमंजस के बादल कुछ छट गए तो कुछ अभी छाए भी हैं। छटने का कारण यह है कि धमाकेदार दलों ने अपने मोहरों को चुनावी शतरंज में बैठा तो दिया है लेकिन अभी कुछ दलों के चेहरों को बदलने की आशंका राजनीति के शास्त्री और आचार्यगण लगा रहे हैं।

सर्वाधिक अनुमान साइकिल के पहियों पर है-

दर असल वर्ष ’19 के चुनाव में साइकिल पर सवार होकर वही प्रत्याशी इस बार भी आए हैं, जिन्हें पिछली बार भी पार्टी ने भेजा था। पिछली बार अभी वे कैंची-साइकिल चला रहे थे और मेन सीट पर बैठने ही वाले थे कि उनसे साइकिल वापस ले ली गई। इस बार जब वे पुनः मुंबई से साइकिल चलाते प्रकट हुए तब घूरती निगाहों को उन्हें बताना पड़ा, ‘अबकी पक्की रसीद लेकर आए हैं।’ लेकिन इधर कुछ दिनों से सपाई प्रत्याशी पर भूकम्प के झटके आते दिखाई पड़ रहे हैं।

भाजपा यारी फिर निभाएगी अपना दल से-

यहाँ की सीट पर चूंकि भाजपा यारी निभाती है। अपना दल के खाते में मिर्जापुर और रावर्ट्सगंज सीट है। दोनों सीट का वितरण केंद्र यही है लिहाजा मिर्जापुर से जीत का त्रिकोण बनाने के लिए अपना दल की सर्वेसर्वा अनुप्रिया पटेल अपने पास ही रखेंगी जबकि सपा के राजेन्द्र एस बिंद फिलहाल घोषित कैंडिडेट है जबकि बसपा की हाथी पर एडवोकेट मनीष त्रिपाठी सवार हो गए हैं।

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कश्ती साहिल पर ही कहीं पलट न जाए ?

वैसे तो इस बार सपा के राजेन्द्र एस बिन्द ज्यादा जोशखरोश में दिखे थे लेकिन मिर्जापुर के मझवां से तीन बार विधायक और चौथी बार पाला भी और जिला भी बदलकर वर्ष ’19 में भाजपा का ‘कमल’ लिए संसद में पहुंच गए थे डॉ रमेश बिन्द लेकिन चुनावी बारात निकलने की तैयारियों के बीच उनके गले से ‘कमल’ की वरमाला इस बार भाजपा ने छीन ली है। बस यहीं से सपा प्रत्याशी की धुकधुकी बढ़ती सुनी जा रही है। कांग्रेस, बसपा और भाजपा की ‘राजनीतिक नागरिकता’ ले चुके डॉ रमेश बिंद का नाम उछल रहा है कि टिकट की आंधी में इस बार वे बची-खुची एक ही पार्टी सपा में आकर शरण लेंगे। चूंकि यहाँ अंतिम चरण में 7 मई से नामांकन होगा लिहाजा नामांकन के अंतिम दिनों तक कुछ भी हो सकता है।

सपा प्रत्याशी बदलती है तो क्या होगा?-

फ़िलहाल भाजपा से डॉ रमेश बिंद का बेदखल किया जाना सपा के लिए ‘बिल्ली के भाग से सिंकहर टूटने’ जैसा है क्योंकि डॉ रमेश बिन्द का राजनीतिक कद बहुत ऊंचा है। बिंद समाज के वे बड़े हस्तियों में गिने जाते हैं। जैसा अनुमान लगाया जा रहा है उसके मुताबिक उनके सपा से लड़ने पर जोश की लहर बह सकती है और यदि राजेन्द्र एस बिंद का इस बार टिकट न कटा और अंतिम समय तक के वे ही साइकिल-योद्धा रह गए तब सपा में यह मान लिया जाएगा कि ये राजेन्द्र एस बिंद नहीं बल्कि सपा के अखिलेश यादव ही है। आकलन यह भी हो रहा है कि अपना दल बसपा द्वारा घोषित ब्राह्मण प्रत्याशी को बदलवाने का कोई मैनेजमेंट कर सकता है ताकि बिंद वोट के साथ ब्राह्मण वोट भी न छटकने पाएं।