• वन नेशन वन इलेक्शन’ पर कोविंद पैनल की रिपोर्ट पर मोदी कैबिनेट की मुहर
  • इसे लागू करने के लिए सरकार को करने पड़ेंगे संविधान में संशोधन
  • दो चरणों में लागू करने की है योजना, पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव
  • दूसरे चरण में राज्यों के स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की गई है
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर रामनाथ कोविंद पैनल की सिफारिशों को मंजूरी दे दी
  • आसान नहीं ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की राह,
  • केंद्रीय कैबिनेट ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है
  • लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने का है सुझाव
  • इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद देश का सियासी पारा हाई हो चुका है

UP में 2027 में चुनी गई विधानसभा का कार्यकाल 2029 तक ही होगा

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

चंदौली। वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था लागू होती है तो UP में 2027 में चुनी गई विधानसभा का कार्यकाल 2029 तक ही होगा। इसके पहले 1991 और 1996 में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ हो चुके हैं।यूपी में वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव के बाद जो भी सरकार बनेगी, उसका कार्यकाल मात्र दो साल का ही होगा। ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की व्यवस्था लागू होने पर यहां दो साल के भीतर दो बार विधानसभा के चुनाव होंगे। प्रदेश में वर्ष 1991 व 1996 में भी लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे।मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में ही एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल लाया जा सकता है. अगर बिल कानून बनता है तो 2029 में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी एक साथ हो सकते हैं. लेकिन ये सब होगा कैसे?

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विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना कहते हैं कि रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि वर्ष 2024 के बाद देश में जिस भी राज्य में विधानसभा चुनाव होंगे, उसका कार्यकाल 2029 में लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाएगा। इस तरह से देखें तो यूपी में अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होगा। उसके बाद वर्ष 2029 में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव कराने होंगे।

यह जरूरी नहीं है कि हर सिफारिश कानून का अंग बने
जानकार बताते हैं कि कोविंद समिति की सिफारिशों के आधार पर जब इस संबंध में कानून बनेगा, तभी यह पता चल सकेगा कि समिति की किन-किन सिफारिशों को अधिनियम में शामिल किया गया। यह जरूरी नहीं है कि हर सिफारिश कानून का अंग बने ही।

स्थानीय निकाय के साथ विधानसभा चुनाव कराना होता बेहतर : प्रो. गुप्ता
लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि विधानसभा का कार्यकाल का विषय संविधान के मूलभूत ढांचे (बेसिक स्ट्रक्चर) के अंतर्गत नहीं आता है। यानी, इस कार्यकाल को कम या ज्यादा करने के लिए संविधान में संशोधन हो सकता है। लोकसभा चुनाव के 100 दिन बाद स्थानीय निकायों के चुनाव का सुझाव दिया गया है, अगर निकाय चुनाव के साथ ही विधानसभा के चुनाव का प्रावधान किया जाता तो ज्यादा ठीक रहता।

पंचायत से लेकर लोकसभा तक… क्या 2029 में सारे चुनाव एक साथ कराए जाने वाले हैं ?

ऐसा इसलिए क्योंकि चर्चा है मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में ही ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को लेकर बिल लाने वाली है. अगर ये बिल कानून बनता है तो हो सकता है कि 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा होने के तीन महीने के भीतर ही पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव भी करवा लिए जाएंगे।

इससे सम्बंधित रिर्पोट 18 हजार पन्नों की

देश में लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कैसे कराए जा सकते हैं? इसे लेकर पिछले साल सितंबर में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपी थी. साढ़े 18 हजार पन्नों की इस रिपोर्ट में दिया है।

विरोध में हैं कितने राजनीति दल ?

पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए, सरकार ने यह कदम उठाया है। इस साल की शुरुआत में कोविंद समिति से 47 राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनाव कराने के बारे में अपनी राय साझा की थी। इनमें से 32 दलों ने इस विचार का समर्थन किया, जबकि 15 ने इसका विरोध किया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, NDA की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी ने सैद्धांतिक रूप से इसका समर्थन किया है। समिति के समक्ष इस कदम का समर्थन करने वाले सभी 32 दल या तो BJP के सहयोगी थे या फिर पार्टी के प्रति मित्रवत थे। हालांकि, BJD ने BJP का साथ छोड़ दिया है। समिति के समक्ष इस कदम का विरोध करने वाले 15 दलों में से 5 NDA के बाहर के दल हैं, जिनमें कांग्रेस भी शामिल है।

लोकसभा और राज्यसभा में टिक पाएगा विधेयक?

लोकसभा में किसी भी संवैधानिक संशोधन को पारित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। यानी उपस्थित और वोटिंग करने वाले दो तिहाई सदस्यों का समर्थन जरूरी है। अगर सभी 543 सांसद मौजूद हों तो 362 सांसदों का समर्थन चाहिए। अभी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के पास 234 सांसद हैं। संविधान संशोधन के लिए साधारण बहुमत के साथ-साथ विशेष बहुमत भी जरूरी है। इसका मतलब है कि संशोधन पास कराने के लिए सत्ता पक्ष को विपक्ष का भी समर्थन चाहिए होगा। उधर एनडीए के पास राज्यसभा में 113 सांसद हैं और 6 मनोनीत सदस्य उनका साथ देते हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन के पास 85 सांसद हैं। अगर सभी सांसद वोट देने आए तो दो-तिहाई बहुमत के लिए 164 वोट चाहिए होंगे। कुछ संवैधानिक बदलावों के लिए राज्य विधानसभाओं की मंजूरी भी जरूरी होती है। अगर राज्यसभा में पूरे सदस्य उपस्थित रहें, तो कुल संख्या 164 होगी।

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