नही रही पद्म श्री प्राप्त कजरी गायिका अजीता श्रीवास्तव
सलिल पांडेय
◆अब तो यही गीत सुनाई पड़ेगा अबकी कजली के दिन
◆पद्मश्री अजिता को मिली ‘ब्रह्मश्री’ की उपाधि
◆सावन शुक्ल प्रदोष को देवों के देव डमरुधारी, नाट्यलीला के देवता महादेव और गायन-नृत्य के देवता लीलाधारी भगवान विष्णु का बुलावा का आया खत ।
◆अजिता सच में अजीता थीं।
◆लोकसङ्गीत को अजिता ने नहीं बल्कि स्वर-सङ्गीत की देवी माँ सरस्वती ने अजिता का किया था वरण।
◆’साहित्य, सङ्गीत, कला विहीन: साक्षात पशु पुच्छ विषाण हीन:’ का आशय ही है जिस साहित्य, सङ्गीत और कला की साधना से मन में विनम्रता आती है और अहंकार की पशुता नष्ट होती है।
◆’नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च, मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद!’ हे देवर्षि ! मैं न तो वैकुण्ठ में निवास करता हूँ और न ही योगीजनों के हृदय में मेरा निवास होता है, मैं तो उन भक्तों के पास सदैव रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मुझको चित्त से लीन और तन्मय होकर भजते है और मेरे मधुर नामों का संकीर्तन करते है।
◆जब यह स्थिति होती है तब कला-साधक इतना तरल और सरल हो जाता है कि उसकी स्नेह की धारा में कूड़ा-करकर सब बह जाते हैं।
◆यदि साहित्य, कला और सङ्गीत का दावेदार छल-प्रपंच, निंदा-स्तुति, मारकाट, टांग खींचने और तिकड़म में लगा रहता है तो इसका मतलब वह साहित्य, सङ्गीत और कला का खाल (आवरण/मुखौटा) ओढ़े है।
◆ऐसा नहीं कि अजिता को जीत कर नीचे गिराने की कोशिश नहीं की गई लेकिन कोशिशकर्ताओं के हाथ हताशा ही लगी।
◆अजिता ‘दोऊ हाथ उलुचिए’ सिद्धान्त को अपनाए रहती थी।
◆यह जानते हुए कि उन्हें शूर्णपखा, कालनेमि, पूतना, मृग-मारीच, जैसे लोग ठग रहे हैं लेकिन वे ‘ठगे ठग-ठगाए ठाकुर’ की भांति निस्पृह रहती थीं।
◆अजिता श्रीवास्तव ने मां विन्ध्यवासिनी के श्रीचरणों में ‘पद्मश्री’ का ‘पद्मकमल’ पहली बार अर्पित किया।
◆संयोग कि अजिता के पति रासबिहारी लाल का भी निधन 18 तारीख को ही हुआ था। उसी तारीख के एक दिन पहले वह भी महाप्रस्थान कर गईं।