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सलिल पांडेय

  • महाभारत युद्ध के समय भी 13 दिन का पखवारा था।
  • पंचक में स्पीकर का चुनाव विवादित हो सकता है
  • यूपी में योगी के चलते 33 सीट मिल भी गई वरना 13 सीट की भी नौबत कहीं न आ जाती

◆अशुभ फलदायक होता है 13 दिन का पखवारा।
◆आषाढ़ कृष्ण 23 से 6 जुलाई ’24 तक है 13 दिनों का पखवारा।
◆पखवारा और नवरात्र आदि में दिन का बढ़ना तो मंगलकारी होता है जबकि घटना अशुभ।
◆इसी बीच होगा लोकसभा स्पीकर का चुनाव : परिणाम अप्रत्याशित हो सकते है।
◆25 जून रात्रि 3:52 बजे से 30बजून सुबह 8:46 बजे तक है पंचक।
◆पंचक हर मामलों में अशुभ नहीं होता लेकिन पंचक में पीएम की 48 घण्टे की मौन साधना का परिणाम सही नहीं हुआ था।
◆30 मई ’24 शाम 6 बजे से 1 जून तक की कन्याकुमारी में मौन साधना के वक्त भी पंचक था।
◆ग्रह-नक्षत्रों एवं क्षतिकारक पखवारे की विपरीत स्थिति से स्पीकर का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है और इलेक्टोरल बांड वाली स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
◆अनेक राज्यों में एनडीए खासकर भाजपा के पिछड़ने में यूपी की रिपोर्ट भी इसी बीच देने की बात सामने आ रही है।
◆रिपोर्ट के बाद पार्टी में कलह बढ़ सकता है।
◆पूरा चुनाव ‘मोदी की गारंटी’ पर लड़ा गया तो समीक्षा में यही बात आनी चाहिए कि ‘गारंटी ही फेल’ हो गई।
◆सही समीक्षा फिर भी नहीं किए जाने की संभावना।
◆यूपी चीफ मिनिस्टर के चलते 33 सीट मिल भी गई वरना 13 सीट ही मिलती।
◆राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा या काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजन के वक्त गोरखनाथ पीठ के अधिष्ठाता योगी आदित्यनाथ को समकक्ष न बैठाकर पीएम के पीछे बैठाना देवाधिदेव महादेव को अखर गया।
◆देश की 1/6 आबादी यानी 25 करोड़ यूपी की जनता-जनार्दन के मुख्य मंत्री के लिए गारंटी नहीं दी गई कि इनकी हालत शिवराज सिंह और वसुंधरा राजे सिंधिया जैसी नहीं की जाएगी।
◆भाजपा का वाशिंग मशीन बन जाना। दूसरे दलों के घोटालेबाजों को पार्टी में लेकर उनको तवज्जह और मूल भाजपा के लोगों को पिछली लाइन में बैठाना।
◆कतिपय उद्योगपतियों को संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से ज्यादा तवज्जह देना।
◆राम-लहर की लालच में बिहार में नीतीश से गलबहियां करना जबकि नीतीश ने विधानसभा में महिलाओं के लिए इतनी अमर्यादित टिप्पणी की थी कि उस टिप्पणी का खुद पीएम ने मजाक उड़ाया था। लिहाजा महिला वर्ग इससे नाराज हुआ।
◆फिल्मों से जुड़ी महिला प्रत्याशियों में एक का ताबड़तोड़ सबको बेइज्जत करना और दूसरी प्रत्याशी के फ़िल्मी चित्रों का वायरल होना।
◆भाषणों में ‘एंटायर पॉलिटिक्स’ ‘बायोलॉजिकल नहीं परमात्मा द्वारा भेजा गया’, ‘जिलों का कैपिटल’ आदि शब्दों का प्रयोग पप्पू की उपाधि खुद ही गले में डाल लेने के समान था।
◆पब्लिक सच में लोगों से हटकर पीएम को नेता न मानकर स्वहित के लिए सारे नियम तोड़ देने वाले नेता के रूप में देखने लग गई और विचलित होती गई। जिसका नतीजा रिजल्ट खुद ही बोल रहा है।

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