सलिल पांडेय,
- बेबसी की हमारी दवा लाते लाते, हुजूर तूने 5 साल देर क्यों कर दी?
- दौराने-चुनाव मधुमक्खी प्रत्याशी के मुंह में छत्ता लगाते हैं
- मीठी बानी इतनी कि कबीरदास भी फेल
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
मिर्जापुर। चुनावी वायरस का प्रकोप कोरोना वायरस का टक्कर हर मामले में तो नहीं ले सकता क्योंकि चुनावी वायरस में भीड़, मंच, जय-जयकार, ताली, घण्टा-घड़ियाल सबकी जरूरत है जबकि कोरोना वायरस का स्वागत घबराहट में सिर्फ ताली-थाली और घण्टा-घड़ियाल से ही करने का हुक्मनामा था। ऐसा लग रहा था कि किन्नरों के ताली बजाते अच्छे-अच्छे घबराने की स्टाइल में कोरोना वायरस भी किन्नर-पैटर्न पर घबरा जाएगा। लेकिन हो गया था उल्टा। ताली बजाते लोगों को ही किन्नर समझ बैठा कोरोना और लगा सबको नाच-नचाने। यह नाचा-नाची यमराज को भी भा गई और वह थोक भाव में लगा एडवांस बुकिंग करने। शहर-शहर, नगर-महानगर, राजधानी के दयाधानी, कृपानिधानी, करुणानिधानी सब ताले-दर-ताले अज्ञातवास में चले गए और चारों तरफ सियापा और मरघट जैसी खामोशी छा गई थी।
घूमी जादू की छड़ी और कोविड की कोख से निकला कोविशील्ड
इसी बीच तपस्याधारियों ने कोविशील्ड नामक 11वें अवतार को प्रकट किया। सब ‘कोविशील्ड शरणं गच्छ’ के लिए लाइन ही नहीं लगाएं बल्कि लाइन के लिए बड़ों-बड़ों से ‘लाइन लेंथ’ साधने की फिराक में लगे लेकिन फेल ही होते गए।
बहरहाल कलमुंहा कोविड चक्रवर्ती सम्राट जैसा हो गया था
कोविड ने ऐसी चाल पकड़ी कि जिन्होंने ‘जीना-मरना साथ होगा’ का वायदा किया था, वह फ्लॉप पार्टी के टिकट जैसा हो गया था। रहनुमाई के कसमें-वादे चुनाव जीतने के बाद सौतेले रिश्ते जैसे वादे प्रायः हो ही जाते हैं।
सच्चे वादों की उमर नामांकन से मतदान की शाम तक होती है
ऐसा समय आ गया है। बेगाने और अनजाने लगने वाले सब अपने और दीवाने जैसे लग रहे हैं। चटनी की तरह पीसे गए रिश्तों और पूरी तरह सूख गए पेड़-पौधों की सिंचाई जैसा काम हो युद्ध स्तर पर हो रहा है।
मधुमक्खी का छत्ता होंठों पर
मधुमक्खियों को भी शायद मालूम है कि चुनाव के वक्त प्रत्याशियों के मुंह में छत्ता लगाना ज्यादा मुफ़ीद होता है। सो, प्रत्याशी इतनी मीठी बानी बोल रहे हैं जितनी मीठी बानी की वकालत कबीरदास ने भी नहीं की होगी। लिहाजा हर बीमारी की दवा शहद के साथ हाज़िर है इन दिनों पर लोग कह रहे ‘दवा लाते-लाते बहुत देर कर दी, हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी।