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सलील पांडेय

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

इन कारणों पर भी नज़र डाली जाए

  • ◆यूपी हो, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा हो या अन्य किसी भी राज्य में हार के कारणों की वास्तविक खोज की जानी चाहिए।
  • ◆प्रायः किसी मजबूत दल के पराजय में भीतरघात एवं अपने ही लोगों द्वारा धोखा के आरोप लगते हैं, जो प्रायः हारे हुए प्रत्याशी की खीज होती है। जो सही नहीं होती। भीतरघात वाला कुछ सौ ही वोट प्रभावित कर सकता है, जिसमें उसके परिवार, रिश्तेदार या कुछ खास लोगों के वोट हो सकते हैं।
  • ◆अत्यंत मजबूत पार्टी भाजपा की हार को देखा जाए तो जिस यूपी में 22 जनवरी को ‘नई दीवाली’ की घोषणा की गई थी, वह सामान्य जनता को जँची नहीं। वह कार्तिक अमावस्या को ही दीवाली के रूप में देखना चाहती है। भले कुछ अति उत्साही और अवसर में लाभ लेने वालों ने नई दीवाली की अवधारणा बना दी।
  • ◆भाजपा पर जब RSS द्वारा ही व्यक्तिवाद को बढ़ावा देने का आरोप लग रहा है तो सामान्य जन के मन में भी इस तरह की भावनाएं अवश्य उत्पन्न हुई होंगी।
  • ◆’काठ की हांडी बार बार आग पर नहीं चढ़ती’ कहावत के तहत बार-बार भव्य मंच, भारी भरकम धनराशि खर्च कर रोड-शो आदि से आम जनता में यह संदेश गया कि सत्ता के चलते पैसे का यह प्रदर्शन है।
  • ◆अन्य कारण
  • ◆राष्ट्रीय स्तर पर निर्वाचन आयोग के चयन में मुख्य न्यायाधीश का कानून बनाकर हटाए जाने पर जनता के मन में संदेह, इलेक्टोरल बांड का मामला और चंदे में अधिकतम धनराशि प्राप्त होना तथा इस पर स्पष्ट उत्तर न देना भी नकारात्मक हो गया।इसके बाद SBI द्वारा पहले डिटेल देने से इनकार करते हुए 30 जून तक समय मांगना, अंततः लिस्ट देना संदेहास्पद मामला होने लगा।
  • ◆सदन में सत्ता पक्ष के लोगों में विनम्रता का अभाव,
  • ◆लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर राष्ट्रपति के प्रति प्रोटोकॉल का पालन न करना,
  • ◆भारत रत्न जैसे पुरस्कारों के अवमूल्यन एवं लाई-चने की तरह बांटना,
  • ◆महिला पहलवानों, लखीमपुर कांड, मणिपुर कांड पर चुप्पी,
  • ◆सोशल साइट पर ‘प्रतिपक्ष’ सहित जो अब नहीं जीवित हैं, ऐसे नेताओं के लिए अमर्यादित टिप्पणियों की बाढ़ और उस पर रोक न लगा पाना,
  • ◆ईडी-सीबीआई के छापों की अधिकता तथा न्यायपूर्ण कार्रवाई में संदेह एवं वाशिंग मशीन के आरोप,
  • ◆दल-बदल को बढ़ावा देना, गैर दल से आए नेताओं को सिर पर बैठाना एवं अपने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा,
  • ◆विपक्ष के प्रति अशोभनीय भाषा का प्रयोग एवं जनसभाओं में गलत बयानी एवं भाषाई मर्यादा का पालन न होना आदि बातें आम जनता को खल गई।
  • ◆वर्ष ’14 एवं ’19 में पार्टी द्वारा जीत का जो दावा किया जाता रहा, उससे अधिक सीटें मिलती रहीं। इस बार 400 सौ पार में 350 भाजपा की सीटों की उम्मीद थी तो इस दृष्टि से भाजपा 110 सीट पीछे हुई है।
  • ◆आम जनता में भारतीय जनसंघ और बाद में भाजपा जैसी सामूहिकता की भावना की कमी।
  • ◆एक संदेश वाराणसी में आए दिन भारी भरकम होटलों में होने वाले सम्मेलनों, उसमें भारी पैमाने पर होने वाले ख़र्च को आम जनता ने यही समझा कि हमारे टैक्स के पैसे का दुरुपयोग किया जा रहा है।
  • ◆अनेक तीज-त्योहारों एवं धार्मिक पर्वों पर सरकारी पैसे से सजावट तथा अन्य आयोजनों से आमजनता जो अपने दैनिक जीवन की समस्याओं परेशान रहती है, उसे ये सब और अधिक चिढ़ाने वाला कार्यक्रम लग रहा था।
  • ◆कोरोना वैक्सीन के घातक असर के बाद प्रमाणपत्र पर से पीएम का फ़ोटो हटना भी विपरीत असर डाल गया। या तो पहले हट जाता या हटता ही नहीं। फोटो के प्रति अत्यधिक रुचि भी वोटरों को नहीं भायी।
  • ◆भव्य आयोजनों में राजधानी से लेकर जिले स्तर पर बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को लगाने से आम जनता को यही लगा कि जिन्हें जनता की समस्या का समाधान करना चाहिए वे उत्सवों में उलझे हैं।
  • ◆प्रशासनिक क्षेत्र में भी असन्तोष उत्सवों की अधिकता को लेकर थी। अनेक प्रशासनिक अधिकारियों को खुद भी ऐसे कार्यक्रमों में लगना अच्छा नहीं लगता था।
  • ◆जिन जनप्रतिनिधियों पर अपनी निधि के दुरुपयोग के आरोप लगते थे, उनको मुख्य अतिथि बनाकर अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से छोटा करने की कोशिश भी जनता को उचित नहीं लगा।
  • ◆अधिकांश न्यूज चैनलों का एक ही राग अलापना,
  • ◆कतिपय न्यूज एंकरों का हेलीकॉप्टर से न्यूज कवरेज को जनता ने सरकार की तरफदारी के एवज में इस तरह की व्यवस्था करना, डिबेट में सत्ता पक्ष से पूछे जाने वाले सवाल को विपक्ष से पूछना तथा सत्ता के प्रवक्ताओं द्वारा अभद्र भाषा का प्रयोग, यह सब मतदाताओं को अखर रहा था। वह मतदान केंद्र पर जाकर प्रकट हो गया।
  • ◆यूपी में ताबड़तोड़ बुलडोजर भी अतिरेक की सीमा लांघ गया।
  • ◆यह तो गनीमत है कि RSS प्रमुख मोहन भागवत ने चुनाव बाद अहंकार सम्बन्धित प्रतिक्रिया व्यक्त की। परिणाम के पहले व्यक्त करते तो सोशल मीडिया पर उनके बारे में भी नकारात्मक कमेंट के अभ्यस्त अधकचरे लोग करने लगते। चूंकि परिणाम अनुकूल नहीं है वरना श्री भागवत पर उसी तरह मैसेज दौड़ने लगते जैसे विपक्षी तथा वर्षों-वर्ष पूर्व दिवगंत स्वतन्त्रता सेनानियों के प्रति व्यक्त किए जाते रहे।
  • ◆हालांकि यह सिलसिला खत्म नहीं हुआ है। यह जारी रहा तो आम जनता ऐसे पोस्ट डालने वालों से और भी ऊब जाएगी जिसका हिसाब मतदान केंद्र पर ही लेगी।
  • ◆पीएम मोदी विदेशी मामलों में दृढ़ता और कठोरता दिखाएं तथा देश के मामले में सहृदयता तो जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई की जा सकती है।
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