दो बार प्रचंड ताकत के साथ भाजपा को सत्ता सौंपने के बाद जनता ने उसे तीसरी बार सरकार चलाने की अनुमति तो दे दी है, लेकिन उसकी ‘मनमानियों’ पर ‘अंकुश’ भी लगा दिया है। यह इस बात का संकेत है कि जनता सरकार चलाने के योग्य तो अभी भी भाजपा को मानती है, लेकिन साथ ही वह उसकी नीतियों और कार्यप्रणाली में कुछ बदलाव भी चाहती है।
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
ब्यूरो रिर्पोट नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और सारे एग्जिट पोल्स को झुठलाते हुए देश की जनता ने इस बार किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है। जिसके चलते 10 साल बाद देश में फिर से गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। सरकार बनाने लायक आंकड़े एनडीए के पास हैं, लेकिन इंडी गठबंधन भी बहुत ज्यादा पीछे नहीं हैं। ऐसे में जोड़-तोड़ की राजनीति भी शुरू हो गई है।
मोदी पहली बार गठबंधन पर निर्भर होकर चलाएंगे सरकार, क्या होगा असर?
नतीजे आने के बाद मोदी ने कहा कि – देश की जनता-जनार्दन ने एनडीए पर लगातार तीसरी बार अपना विश्वास जताया है। भारत के इतिहास में ये एक अभूतपूर्व पल है। मैं इस स्नेह और आशीर्वाद के लिए अपने परिवारजनों को नमन करता हूं। मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूं कि उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हम नई ऊर्जा, नई उमंग, नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ेंगे।
अहम निर्णयों पर आम सहमति होगी जरूरी
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकला में अहम मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले सहयोगी दलों से विचार विमर्श अधिक जरूरी हो जाएगा। बीजेपी ने तीसरी बार सत्ता में आने पर एक देश, एक चुनाव और समान नागरिक कानून जैसे अहम मुद्दों को लागू करने की बात कही थी। ऐसे में इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर फैसला करने से पहले बीजेपी की मजबूरी होगी कि वह सहयोगी दलों के साथ सहमति बनाए। यदि ऐसा नहीं होता है तो बीजेपी को सहयोगी दलों के अलग होने का खतरा भी बना रहेगा।
नीतीश, नायडू होंगे महत्वपूर्ण
एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल में नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायूडू अहम किरदार बनकर उभरेंगे। हालांकि, बीजेपी के साथ एक प्लस प्वाइंट यह भी है कि नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू पहले भी बीजेपी के साथ मिलकर काम कर चुके हैं। हालांकि, इस बार दोनों नेता अपनी मर्जी से हां और ना कहने की मजबूत स्थिति में होंगे। ऐसे में स्थिर सरकार के लिए बीजेपी इन नेताओं की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहेगी। चंद्रबाबू नायडू तो एनडीए के संयोजक भी रह चुके हैं। दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश में भी चंद्रबाबू नायडू सत्ता में आ गए हैं। ऐसे में वे केंद्र से आंध्र प्रदेश के लिए अतिरिक्त केंद्रीय सहायता से लेकर प्रोजेक्ट लाने में सफल हो सकते हैं।
मंगलवार को हुई मतगणना के अनुसार, एनडीए को 292 और विपक्षी गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं। कुछ समय पहले तक हाशिए पर मौजूद तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) किंगमेकर बनकर उभरी हैं। आम चुनाव में तेदेपा को 16 और जदयू को 12 सीटों पर जीत मिली है। दोनों पार्टियों के सांसदों की कुल संख्या 28 है और मौजूदा परिस्थिति में केंद्र में सरकार बनाने और बिगाड़ने में इन दोनों पार्टियों की अहम भूमिका हो सकती है। यही वजह है कि तेदेपा और जदयू की पूछ अचानक से बढ़ गई हैं। एनडीए और INDIA गठबंधन दोनों की आज दिल्ली में अहम बैठक हो रही है, जिसमें आगे की रणनीति पर चर्चा होगी।
लोकसभा चुनाव में क्यों लगा BJP को इतना बड़ा झटका, कहीं ये 15 वजह तो नहीं?
