त्रिनाथ पांडेय
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
चकिया, चंदौली । छठ पर्व में नदी-घाट में व्रती कमर तक पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती है. इस दिन को संध्या अर्घ्य (Sandhya Arghya) और सूर्य षष्ठी कहा जाता है. अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
लगभग 10 वर्षो से छठ व्रत कर रही अन्नपूर्णा देवी, बिंदा देवी, सीमा देवी ने बताया कि छठ की महिमा अपरंपार है।छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें अस्ताचलमागी सूर्य को अर्घ्य देकर नमस्कार किया जाता है. हिंदू धर्म में अन्य किसी त्योहार में ढलते सूर्य की पूजा नहीं होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, संध्या के समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. छठ पूजा में सांयकाल की पूजा में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य दी जाती है।
छठ पर्व में उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व (Chhath Puja me Surya ko arghya dene ka mahtav)
डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना बहुत जरूरी होता है. डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही छठ पर्व का समापन होता है. 8 नंवबर को छठ के आखिरी दिन उदयागामी सूर्य अर्घ्य दिया जाता है. इसे उषा अर्घ्य (Usha Arghya) भी कहते हैं।
धार्मिक मान्यता है अनुसार सूर्योदय के समय प्रात:काल में सूर्य देव अपनी पत्नी (Surya Dev Wife) उषा के साथ रहते हैं, जोकि सूर्य की पहली किरण है. इन्हें भोर की देवी भी कहा जाता है. छठ पूजा में उदयगामी अर्घ्य देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।