चकिया (चंदौली)। जिले के चकिया तहसील में एक बेहद गंभीर मामला सामने आया है जहाँ एक लेखपाल की सेवा पुस्तिका (सर्विस बुक) तहसील कार्यालय से रहस्यमयी ढंग से गायब हो गई है। इस घटना ने न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं बल्कि पीड़ित लेखपाल को भी मानसिक और प्रशासनिक तनाव में डाल दिया है। अपनी सेवा पुस्तिका के गायब होने के बाद से पीड़ित लेखपाल प्रदीप लगातार तहसील के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें कोई स्पष्ट जवाब या संतोषजनक समाधान नहीं मिला है।

घटना की शुरुआत – एक सामान्य आदेश से असामान्य स्थिति तक

पूरा मामला 22 मार्च से शुरू होता है जब तत्कालीन उपजिलाधिकारी (एसडीएम) दिब्या ओझा ने चकिया तहसील के 9 लेखपालों की सेवा पुस्तिकाएं निरीक्षण के लिए मंगवायी थीं। इस आदेश पर कार्रवाई करते हुए रजिस्टार कानूनगो नरेंद्र प्रताप सिंह द्वारा सभी 9 लेखपालों की सेवा पुस्तिकाएं एकत्रित की गईं और उपजिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की गईं। लेकिन उसी दिन एक अप्रत्याशित मोड़ आया जब उपजिलाधिकारी दिब्या ओझा का तबादला किसी अन्य तहसील में कर दिया गया।

स्थिति तब और जटिल हो गई जब यह पता चला कि सेवा पुस्तिकाएं वापस कार्यालय को नहीं सौंपी गईं। बाद में कार्यालय सहायक सैनी को निर्देशित किया गया कि उपजिलाधिकारी महोदया के सरकारी आवास पर जाकर पुस्तिकाएं वापस लायी जाएं। जब वह वहां पहुंचे तो एक कार्टून में रखी कुल आठ सेवा पुस्तिकाएं प्राप्त हुईं, लेकिन प्रदीप की सेवा पुस्तिका उसमें नहीं थी।

निरंतर प्रयासों के बावजूद नहीं मिली सफलता

सेवा पुस्तिका न मिलने के बाद प्रदीप ने कई बार तहसील प्रशासन को आवेदन देकर अपनी समस्या से अवगत कराया। उन्होंने बार-बार गुहार लगाई कि उनकी सेवा पुस्तिका को जल्द से जल्द खोजा जाए, लेकिन अब तक उन्हें केवल आश्वासन ही मिलते रहे हैं। उनकी परेशानी यह है कि सेवा पुस्तिका जैसे अहम दस्तावेज के बिना न तो भविष्य में पदोन्नति हो सकती है, न ही अन्य प्रशासनिक लाभ लिए जा सकते हैं। साथ ही, यह किसी कर्मचारी की पूरी सेवा का प्रमाण होता है।

प्रदीप ने बताया कि उन्होंने संबंधित अधिकारियों को मौखिक और लिखित रूप से कई बार अवगत कराया है, लेकिन इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। प्रशासन की निष्क्रियता और लापरवाही के चलते अब उनके सामने एक तरह से पहचान और अधिकारों का संकट खड़ा हो गया है।

प्रशासनिक लापरवाही या कुछ और?

यह सवाल अब उठने लगा है कि क्या यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का मामला है या फिर इसके पीछे कोई गहरी साजिश है? क्या सेवा पुस्तिका की गुमशुदगी सिर्फ एक संयोग है या जानबूझकर किसी उद्देश्य से इसे गायब किया गया? यदि तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने सेवा पुस्तिकाएं अपने पास रखीं थीं, तो उनका तबादला होने के बाद उन्हें संबंधित विभाग को सौंपना क्यों नहीं सुनिश्चित किया गया?

कार्यालय सहायक सैनी के अनुसार, उन्हें जो सेवा पुस्तिकाएं आवास से प्राप्त हुईं, वे सभी कार्टून में थी और उन्हें खुद यह ज्ञात नहीं था कि किसकी सेवा पुस्तिका है और किसकी नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें यह निर्देश नहीं मिला था कि पुस्तिकाएं त्वरित रूप से वापस जमा करनी हैं।

पीड़ित की मांग – जाँच हो और दस्तावेज वापस मिले

प्रदीप ने अब प्रशासन से यह मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए और जल्द से जल्द उनकी सेवा पुस्तिका को खोजा जाए। उनका कहना है कि यदि सेवा पुस्तिका नहीं मिलती है तो उनके पूरे करियर पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। साथ ही, उन्होंने मांग की है कि भविष्य में ऐसे संवेदनशील दस्तावेजों की सुरक्षा और ट्रैकिंग की कोई ठोस व्यवस्था की जाए ताकि कोई अन्य कर्मचारी इस तरह की स्थिति का शिकार न हो।

प्रशासनिक दृष्टिकोण और जवाबदेही

इस मामले पर अभी तक तहसील प्रशासन की ओर से कोई ठोस बयान नहीं आया है। न ही यह स्पष्ट किया गया है कि पुस्तिका की खोज के लिए कोई समिति बनाई गई है या नहीं। तहसील में कार्यरत अन्य कर्मचारियों का मानना है कि यदि ऐसी घटनाएं होती रहेंगी और उन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो कर्मचारियों का मनोबल टूटेगा और प्रशासनिक व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास उठ जाएगा।

क्या है समाधान?

  1. सीसीटीवी और लॉग बुक व्यवस्था: तहसील स्तर पर आने-जाने वाले दस्तावेजों की उचित एंट्री होनी चाहिए और कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि दस्तावेजों की ट्रैकिंग हो सके।
  2. डिजिटलीकरण: सेवा पुस्तिकाओं का डिजिटलीकरण करके उन्हें एक केंद्रीय सर्वर पर सुरक्षित रखा जा सकता है, जिससे भविष्य में दस्तावेजों की चोरी या गुमशुदगी जैसी घटनाओं से बचा जा सके।
  3. उत्तरदायित्व तय हो: जब कोई अधिकारी किसी दस्तावेज को अपने पास रखता है, तो उसके सुरक्षित लौटने की पूरी जिम्मेदारी भी उसी की होनी चाहिए। किसी दस्तावेज के गायब होने पर उस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित होनी चाहिए।

प्रशासनिक विफलता का प्रतीक

प्रदीप की सेवा पुस्तिका का गायब होना सिर्फ एक व्यक्ति की परेशानी नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण प्रशासनिक विफलता का प्रतीक है। इस एक घटना ने यह उजागर कर दिया है कि तहसील स्तर पर दस्तावेजों के रख-रखाव और ट्रैकिंग में कितनी लापरवाही बरती जा रही है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में और भी कई कर्मचारी इस तरह की परेशानियों से जूझ सकते हैं।

प्रशासन को चाहिए कि वह इस घटना को गंभीरता से ले और तत्काल प्रभाव से जांच शुरू कराए, जिससे प्रदीप को न्याय मिले और साथ ही, भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचा जा सके।