मंत्र ॐ घृणि सूर्याय नमः
अर्थ- “हे सूर्य देव, मैं आपकी आराधना करता हूं” भगवान सूर्य की आराधना का यह चमत्कारिक मंत्र है. लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा में इसी मंत्र से अस्ताचलगामी सूर्य और अगले दिन उदित नारायण को अर्घ्य दिया जाता है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक इस मंत्र के जाप से साधक की कुंडली के दोष भी दूर होते हैं. इसके साथ ही साधकों को चिंता, तनाव, अवसाद, नकारात्मकता से मुक्ति मिल जाती है. वैसे तो भगवान भूवन भास्कर नव ग्रहों के राजा हैं और आदिकाल से इनकी पूजा होती रही है. ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक सूर्य की कृपा से लोग राजभोग की भी प्राप्ति करते हैं.
छठ में प्रकृति की पूजा का महत्व
छठ पर्व में उगते और डूबते सूर्य की आराधना होती है, जो इसे विशेष बनाती है. डॉ परशुराम सिंह के अनुसार, शाम को छठी माता की पूजा और सुबह सूर्यदेव की आराधना का प्रचलन है, जो प्रकृति से जुड़े रहने और आत्मिक संतुलन का प्रतीक है.
धार्मिक परंपरा ही नहीं प्रकृति के लिए समर्पण का महापर्व है छठ, इन बातों से समझें – डॉ परशुराम सिंह
आस्था का महासंगम छठ पर्व 5 नवंबर से शुरू होगा और 7 नवंबर को मुख्य पूजन के बाद 8 नवंबर 2024 को इसका समापन होगा. ये पर्व लोगों की भावनाओं के साथ तो गहराई से जुड़ा हुआ है ही, इसके अलावा यह प्रकृति के प्रति समर्पण भाव को भी दिखाता है.
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
धर्म कर्म डेस्क नई दिल्ली।छठ सिर्फ धार्मिक परंपराओं को नहीं दिखाता है, बल्कि ये हमारी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है, साथ ही ये पर्व प्रकृति के प्रति समर्पण भाव को दिखाने का एक जरिया है. छठ का पर्व प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है. फिर चाहे इसमें चढ़ाई जाने वाली चीजें हो या फिर पूजन करने का तरीका।
सूर्य हैं जीवों के प्राणों का आधार
सोचिए अगर कुछ दिन सूरज न निकले तो क्या होगा. इस पूरी धरती पर सिर्फ अंधकार नजर आएगा. सूर्य की रोशनी न सिर्फ उजाला करती है, बल्कि धरती पर रहने वाले हर बड़े से लेकर सूक्ष्म जीव तक के जीवन का आधार है. सूरज की रोशनी में पेड़-पौधे पनपते हैं, शरीर को गर्मी मिलती है तो वहीं ये विटामिन डी का सोर्स है. ये हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखने, अच्छी नींद के लिए, बेहतर मूड, एकाग्रता आदि के लिए भी जरूरी है. सूर्य को जीवों के प्राणों का आधार भी कहा जा सकता है और छठ पर्व में तो सूर्य देव की ही पूजा की जाती है. यह पर्व सिखाता है कि जिस तरह से उगता सूर्य जीवन में उजाला लेकर आता है, ठीक उसी तरह से डूबता सूर्य अगले दिन की उम्मीद देकर जाता है।
छठ पर्व सिखाता है प्रकृति से जुड़ाव
छठ के दौरान पुरानी परंपराओं का निर्वहन किया जाता है और लोग इसे अपनी अगली पीढ़ी को समझाते चले जाते हैं. छठ पर्व के दौरान सभी सूर्य को जल देने के लिए सूर्योदय से पहले ही जाग जाते हैं और शाम को सूर्य को जल दिया जाता है. सुबह जल्दी जागना होता है ऐसे में सभी समय से सो जाते हैं. आयुर्वेद में हेल्दी रहने के लिए जल्दी उठने के साथ ही समय से सोने की सलाह दी जाती है. इस तरह से यह पर्व हमें संयमित दिनचर्या का निर्वहन करने की भी सीख देता है और जब सुबह-शाम जब इन परंपराओं को पूरा किया जाता है तो प्रकृति के साथ एक अलग ही जुड़ाव महसूस होता है जिसे समझना आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत भी है.