1- केवल मोदी मैजिक के सहारे रहना
पिछले दो महीनों में बीजेपी और एनडीए में उसके सहयोगी दलों का चुनाव प्रचार देखें, तो एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि इन्होंने केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा। चुनावी रैलियों और सभाओं में पार्टी के छोटे-बड़े सभी नेता स्थानीय मुद्दों से बचते हुए नजर आए। पूरा प्रचार केवल और केवल पीएम मोदी के करिश्मे पर टिका था। बीजेपी के प्रत्याशी और कार्यकर्ता भी जनता से कनेक्ट नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। दूसरी तरफ, विपक्ष लगातार महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों के जरिए सरकार के प्रति नाराजगी को जोर-शोर से उठाता रहा।
2- बीजेपी के वोटर्स की नाराजगी
लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बात के भी संकेत दे रहे हैं कि कई बड़े मुद्दों पर बीजेपी को अपने ही वोटर्स की नाराजगी झेलनी पड़ी। अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दे साइलेंट तौर पर बीजेपी के खिलाफ काम करते रहे। वोटर्स के बीच सीधा मैसेज गया कि सेना में चार साल की नौकरी के बाद उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा? पेपर लीक के मुद्दे पर युवाओं की नाराजगी को समझने में बीजेपी ने चूक की। पुलिस भर्ती परीक्षा के मुद्दे पर यूपी के लखनऊ में हुआ भारी विरोध प्रदर्शन इसका गवाह है। पार्टी के नेता ये मान बैठे थे कि केवल नारेबाजी से वो अपने समर्थकों और वोटर्स को खुश कर सकते हैं।
3- महंगाई
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि महंगाई के मुद्दे ने इस चुनाव पर बहुत ही गहरा असर डाला। पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने की चीजों पर लगातार बढ़ रही महंगाई ने सरकार के खिलाफ एक माहौल पैदा किया। विपक्ष इस मुद्दे के असर को शायद पहले ही भांप गया था, इसलिए उसने हर मंच से गैस सिलेंडर सहित रसोई का बजट बढ़ाने वाली दूसरी चीजों की महंगाई को मुद्दा बनाया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बढ़ती महंगाई के लिए आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कई बार प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला बोला। दूसरी तरफ, बीजेपी नेता और केंद्र सरकार के मंत्री महंगाई के मुद्दे पर केवल आश्वासन भरी बातें करते हुए नजर आए।
4- बेरोजगारी
2024 के इस लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे ने एक बड़े फैक्टर के तौर पर काम किया। विपक्ष ने हर मंच पर सरकार को घेरते हुए बेरोजगारी के मुद्दे पर जवाब मांगा। यहां तक कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वादा कर दिया कि अगर उनकी सरकार केंद्र में बनती है, तो तुरंत 30 लाख सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। मंगलवार को घोषित चुनाव नतीजे साफ तौर पर संकेत दे रहे हैं कि राम मंदिर, सीएए लागू करने की घोषणा और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दे भी बीजेपी को बेरोजगारी के खिलाफ बने माहौल के नुकसान से नहीं बचा पाए।
5- स्थानीय नाराजगी का नुकसान
बीजेपी को इस चुनाव में स्थानीय स्तर पर भी भारी नाराजगी झेलनी पड़ी। कई सीटों पर टिकट बंटवारे की नाराजगी मतदान की तारीख तक भी दूर नहीं हो पाई। कार्यकर्ताओं के अलावा सवर्ण मतदाताओं का विरोध भी कुछ सीटों पर देखने को मिला। कुल मिलाकर कहा जाए तो बीजेपी इस चुनाव में केवल उन मुद्दों के भरोसे रही, जो आम जनता से कोसों दूर थे।
06- यूपी में भ्रम पड़ा भारी
भाजपा ने इस चुनाव में 240 सीटें हासिल की हैं। उसे 63 सीटों का नुकसान हुआ है। अकेले उत्तर प्रदेश में पार्टी को 29 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। यदि भाजपा को अकेले उत्तर प्रदेश में नुकसान न होता, तो वह लगभग अकेले दम पर बहुमत पाने की स्थिति (272 सीट) में आ जाती।
07-प्रत्याशी नहीं बदलना पड़ा भारी
भाजपा ने इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में ज्यादातर अपने पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया है। जबकि उसकी पुरानी नीति रही है कि वह लगभग एक तिहाई चेहरों को बदलकर एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को कमजोर करने का काम करती रही है। लेकिन इस चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में, विशेषकर पूर्वांचल के इलाके में, वर्तमान सांसदों को ही टिकट दे दिया। इसमें कई सांसद पिछले दस साल से अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जिससे उनके खिलाफ जनता में काफी आक्रोश था।
