◆कहीं थम रहा शोर तो कहीं दिख रहा जोर
सलिल पांडेय,
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
तुम्हें और कोई काम नहीं है क्या, गड़ा मुर्दा उखाड़ने चले आए हो?
●प्रथम तो हाथरस हादसे के 6ठें दिन धड़पकड़ को लेकर शोरगुल कम होता दिखाई दिया। स्वाभाविक है कि जब सरकारी एक्शन कमजोर होगा तो सुर्खियां भी धीमी पड़ेंगी। वैसे भी कुछ खास बात तो पर्दे के पीछे है कि जिस बाबा के चलते 123 जिंदगियां यमराज के घर गईं, वह पर्दे के पीछे से इंटरव्यू दे सकता है लेकिन सामने नहीं आ सकता। कुल मिलाकर यह अनुमान है कि 2 जुलाई का हादसा 10 जुलाई तक हांफते हुए दम तोड़ देगा। लोग भूलने लगेंगे हादसे को। ठंडे होते मामले में इस तारीख के बाद किसी ने सरकारी अमले से पूछताछ की जुर्रत की तो जवाब यही होने की उम्मीद है-‘तुम्हें और कोई काम नहीं है क्या? गड़ा मुर्दा उखाड़ने चले आए हो?’
●बढ़ रहा शोर – दूसरी तरफ अग्निवीर मामले में संसद में चले अग्निबाण के बाद यह मुद्दा धक-धक, धक-धक सुलगने लगा है। 9 मई को राजस्थान के रहने वाले 21 वर्षीय जितेंद्र सिंह तंवर का मुद्दा तब गरमा गया जब लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अग्निवीरों के साथ सौतेलेपन का मुद्दा उठाया। इस मुद्दे के बाद 3 जुलाई को उसके परिजनों के खाते में अभी 48 लाख रूपए आए हैं। मीडियाकर्मियों ने दिवंगत जितेंद्र सिंह के परिजनों का इंटरव्यू लिया तो वह दिल पर बम गिरने जैसा ही था। संबन्धित अधिकारी सीधे बात तक नहीं करते थे, ऐसा उसके परिजनों ने बताया।
पब्लिक की कमजोर नस दबा रही टेलीफोन कम्पनियां और चुप-चुप दिख रही सरकारी कमेटियां
★: गत दिनों तीन टेलीफोन कम्पनियों ने टैरिफ में बढ़ोत्तरी कर दी। इसी बीच एक कम्पनी के मालिक के यहाँ जश्ने-शादी का माहौल है। सोशल प्लेटफार्म पर यहाँ तक कमेंट आए कि शादी का गिफ्ट उपभोक्ताओं से लिया जा रहा है। इन कम्पनियों को नियंत्रित करने वाली कमेटियां खामोश हैं। 109 करोड़ उपभोक्ता शादी का बोझा ढोएंगे, यह आरोप सरे-आम और खुले-आम लग रहे हैं।
★विराट कोहली का अहंकार पर विचार : T20 में विराट जीत के बाद इंडिया टीम भारत आई । तीन जुलाई को उनका स्वागत मुंबई में हुआ। प्रधानमंत्री भी मिले टीम से। इस बीच बातचीत के दौरान राजनीतिक पिच से अनभिज्ञ विराट कोहली ने पिछली हार और अबकी जीत की व्याख्या करते हुए कहा : ‘जब अहंकार आ जाता है तो हार होती है। इस बार अहंकार से बचा गया। एक-एक बॉल को चुनौती के रूप में लिया गया।’ यहां ‘अहंकार’ शब्द पर ज्यादा ध्यान लोगों का गया। कुछ का मानना है कि राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है अन्यथा ‘अहंकार’ शब्द के इस्तेमाल पर न जाने क्या-क्या हो जाता?ED, CBI तक की नजर लग जाती।