सेहत के लिए भी वरदान है छठ पूजा
डॉ परशुराम सिंह कहते है कि प्रकृति में वो हर चीज दी गई है जो हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है, बस उसका सही इस्तेमाल करना आना चाहिए. छठ पूजा में चढ़ाई जाने वाली हर एक चीज प्रकृति की देन है, जैसे गन्ना, सिंघाड़ा, सुथनी, डाभ नींबू, नारियल, केला, सुपारी…और ये सभी चीजें इतनी पौष्टिक होती हैं कि अगर संतुलित तरीके से आहार में शामिल कर लिया जाए तो सेहत को दुरुस्त रखा जा सकता है।
सामाजिक समरसता की भावना होती है प्रबल
डॉ सिंह बताते है कि छठ पूजा प्रकृति के प्रति समर्पण भाव को तो जगाती ही है, इसके अलावा यह पूजा सामाजिक समरसता की भावना को भी प्रबल करती है. इस पूजा और व्रत को बिना भेदभाव के कोई भी पूरी श्रद्धा के साथ कर सकता है. इसमें स्त्री-पुरुष, जाति, धर्म, और अलग तरह की विश्वास और परंपराओं के लोगों में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है. यही चीज इस पर्व को और भी ज्यादा खास बनाती है. इसी के साथ ‘छठी मैया की जय’।
छठ पूजा 2024 का शुभ मुहूर्त
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 07 नवंबर को देर रात 12:41 बजे शुरू होगी और 08 नवंबर को देर रात 12:34 बजे समाप्त होगी. ऐसे में 07 नवंबर को संध्याकाल का अर्ध्य दिया जाएगा. इसके अगले दिन यानी 08 नवंबर को सुबह का अर्घ्य दिया जाएगा
देशभर में चार दिन तक चलने वाला CHHATH PUJA का त्योहार 5 अक्टूबर, शुक्रवार से शुरू हो रहा है। भगवान सूर्य व छठी माता को समर्पित CHHATH PUJA हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व चार दिन तक चलता है।
इस साल 2024 में ये 05अक्टूबर से शुरू होकर 08 अक्टूबर तक चलेगा। छठ पूजा में संतान के स्वास्थ्य, सफलता व दीर्घायु के लिए पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। इस व्रत को महिलाओं के साथ पुरुष भी रखते हैं।हिंदू धर्म में छठ पर्व (Chhath Puja 2024) का खास महत्व है।
CHHATH PUJA का महापर्व हर साल कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलती है. इस साल छठ 05 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. चार दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व (Chhath Parv) की शुरुआत नहाय-खाय (Chhath Nahay Khay ) के साथ होती है. दूसरे दिन खरना (Kharna ) होता है. जबकि तीसरे दिन संध्याकालीन अर्घ्य और चौथे दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस पर्व का समापन होता है।
CHHATH PUJA (Chhath 2024) लोक आस्था का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. व्रती इस व्रत में 36 घंटे तक व्रत रखते हैं. आइए जानते हैं कि साल 2024 में छठ महापर्व (Chhath Puja Dates 2024) कब से कब तक पड रहा है।
CHHATH PUJA 2024 तिथि | Chhath 2024 Date
यूपी बिहार और पूर्वांचल का प्रसिद्ध छठ पर्व साल के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. कहते हैं कि छठी मैया की पूजा-अर्चना करने और व्रत करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है और साथ ही संतान की आयु लंबी होती है. यह त्योहार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से शुरू होता है. इस साल छठ की सही तिथि को लेकर कंफ्यूजन की स्थिति बन रही है. ऐसे में अगर आपको छठ पूजा की तिथि (Chhath Puja Date) को लेकर जरा भी उलझन है या आप जानना चाहते हैं कि कब नहाय खाय (Nahay khay), खरना और सूर्य को अर्घ्य दिया तो यहां देखिए सभी दिनों की पुरी सूची.
नहाय खाय से लेकर सूर्य अर्घ्य तक की तिथि
नहाय खाय
छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है, जो इस बार 5 नवंबर, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा. इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं और बिना प्याज लहसुन वाला सात्विक भोजन करती हैं. इस दिन कद्दू भात (Kaddu Bhat) बनाने का विशेष महत्व होता है.
खरना
नहाय खाय के बाद दूसरे दिन खरना मनाया जाता है. यह दिन इस बार 6 नवंबर यानी कि बुधवार के दिन पड़ रहा है. इस दिन गुड़ और चावल की खीर बनाकर छठी मैया को भोग स्वरूप अर्पित की जाती है और इसे खाने के बाद ही व्रत करने वाली महिलाएं निर्जला उपवास की शुरुआत करती हैं.
