मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी / भोलानाथ मिश्र
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
18 वीं लोकसभा के लिए सात चरणों के मतदान के क्रम में दो चरणों का मतदान हो चुका है जिसमे घटते मतदान प्रतिशत को लेकर इंडिया और एन डी ए गठबंधन के स्टार प्रचारक अपने अपने चश्मे के रंग
के आधार पर आकलन कर रहे है ।
4 जून को मतगणना के बाद ही जनता का निर्णय जग जाहिर होगा उसके पूर्व अपनी डफली बजाई जाती रहेगी । लगभग 98 करोड़ मतदाताओं में से 10 करोड़ इसे मतदाता है जो आज़ादी के अमृत काल में पहली बार ई वी एम का बटन दबाएंगे । इन्ही वोटरों को यह जानना जरूरी है कि आखिर कार राजनीति के बारे में हमारे साहित्यकारों की क्या प्रतिक्रियाएं रही हैं ।
किसी ने ठीक ही कहा है –
ʺअदब का आइना उन तंग गलियों से गुजरता है ,जहां बच्चे सिसकते हैं , दुबक के मां के आंचल में ‘‘
एक जनवादी कवि ने कहा ,
‘ न महलों की बुलंदी से न लब्जो के नगीने से ,
तम्मदून में निखार आता है ,घिसू के पसीने से।
महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी रहे हों या फिर शतरंज के खिलाड़ी के विधाता कथा सम्राट मुंशी प्रेम चंद्र सभी ने अपनी कलम से वंचितो के दर्द को उकेरा और राजनीति को सावधान करते हुए समाधान प्रस्तुत किए ।
रामधारी सिंह दिनकर प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति मे दिल्ली के लाल किले पर 1960 में आयोजित सर्व भाषा अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में एक प्रसंग के संदर्भ में नेहरू जी से कहा था कि–
ʺʺ राजनीति जब जब लड़ खड़ाती है साहित्य उसे सहारा देता है‚ ।
भूख , भय , भ्रष्टाचार , समता ,ममता , समरसता , सामंजस्य समेत तमाम समस्याओं पर कवियों
ने न केवल बेबाक टिप्पणियां की है ,
बल्कि दो टूक कहने में कभी पीठ
नही दिखाया हैं । कवियों की इसी
निर्भीकता के कारण पद्मविभूषण
डॉक्टर गोपालदास नीरज को कहना
पड़ा कि , ‘ आत्मा के सौंदर्य का शब्द बोध है काव्य , मानव होना
भाग्य है , कवि होना सौभाग्य ‘ ।
नीरज ने सियासत की बिसात पर
सह मात के खेलो को देखा था ।
ऋषि राजनीतिज्ञों को उन्होंने नजदीक से देखा और उन्हे महसूस
किया था , तभी तो उन्होंने बेबाक टिप्पणी की –
ये न तेरे बस में है , न मेरे बस में है , राजनीति तो एक नगर बधू है , आज इसकी तो कल उसकी है ‘ ।
संत परंपरा के कवि – आद्य कवि महर्षि बाल्मीकि के रामायण का अवधी भाषा में भाष्य
रामचरित मानस प्रस्तुत करने वाले
गोस्वामी तुलसी दास की कैसी राजनीतिक सोच थी , इसका एक उदाहरण कवितावली में मिलता है । जब भरत उन्हें वन से अयोध्या वापस लाने गए थे उस समय राम ने भरत को कर नीति और बाजार नियंत्रण की नीति समझाई थी और अपने सूर्यवंश की पारंपरिक राजनीति को दृढ़ाया था । गोस्वामी जी ने अप्रत्यक्ष कर संग्रह की बात कही _ ” ʺबरसत हरषत सब लखै
करसत लखै न कोय ,
तुलसी प्रजा सुभाग ते , भूप भानु सम होय ” ।
अर्थात राजा को सूर्य के समान कर लेना चाहिए । सूर्य सरोवर , नदी , झरने , सागर , सुराही से जब जल सोखता है तो उसे कोई नही देख पाता लेकिन जब वही जल बादल बनकर बरसते है तो सभी लोग उसे न केवल
देखते है बल्कि हर्षित भी होते है । जहां जरूरत होती है वहां पानी बरसता है ।
आज चुनाव के मुख्य मुद्दों में
महंगाई पहले पायदान पर इसका समाधान तुलसी दास ने दिया है
” मणि माणिक महंगें किये सहजे जल तृण नाज , तुलसी सोइ सराहिए , राम हि गरीब नवाज़ ” । अर्थात बाजार में मणि माणिक महंगा कर दीजिए । पानी , अनाज और गाय का चारा सस्ता होना चाहिए ।कबीर , रहीम , रसखान , आदि ने आम जन के हित में सत्ता को नसीहत देते हुए सावधान किया है । राम राज्य की पूरी कल्पना का विस्तार से वर्णन राम चरित मानस में मिलता है । ” राम राज्य बैठे त्रयलोका हर्षित भए गए सब शोका ” यही कल्पना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की है । एक ऐसा राज्य जिसमे किसी को कोई शोक न रहे । कोई दुखी न रहे । सब समान रहे ।
