सलील पांडेय
अखबार करे तो ज्यादा सटीक होगा‚होता है एक्जिट व ओपिनियन पोल में अंतर
अखबार करे तो ज्यादा सटीक होगा‚पूछा जाता है मुद्दा
★एक्ज़िट पोल एवं ओपिनियन पोल में अंतर होता है। एक्ज़िट पोल में मतदान करके बाहर आने वाले वोटरों से किसे और किस मुद्दे पर वोट दिया, सवाल दिया पूछा जाता है।
★एक्ज़िट पोल की हकीकत- इसके तहत अधिकांश बएंकर शहरी क्षेत्र के कुछ इलाकों में ज्यादा भ्रमण करते हैं और अधिकांशतः युवकों और युवतियों से सवाल करते हैं। चूंकि प्रश्न खुले आम करते हैं, इसलिए मौके की स्थितियों के हिसाब से जवाब पाते हैं।
★सुविधाभोगी एंकर- एसी कार में घूमने वाले एंकर 10-20 लोगों से बात करते हैं फिर अपने चैनल की रीति-नीति के अनुसार आइडिया बना लेते हैं।
★कहते हैं कि पॉजिटिव बोलो- बहुत सारे एंकर ऐसे सवाल करते हैं जिसका उत्तर उनके हिसाब से पॉजिटिव हो।
★सभी वोटरों से प्रश्न का यदि आकलन किया जाए तो कुल वोटरों का आधा प्रतिशत (.50℅) ही सवाल-जवाब मिलेगा । इस तरह कुल 97 करोड़ का .50% का लगभग 50 लाख वोटर से ज्यादा नहीं होगा।
★प्रायः एंकर ग्रामीण क्षेत्रों में बिल्कुल नहीं जाते क्योंकि वे ग्रामीण माइक पर कुछ बोलने को तैयार नहीं होते।
अनेक एंकरों को जिलों में होटल, खानपान की सुविधा प्रायः सत्ता पक्ष की ओर से दी जाती है जिनपर प्रतिदिन का खर्च छोटे क्षेत्रों में 10 से 20 हजार जबकि बड़े एवं बड़े क्षेत्रों तथा नामी प्रत्याशियों के क्षेत्र में एक-एक दिन का खर्च 40 से 50 हजार तक प्रत्याशी व्यय करते हैं।
★ओपिनियन पोल- यह चुनाव के पहले कुछ सवालों के जवाब के साथ होता है। इसमें भी एंकरों की पीठ पर किसी न किसी प्रत्याशी का हाथ होता है।
★कुछ चैनल जिलों-जिलों में यू-ट्यूबरों द्वारा चलाए गए समाचारों के आधार पर राय बनाते हैं।
★इस तरह अधिकांश पोल एक निश्चित तबके के लोगों की राय पर दिखावे के लिए बनाए जाते हैं जबकि अनुभवों के आधार पर एडवांस में ही पूरी कहानी लिख दी जाती है। क्षेत्र में प्रत्याशी की संतुष्टि और जनता को दिखावा के लिए एंकर टहलते हैं।
★वर्ष 2024 के एक्ज़िट पोल पर 2014 एवं 2019 की जबरदस्त छाप है। पिछले आकलनों का इस्तेमाल किया गया प्रतीत हो रहा है।
दैनिक अखबार करे तो ज्यादा विश्वसनीय होगा
दैनिक अखबार करे तो ज्यादा विश्वसनीय होगा- दैनिक अखबारों के दफ्तर हर जिले में तथा उनके आँचलिक संवाददाता ब्लाक स्तर तक हैं । यदि अखबार की ओर से हो तो वह ज्यादा सटीक होगा।
★चूंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दृश्य है। इसमें सनसनी पैदा की संभावना रहती है। इनका TRP (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) बढ़ता है। इसी पर व्यापारिक कम्पनियों का विज्ञापन मिलता है, इसलिए अधिकांश चैनल इसमें कूद पड़ते है।
इस बार वीवीपैट 45 दिनों तक जिलों में ही सुरक्षित रखना है। सुप्रीम कोर्ट की नजर है। इसलिए ज्यादा आरोप-प्रत्यारोप की संभावना कम रहेगी। जबकि इसके पहले वीवीपैट दूसरे दिन कम्पनी ले कर चली जाती थी सिर्फ ईवीएम ही रहता था।