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सलिल पाण्डेय

◆मुंह से आग निकालना तपस्या है या जादूगिरी?

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

मिर्जापुर ।नाबालिग को तो कोई मॉडल को संत-साध्वी बना रहा। इसको लेकर आपस में ही संतों- महात्माओं में विरोध के स्वर उठ रहे हैं। विरोध करने वाले महात्माओं का कहना है कि इस तरह सनातन संस्कृति का प्रदर्शन करना उचित नहीं है।

तमाम मुद्दों पर महात्माओं में आपसी गतिरोध

इसके अलावा तमाम अन्य मुद्दों पर भी महात्माओं में आपसी गतिरोध है। कुछ महात्मा तो साधु-संतों के लिए निर्धारित नियम एवं आचरण अपनाकर महाकुंभ मेले में साधना कर रहे हैं तथा अपने कैम्प में उपस्थित श्रद्धालुओं में ज्ञान बांट रहे है। वहीं दूसरी ओर अनेक महात्मा तलवार लहरा रहे तो कुछ मुंह से आग निकाल रहे तो कुछ गले में सांप लपेटकर आम श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का उपक्रम कर रहे हैं।

साधना एवं तपस्या से गुरुता (वजन) आनी चाहिए न कि हल्कापन

ऐसा तो गली-चौराहों पर भी प्रदर्शन होता है : प्रायः गली-चौराहों पर जादू करने वाले, मुंह से आग निकाल कर करिश्मा करने वाले दिखाई पड़ते हैं। यदि ऐसा प्रयाग के महाकुंभ मेले में शाही स्नान के लिए निकले अधेड़ और बुड्ढे महात्मा करते दिखाई पड़ते हैं तो वह प्रदर्शन अत्यंत घटिए किस्म का प्रदर्शन आम श्रद्धालुओं को लगता है। 10-15 साल की उम्र में की जाने वाली हरकत जब 60-70 की उम्र के लोग करते हैं तो वह मज़ाक का पात्र बनता ही है। साधना एवं तपस्या से गुरुता (वजन) आनी चाहिए न कि हल्कापन। जादुई हरकत करने का मतलब यही प्रतीत होता है कि उनकी हरकत से प्रभावित होकर लोगबाग शिष्य बने।

इस तरह की प्रवृत्तियों पर रोक लगनी चाहिए। यदि संतों का संगठन इस पर रोक नहीं लगा पा रहा तो संवैधानिक नियमों के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए। तलवार या अन्य कोई असलहा लहराने पर यदि जुर्म बनता है तो ऐसे लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए। चाहे किसी धर्म का मामला हो, असलहे का लहराना किसी दृष्टि से उचित नहीं।

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