किसी कवि ने तो सता को सावधान करते हुए कहा है _ “, दुर्बल को न सताइए , उसकी मोटी हाय ,
मुई खाल के स्वांस से , लोह भस्म होय जाय ” ।
महंगाई पर गीत गंधर्व नीरज ने
दो टूक कहा ” हांडी में गरीब के न मिर्ची नून है , देशी घी तो यारो हुआ अफलातून है , महंगाई को इस कदर चढ़ा जुनून है , सस्ता तो है खून मगर महंगा कानून है “ ।
आचार्य विष्णुकांत शास्त्री लिखे थे रिपोर्ताज
यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने साल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान वो धर्मवीर भारती के साथ मोर्चे पर गए थे और वहां से उन्होंने रिपोर्ताज लिखे, जो धर्मयुग पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। विष्णुकांत शास्त्री कलकत्ता विश्वविद्यालय में आचार्य रहे। वे हिंदी के उन विरल आचार्यों में थे जिन्होंने कई विधाओं में श्रेष्ठ लेखन किया।
जन कवियों के विचार
दुष्यंत ने कहा ” हो गई है पीर पर्वत
सी पिघलना चाहिए , इस हिमालय से
कोई गंगा निकलनी चाहिए ” जनवादी कवि ने कहा _ काजू भुनी
पलेट में ह्विस्की गिलास में , उतरा है राम राज्य , केवल विधायक निवास में ” ।
कैलाश गौतम , चका चक बनारसी , बाबा नागार्जुन , बशीर बद्र
ओमप्रकाश आदित्य ,आदि के अनगिनत रचनाएं राजनीति की दिशा
और दशा पर प्रतिक्रियाएं हैं ।
सोनभद्र के डॉक्टर लखन राम जंगली की एक रचना काफी चर्चित हो रही है
” नेतन कर भारी बजार वोट के के दे बो नंदो ” ।
मिर्जापुर के गोपाल चुनाहे ने 1975 में आपात काल के दौरान सवाल उठाए थे तो जेल की हवा खानी पड़ी थी
लोक तंत्र में कौन बड़ा है ?, लोक
बड़ा के तंत्र बड़ा है , प्रश्न खड़ा है ,
प्रश्न खड़ा है , जय प्रकाश आया
है , नया प्रकाश लाया है ” ।
प्रख्यात समाज वादी विचारक बाबू जय प्रकाश नारायण ने 1974 में पटना के गांधी मैदान से समग्र क्रांति का बिगुल फूंकते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ललकारा था –
” समय के रथ का घर्र घर्र नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ” ।
दिनकर की इन्ही पंक्तियों के आह्वान के साथ 1977 में सत्ता बदल गई थी ।
प्रयाग के यस मालवीय की कविता इस समय लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के द्वारा एक दूसरे पर लगाए जा रहे आरोपों प्रत्यारोपों के बीच चाय पान की दुकानों , चौराहों , चौपालों में सुनी और सुनाई जा रही है _ ” वो जुलुश से लौटे हैं, पांव दबाओ राम सुभग , आओ भाई राम सुभग , दरी बिछाओ राम सुभग मंच बनाओ राम सुभग , भीड़ जुटाओ राम सुभग , देखो कितने नारे हैं , उन्हे पचाओ राम सुभग, आओ भाई राम सुभाग , चाय बनाओ राम सुभाग ‘
आलोचना की बात और नामवर याद न आएं…
हिंदी आलोचना की जब भी चर्चा होती है तो नामवर सिंह का नाम आता है। उनकी पुस्तक दूसरी परंपरा की खोज काफी चर्चित रही और इस पुस्तक पर उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। उनकी पुस्तक हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग भी उल्लेखनीय रही। कहानियों पर वो नियमित स्तंभ लिखते रहे और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र के संस्थापक भी रहे।
नामवर सिंह ने साल 1959 में चंदौली (उप्र) से कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन बुरी तरह से पराजित हो गए। हालांकि, उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन प्रगतिशील लेखक संघ के माध्यम से राजनीति करते रहे।
मतदान का प्रतिशत आंकडों के आइने में
पहली लोकसभा का चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक हुआ था ,उस समय 64
प्रतिशत मतदान हुआ था । 16 वीं
लोकसभा का 2014 में 66. 44 फीसदी , 17 वीं लोकसभा का चुनाव
2019 में 69. 75 प्रतिशत मतदान
हुआ था । 18 वीं लोकसभा चुनाव
के दो चरणों में 2024 में 63. 50
फीसदी मतदान हुआ है । तपती दोपहरी और राजनीतिक दलों के
प्रति उदासीनता के कारण मतदान
के प्रतिशत में गिरावट दर्ज की जा
रही है ।