सलिल पांडेय

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खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
★वोट के लिए देवी-देवता, धर्म-सम्प्रदाय, जाति, क्षेत्र की दुहाई जोरों पर है।
★किसी को याद नहीं कि तीन-चार साल पहले कोरोना के तांडव की कितनी भयावह स्थिति थी।
★लोग सगे परिवार से दूर भागते थे।
★स्वास्थ्य के सबसे बड़े एम्स हॉस्पिटल के सबसे बड़े डॉक्टर के के अग्रवाल, डॉक्टर विकास सोलंकी, डॉक्टर जोगिंदर सहित 3 दर्जन अन्य स्टॉफ को कोरोना निगल गया था।
★उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान की कितनी दुगर्ति लखनऊ के केजीएमसी में हुई थी। वे बच नहीं सके थे।
★अनेक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी मृत हो गए थे।जिले जिले में लाशों को जलाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी।
★वेतनभोगियों के वेतन से कटौती कर पीएम फंड बनाया गया था।
★पूरे देश में भगदड़ थी और इस भगदड़ में न जाने कितनी मौत हो गई।
★असमंजस की स्थिति में थाली, शंख बजाए गए थे।
★न जाने कितने परिवार उजड़ गए और बच्चे अनाथ हो गए थे।
★चुनाव में वोट जनस्वास्थ्य पर संभावित खतरे से बचाव के लिए मांगना चाहिए था।
★ऐसा न होकर मन्दिर-मस्जिद, चर्च-गुरुद्वारे के नाम पर वोट मांगना कितना उचित है? यह सवाल द्वार आए प्रत्याशियों से पूछा जाना चाहिए ?

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