काशी में 481 सालों से अनवरत भरत मिलाप की परंपरा चली आ रही है।विजयादशमी के दूसरे दिन काशी ही नहीं पूरा देश राम और भरत के मिलन का साक्षी बनता है।
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
वाराणसी। लक्खा मेले में शुमार भरत मिलाप का आयोजन वाराणसी में शुरू हो गया। विभिन्न रास्तों से होते हुए लोग नाटी इमली मैदान में पहुंच गए थे। इसके पहले मैदान के आसपास के मकानों की छतें भी भर गई थीं। सभी लोग उस पल का इंतजार कर रहे हैं जब राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन का मिलन होगा। हर वर्ष होने वाले इस भावपूर्ण का विशेष और धार्मिक महत्व है।
दशरथ पुत्रों के गले लगते ही पूरा माहौल गमगीन हो जाता है। हर किसी की आंखें नम हो जाती हैं। श्रीचित्रकूट रामलील समिति की ओर से होने वाले इस विश्वप्रसिद्ध आयोजन का 481वां वर्ष है। इस आयोजन में काशीराज परिवार के अनंत नारायण सिंह परंपरानुसार हाथी पर सवार होकर शामिल होते हैं।
इसके बाद जिला प्रशासन के लोगों ने हाथी पर सवार अनंत नारायण सिंह को सलामी दी। इसके पहले भगवान श्रीराम के पांच टन वजनी पुष्पक विमान को उठाने के लिए यादव बंधु भी तैयार हो गए थे।
पांच से 10 मिनट के इस लीला को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु
लक्खा मेले में शुमार भरत मिलाप का आयोजन वाराणसी में शुरू हो गया। विभिन्न रास्तों से होते हुए लोग नाटी इमली मैदान में पहुंच गए थे। इसके पहले मैदान के आसपास के मकानों की छतें भी भर गई थीं। सभी लोग उस पल का इंतजार कर रहे हैं जब राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन का मिलन होगा। हर वर्ष होने वाले इस भावपूर्ण का विशेष और धार्मिक महत्व है।पांच से 10 मिनट के इस लीला को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
चारों भाइयों का मिलन देख पूरी जनता की आंखें नम हो गई और भगवान राम और बाबा भोलेनाथ के जयकारे लगाने लगी। लीला के लिए क्या छत, गली, सड़क हर ओर भक्त अलौकिक छठा को नयनों में बसाने के लिए आतुर दिखे।
सर्वप्रथम मेघाभगत ने ही काशी में रामलीला मंचन की शुरुआत की
बनारस के यादव बंधुओं का इतिहास तुलसीदास के काल से जुड़ा हुआ है। तुलसीदास ने बनारस के गंगा घाट किनारे रह कर रामचरितमानस तो लिख दी, लेकिन उस दौर में श्रीरामचरितमानस जन-जन के बीच तक कैसे पहुंचे ये बड़ा सवाल था। लिहाजा प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा तुलसी के समकालीन गुरु भाई मेघाभगत ने उठाया। जाति के अहीर मेघाभगत विशेश्वरगंज स्थित फुटे हनुमान मंदिर के रहने वाले थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही काशी में रामलीला मंचन की शुरुआत की। लाटभैरव और चित्रकूट की रामलीला तुलसी के दौर से ही चली आ रही है।मान्यता है कि काशी की इस लीला में भगवान राम स्वयं धरती पर अवतरित होते हैं। कहा ये भी जाता है कि तुलसी दास जी ने जब रामचरित मानस को काशी के घाटों पर लिखा उसके बाद तुलसी दास जी ने भी कलाकारों को इकठ्ठा कर लीला यहां शुरू की थी। मगर उसे परम्परा के रूप में मेघा भगत जी ने शुरू किया। मान्यता ये भी है कि मेघा भगत को इसी चबूतरे पर भगवान राम ने दर्शन दिया था तभी से काशी में भरत मिलाप शुरू हुआ।
नंगे पांव दौड़ते हुए नाटी इमली के भरत मिलाप मैदान पर पहुंचे
पवनसुत ने प्रभु के आने की सूचना अयोध्या में भरत और शत्रुघन को दे दी। सूचना मिलते ही दोनों अनुज राम लीला मैदान बड़ा गणेश से नंगे पांव दौड़ते हुए नाटी इमली के भरत मिलाप मैदान पर पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद भगवान को देख दोनों भाई साष्टांग करते हैं। भरत के प्रण के अनुसार अगर सूर्यास्त से पहले अग्रज भ्राता नहीं मिले तो मैं प्राण त्याग दूंगा। इसको देखते हुए भगवान भी सूर्यास्त से पहले अपने अनुज से मिलने के लिए पहुंच जाते हैं।