सलिल पांडेय

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर उंगली उठाना फिर दूसरी गलती करना साबित होगा

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◆भाजपा यदि 400 पार, कुछ ने तो 500 पार तक कह दिया।
◆यदि 400 पार हो जाता तो ‘मोदी है तो मुमकिन है’ कहा जाता न कि योगी आदित्यनाथ को श्रेय जाता।
◆सचाई तो यह है कि योगी आदित्यनाथ कड़ी मेहनत न की होती तो 240 की जगह 120 सीट ही मिलती।
◆योगी आदित्यनाथ के प्रति सरे-आम महिला उत्पीड़न के दाग के आरोपी बृजभूषण खुले-आम बोल रहे थे, उसके बावजूद उनके पुत्र को टिकट दिया गया।
◆वृजभूषण के पुत्र को टिकट देने से महिलाएं खिन्न थीं जबकि खीरी में टेनी को टिकट देने से शांतिप्रिय जनता खिन्न थी।
◆खुद मोदी जी के कई भाषण हास्यास्पद हो गए और अंत में खुद को परमात्मा की श्रेणी में खड़ा करना जनता को पसंद नहीं आया।
◆कूड़े-कचरे लोगों को पार्टी में शामिल कराने से यही संदेश गया कि किसी प्रकार सत्ता हासिल करने की कोशिश की जा रही है न कि देशहित के लिए ऐसा किया जा रहा है।
◆मोदी जी का अडानी-अम्बानी के टेम्पों में काला धन पूरी तरह हास्यास्पद हो गया। लोग दोनों उद्योगपतियों का अचानक नाम लेने से चौंक भी गए।
◆इलेक्टोरल बांड पर ना-नुकुर संदेह को बढ़ाता गया।
◆योगी आदित्यनाथ को हटाने के केजरीवाल के बयान पर योगी के पक्ष में कुछ नहीं कहा गया जबकि 2029 में भी मोदी जी के पीएम बनने की घोषणा करना।
◆चूंकि शिवराज, वसुंधरा राजे, फडवीस आदि का पर काटा गया लिहाजा संदेश गया कि इस बार योगी आदित्यनाथ का नम्बर है।
◆अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में धार्मिक गुरुओं, आंदोलन में आगे रहे RSS, विहिप आदि को तवज्जह न देकर फ़िल्म जगत के हल्के कलाकारों को तवज्जह देना गले से नीचे लोगों को नहीं उतर रहा था।
◆मोदी जी के किसी भी पूजन में देश के छठी आबादी वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री को बराबर में न बैठाना लोगों को अखर रहा था।
◆अब से स्पष्ट रूप से योगी आदित्यनाथ के लिए शीर्ष स्तर से यह नहीं कहा गया कि वर्ष 2027 तक यूपी में कोई बदलाव नहीं होगा, घोषित होना चाहिए वरना आगे और क्षति हो सकती है।
◆अन्यान्य तमाम कारण हैं जिस पर विचार किया जाना चाहिए।
◆स्वार्थ साधक चैनलों के एंकरों को सिर पर बैठाने से तत्काल परहेज करना चाहिए।
◆पत्रकारिता की स्वतंत्रता से सही बातें शासक को मालूम होती हैं।

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