सलील पांडेय
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
मिर्जापुर। कहीं भी सत्ता पक्ष के मंत्री/जनप्रतिनिधि जब ऐसी बात बोलते है तो हंसी भी आती है और रोना भी आता है।
◆समाधान दिवस, थाना दिवस, जनता-दर्शन, किसान दिवस आदि ढेरों दिवसों में सामान्य आदमी तो अपनी बात सुनाने अधिकारियों के पास जाता है।
- ◆लोकहित के काम में प्रायः अधिकारी त्वरित कार्रवाई भी करते हैं।
- ◆ऐसा न होता रहता तो जंगलराज कायम हो गया होता।
- ◆फिर मंत्री, विधायक, सांसद ऐसी बात क्यों बोल रहे जबकि आम आदमी का इल्जाम है कि इन्हीं लोगों की सुनवाई नम्बर-1 पर होती है।
- ◆किसी दफ्तर में ये चले जाते हैं तो इनका खातिर-सत्कार घरों में आने वाले मेहमानों जैसी होती है।
- ◆इनके चक्कर में मिनट-दो की मुलाकात के लिए आए आम इंसान को घण्टों, सुबह की जगह शाम तक इंतजार करना पड़ता है और कभी-कभी मुलाकात हो ही नहीं पाती।-
★कहते हैं तो कोई बात होगी, दिलों में पीड़ा की जज़्बात होगी?
,◆जब जनप्रतिनिधि बहुत बहुत छोटी-छोटी मांग रखते हैं तो संभव है कि एक कान से सुनकर अधिकारी दूसरे कान से निकाल देते हों।
◆जब ठीका-परमिट ऑफ़ लाइन दिलाने, विकास निधि को अपनी निजी निधि समझ कर उसे हथियाने की कोशिश, जमीन-जंगल पर कब्जा, प्लाटिंग के धंधे, अपराधियों की पैरवी, सैकड़ों-सैकड़ों अवैध और ओवरलोड गाड़ियों को न पकड़ने की सूची, वांटेड लोगों को असलहा देने, वीआईपी कार्यक्रमों एवं चुनाव के नाम मोटी रकम, मनमानी पोस्टिंग, खासकर थानेदारों की तैनाती, प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपरलीक की घटनाओं एवं विरोधियों को फंसाने आदि की अनेकानेक मांग जब रखी जाती है तो कुछ अधिकारी सुन लेते होंगे कुछ नहीं सुनते और अड़ जाते होंगे। जब लंबी लिस्ट इस तरह बन जाएगी तो उसे लेकर टकराव की स्थितियाँ तो बनेंगी ही।
★बड़ी विचित्र स्थिति है कि जब कहा जाता है कि संगठन से ज्यादा महत्व सरकार का नहीं!
◆ऐसे ही अनर्गल बयानों से हारना पड़ता है।
◆कहाँ सरकार और कहाँ संगठन, दोनों में जमीन- आसमान का अंतर होता है।
◆सरकार स्थायी है जबकि कोई पार्टी या संगठन स्थाई नहीं है।
◆आज इस पार्टी की तो कल उस पार्टी की सरकार होती है। पल-पल में बदलाव होता रहता है।
◆यह जरूर है कि संगठन की बैठकों में संगठन के अध्यक्ष और महासचिव का महत्व रहता है न कि सरकार के मुखिया और मंत्री आदि का।
◆लेकिन ऐसा केवल कहना मात्र है जबकि संगठन की बैठकों में पदाधिकारी मुंह के बल भहराते दिखते हैं।
◆ये सारी स्थितियां किसी एक पार्टी या एक सरकार के लिए नहीं बल्कि जहां और जब-जब जिस पार्टी की सरकार होती है, वहीं यह सब देखने को मिलता है।
◆21वीं सदी का तीसरा दशक है।
◆अधिकांश के हाथ में स्मार्टफोन है।