संध्या अर्घ्य
छठ पूजा में उगते और ढलते सूरज को अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता है. छठ पूजा में संध्या अर्घ्य की तिथि 7 नवंबर 2024 यानी कि गुरुवार के दिन है. यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है. व्रत करने वाली महिलाएं सूर्यास्त के समय नदी के किनारे जाकर सूर्य देव (Surya Dev) को अर्घ्य देती हैं.
ऊषा अर्घ्य और पारण
ऊषा अर्घ्य और पारण की तिथि 8 नवंबर, शुक्रवार के दिन है. इस दिन छठ पूजा का अंतिम दिन होता है और उगते सूरज को महिलाएं अर्घ्य देती हैं. इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है. व्रत के पारण के साथ ही छठ पूजा का प्रसाद बांटा जाता है और सूर्य देव का आशीर्वाद लेकर उन्हें प्रणाम किया जाता है. कहते हैं कि यह व्रत करने से घर में दुख दरिद्रता नहीं आती है, सुख शांति का वास होता है और परिजनों को लंबी आयु का वरदान मिलता है.
छठ 2024 तिथियां | Chhath Puja 2024 Dates
कब है छठ पूजा?
दृक पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि के साथ छठ पूजा आरंभ होती है।
षष्ठी तिथि आरंभ: 07 नवंबर, देर रात्रि 12: 41
षष्ठी तिथि समाप्त: 08 नवंबर, देर रात्रि 12: 34 पर
कार्तिक छठ पूजा कैलेंडर 2024
नहाय खाय- 05 नवंबर 2024
खरना- 06 नवंबर 2024
शाम का अर्घ्य- 07 नवंबर
सुबह का अर्घ्य- 08 नवंबर
छठ पूजा का महत्व
- छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। इस शुभ अवसर पर नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं दिन में एक बार भोजन करती हैं।
- महापर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है। खरना वाले दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं।
- इसके अगले दिन यानी तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
- महापर्व के अंतिम दिन महिलाएं उगते सूर्य को जल देती हैं और शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करती हैं।
ध्यान रखें ये बातें
- छठ पूजा के दौरान बर्तन या पूजन सामग्री को झूठे हाथ से नहीं छूना चाहिए। ऐसा करने से साधक का व्रत खंडित हो जाता है।
- महापर्व के दौरान सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए।
- पहले से प्रयोग किए गए बर्तनों को पूजा में इस्तेमाल करना वर्जित है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पर्व को महापर्व कहा जाता है. क्योंकि इस पर्व को आस्था और श्रद्धापूर्वक किया जाता है. यही कारण है कि आज देश से लेकर विदेशों में भी छठ पूजा मनाई जाती है. छठ पर्व में साफ-सफाई के नियमों का विशेष पालन करन होता है. छठी माई की पूजा में घर पर मांस-मंदिरा, लहसुन-प्याज और जूठन करना वर्जित होता है. छठ व्रत करने से घर पर सुख-शांति आती है. इस व्रत से संतान और सुहाग की आयु लंबी होती है।
छठ पूजा सामग्री Chhath Puja samagri
- 1. अपने लिए नए वस्त्र जैसे सूट, साड़ी और पुरुषों के लिए कुर्ता-पजामा या जो उन्हें सुविधाजनक हो।
- 2. छठ पूजा का प्रसाद रखने के लिए बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरियां खरीद लें।
- 3. सूप, ये बांस या फिर पीतल के हो सकते हैं।
- 4. दूध तथा जल के लिए एक ग्लास, एक लोटा और थाली।
- 5. 5 गन्ने, जिसमें पत्ते लगे हों।
- 6. नारियल, जिसमें पानी हो।
- 7. चावल, सिंदूर, दीपक और धूप।
- 8. हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा।
- 9. बड़ा वाला मीठा नींबू (डाभ), शरीफा, केला और नाशपाती।
- 10. शकरकंदी तथा सुथनी।
- 11. पान और साबुत सुपारी।
- 12. शहद।
- 13. कुमकुम, चंदन, अगरबत्ती या धूप तथा कपूर।
- 14. मिठाई।
- 15. गुड़, गेहूं और चावल का आटा।
छठ पूजा विधि Chhath Puja vidhi
छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें।
- बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास
: चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी
: नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई
: प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें।
अर्घ्य देने की विधि- बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएँ। फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना कि, तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।”
इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया।
(Disclaimer): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. खबरी पोस्ट न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता है.)