08-बाहरी नेताओं पर भरोसा
भाजपा ने इस चुनाव में लगभग 28 फीसदी टिकट ऐसे उम्मीदवारों को थमाया है, जो पिछले 10 साल में दूसरे दलों से पार्टी में आए हैं, जबकि इसी दौरान पार्टी ने अपने ही कई बड़े-बड़े दिग्गजों को घर बिठा दिया। इससे पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं में अपनी उपेक्षा का भाव बढ़ा है। बड़े नेताओं ने खुले तौर पर बगावत भले ही न की हो, लेकिन वे चुनाव के दौरान सुस्त हो गए।
09-आरएसएस से तालमेल में कमी
जिस दिन से इस लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई है, उसके बाद से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने तक आरएसएस के किसी भी बड़े नेता ने सरकार या भाजपा के कामकाज को लेकर कोई बड़ा बयान नहीं दिया है। पूरे चुनाव के दौरान इस बात की चर्चा होती रही कि इस चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) शिथिल पड़ गया है। पार्टी के नेताओं ने इस दूरी को पाटने की कोई कोशिश नहीं की। उलटे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक बयान से दोनों संगठनों में दूरी होने का संकेत गया। इससे पार्टी को नुकसान हुआ।
10-कार्यकर्ताओं की उपेक्षा
भाजपा की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज ने एक बार चुनावों के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को कहा था कि वे पूरे मनोयोग से पार्टी के लिए काम करें। सत्ता में आने के बाद पार्टी पांच लाख कार्यकर्ताओं को उचित स्थानों पर समायोजित करने का काम करेगी।
11-केवल एक नेता पर भरोसा
राजनीतिक विश्लेषक विवेक सिंह ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा ने पिछले दस सालों में अपने आपको पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर निर्भर कर लिया है। यह कॉर्पोरेट कल्चर की ‘ब्रांडिंग रणनीति’ कही जाती है, जिसमें एक ब्रांड के चलने के बाद उसके चाहे जितने आउटलेट खोले जाएं, वे बाजार में चल जाते हैं। लेकिन राजनीति में यह कॉर्पोरेट कल्चर नहीं चलता है।
12-महंगाई-बेरोजगारी
भाजपा ने आंकड़ों के आधार पर यह दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में पिछली सरकारों से महंगाई दर कम रखने में सफलता पाई है, लेकिन उसे समझना होगा कि गरीबों को आंकड़ों की भाषा समझ में नहीं आती।
13-ओपीएस-अग्निवीर का नुकसान पड़ा भारी
पुरानी पेंशन नीति के कारण जहां लाखों कर्मचारी भाजपा से नाराज थे, वहीं सेना में नौकरी करने के अवसरों में कमी आई है। अग्निवीर योजना की सरकार चाहे जितनी प्रशंसा करे, लेकिन असलियत यह है कि इसे लेकर युवाओं में भारी नाराजगी है। यह नुकसान भाजपा को भारी पड़ा है। भविष्य में भाजपा को ज्यादा से ज्यादा रोजगार देने वाली नीतियों को आगे बढ़ाना होगा।
14-अन्य कारण
ज्यादा गर्मी में चुनाव होने से भी मतदान पर असर पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावों के दौरान यह दावा करते रहे हैं कि जो मतदाता नहीं निकल रहे हैं, वे विपक्षी दलों के मतदाता हैं। लेकिन अब तक के चुनाव परिणाम यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि भाजपा के ही मतदाताओं ने चुनावों से दूरी बना ली।
15-उलटा पड़ा ये दांव
माना जाता है कि चुनाव को लंबा खींचने के पीछे यही रणनीति थी कि इससे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को ज्यादा से ज्यादा चुनाव प्रचार करने का अवसर मिले और वह उसका लाभ उठा सके। लेकिन अब चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि भाजपा को चुनाव के अंतिम चरणों में ज्यादा नुकसान हुआ है।
NDA में 41 तो I.N.D.I.A में 37 पार्टियां, देखें गठबंधन के घटक दलों की पूरी लिस्ट
बीजेपी के अगुवाई वाले गठबंधन NDA यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में कुल 41 दल शामिल हैं. वहीं विपक्ष के INDIA ब्लॉक में 37 पार्टियां हैं. नेशनल पार्टियों सहित राज्यों के स्थानीय दल शामिल हैं. इस लोकसभा चुनाव में सभी छोटे-बड़े दलों ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा है.
