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केंद्रीय मंत्री की हार नहीं पचा पा रही भा ज पा

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

चंदौली। लोकसभा चुनाव में भा ज पा प्रत्याशी डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय की हार के कई मायने निकाले जा रहे हैं।

जिले में भा ज पा के दो राज्य सभा सांसद, मंत्री‚तीन विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, आधा दर्जन ब्लाक प्रमुख, एक एमएलसी होने के बावजूद हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं, डाॅ. महेंद्रनाथ के पीए और बेहद करीबी दो पूर्व जिलाध्यक्ष भी अपने बूथों पर बढ़त नहीं दिला सके। सकलडीहा विधान सभा के बहबलपुर में दो बूथों पर सपा के बीरेंद्र सिंह को 571 और महेंद्र पांडेय को 536 वोट मिले। केंद्रीय मंत्री के पीए मृत्युंजय उपाध्याय इसी गांव के निवासी हैं और पिछले एक दशक से उनसे जुड़े हुए हैं। वहीं, दो बार जिलाध्यक्ष रह चुके सर्वेश कुशवाहा को पूर्व केंद्रीय मंत्री का बेहद करीबी माना जाता है। चुनाव संचालन की जिम्मेदारी भी उनके पास थी लेकिन सकलडीहा विधान सभा में इनके बूथ नंबर 41 से बीजेपी को महज 163 जबकि सपा को 401 वोट मिले। पूर्व केंद्रीय मंत्री के करीबी और पूर्व जिलाध्यक्ष अभिमन्यु सिंह के गांव बिसौरी के सभी बूथों पर भाजपा पिछड़ गई। एक बूथ पर तो बसपा प्रत्याशी से भी कम वोट मिले। बिसौरी गांव के चार बूथों पर सपा के बीरेंद्र सिंह सिंह को 1125 मत मिले जबकि डाॅ. महेंद्रनाथ को सिर्फ 655 वोट मिले। एक और पूर्व जिलाध्यक्ष अनिल सिंह के गांव सफुद्दीनपुर में भी यही हाल रहा। यहां से सपा को 347 और भाजपा को 137 मत मिले हैं।

विधायक सुशील सिंह के पोस्ट ने मचा दिया हड़कंप‚संगठन को किया कठघरें में खड़ा

लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री डॉ महेंद्र नाथ पांडेय की हार को पार्टी पचा नहीं पा रही है‌। इसको लेकर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है‌। जनप्रतिनिधियों पर आरोप लगाए जा रहे हैं। जिसके बाद विधायक सुशील सिंह ने संगठन को कटघरे में खड़ा किया है‌‌।

X ् सोशल मीडिया की साइड पर पोस्ट से लगा संगठन पर सवालिया निशान

विधायक सुशील सिंह ने सोशल मीडिया व X पर लिखा है कि ” जब सारी जिम्मेदारी जिले के माननीय विधायकों और माननीय राज्यसभा सांसदों की ही है तो संगठन का क्या काम, समीक्षा करिए आरोप ना लगाइए, हार से सीखना है किसी को जिम्मेदार नहीं बनाना है, अनावश्यक टिप्पड़ी करने से बेहतर है अपनी अपनी कमियों पर ध्यान देते हुए उन कमियों को सुधारा जाए, अभी भी समय है।वहीं सैयदराजा विधायक सुशील सिंह के आरोपों के बाद जिले में बीजेपी के कमजोर संगठन को लेकर चर्चाएं शुरु हो गई हैं।

एक दशक में पहली बार भा ज पा संगठन की हुई इतनी किरकिरी

पिछले एक दशक में इस बार संगठन सबसे कमजोर नजर आ रहा है, जिसके हिस्से सफलताएं कम और नाकामियां अधिक हैं। लोकसभा चुनाव में संगठन धराशायी नजर आया। इसकी वजह से पार्टी पदाधिकारियों व पूर्व पदाधिकारियों के बूथों पर भी भाजपा हार गई। चुनाव में अपना बूथ सबसे मजबूत और पन्ना प्रमुख की रणनीति भी काम नहीं आई।

लोकसभा चुनाव में भी भा ज पा संगठन रहा मोदी की गारंटी के सहारे

निकाय चुनाव में जिले में मिली हार से भी बीजेपी ने सबक नहीं लिया और लोकसभा चुनाव में भी संगठन मोदी की गारंटी के सहारे ही रहा। स्थानीय स्तर पर कारगर प्रयास नहीं किए गए। इसकी वजह से इंडिया गठबंधन को मौका मिल गया और बसपा के कमजोर पड़ने के बाद भाजपा से जुड़ा रहा दलित वोट बैंक इस बार चुनाव में सपा की ओर शिफ्ट हो गया। बीजेपी की हार का प्रमुख कारण इसे भी माना जा रहा है।

गहन समीक्षा के बाद जा हो सकता है ब्यापक फेरबदल

बीजेपी नेतृत्व ने हार के कारणों की गहनता के साथ समीक्षा की बात कही है। ऐसे में संगठन में व्यापक स्तर पर फेरबदल की गुंजाइश है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो जिन-जिन बूथों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है, वहां व्यापक स्तर पर फेरबदल हो सकते हैं।

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