एनडीए गठबंधन में शामिल पार्टियां
भाजपा
नेशनल पीपल्स पार्टी
अखिल झारखंड छात्र संघ
अखिल भारतीय एन आर कांग्रेस
अपना दल (सोनेलाल)
असम गण परिषद
हिल स्टेट पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी
इंडीजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा
जेडीएस
जदयू
लोजपा (रामविलास)
महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी)
नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ)
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी)
राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक प्रगतिशील पार्टी (एनडीपीपी)
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी)
शिवसेना
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा
तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी)
टिपरा मोथा पार्टी (टीएमपी)
यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी)
यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल)
अम्मा पीपुल्स डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एएमएमके)
तमिलनाडु पीपुल्स प्रोग्रेस एसोसिएशन (टीएमएमके)
भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस)
गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा (जीएनएलएफ)
हरियाणा लोकहित पार्टी (एचएलपी)
हिंदुस्तानी पब्लिक मोर्चा (एचएएम)
जन सुराज्य शक्ति (जेएसएस)
जन सेना पार्टी (जेएसपी)
केरला कामराज कांग्रेस (केकेसी)
निषाद पार्टी (एनपी)
प्रहार जनशक्ति पार्टी (पीजेपी)
पट्टाली मक्कल काची (पीएमके)
पुथिया निधि काची (पीएनके)
राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी)
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम)
राष्ट्रीय समाज पक्ष (आरएसपी)
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) (आरपीआईए)
सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी)
तमिल मनीला कांग्रेस (मूपनार) (टीएमसीएम)
इंडी गठबंधन में शामिल पार्टियां
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीआईएम)
आम आदमी पार्टी (आप)
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई)
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके)
जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (जेकेएनसी)
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) (राकांपा-एसपी)
राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
समाजवादी पार्टी (सपा)
शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे (शिवसेना-यूबीटी)
अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी)
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (सीपीआई एमएल एल)
क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी (आरएसपी)
केरल कांग्रेस एम (केसीएम)
विदुथलाई चिरुथैगल काची (वीसीके)
मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एमडीएमके)
जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी)
केरल कांग्रेस (केसी)
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल)
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी)
मणिथानेया मक्कल काची (एमएमके)
कोंगुनाडु मक्कल देसिया कच्ची (केएमडीके)
भारतीय किसान और मजदूर पार्टी (पीडब्ल्यूपीआई)
रायजोर दाल (आरडी)
असम जातीय परिषद (एजेपी)
आंचलिक गण मोर्चा (एजीएम)
ऑल पार्टी हिल लीडर्स कॉन्फ्रेंस (एपीएचएलसी)
गोवा फॉर्वर्ड पार्टी (जीएफएफ)
हमरो पार्टी (एचपी)
मक्कल नीधि मैयम (एमएनएम)
जन अधिकार पार्टी (जेएपी)
विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी)
पुर्वांचल लोक परिषद (पीएलपी)
जातीय दल असम (जेडीए)
समाजवादी गणराज्य पार्टी (एसजीपी)