U P NIkay Chunav: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने के मामले में शनिवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है कोर्ट ने सरकार की दलीलों को नहीं माना।

यूपी निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ा फैसला दिया है। अदालत ने यूपी सरकार को निर्देश दिया है कि इस बार बगैर आरक्षण के निकाय चुनाव करवाए जाएं

  • यूपी निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का बड़ा फैसला
  • हाईकोर्ट ने यूपी सरकार की ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को कर दिया खारिज
  • अदालत ने योगी सरकार से बगैर आरक्षण निकाय चुनाव कराने को कहा
  • लखनऊ में CM आज मंगलवार को निकाय चुनाव को लेकर करेंगे बडी बैठक
  • कमेटी तीन मानकों के आधार पर देगी रिर्पोट
  • डिप्टी सी एम बृजेश पाठक ने कहा कि न्यायालय के फैसले का स्वागत ‚BJP चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार
  • डिप्टी सी एम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि पिछडे वर्ग के आरक्षण को लेकर कोई समझाैता नही

खबरी नेशनल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है और जल्द से जल्द चुनाव कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार की दलीलों को मानने से इनकार कर दिया। उत्‍तर प्रदेश निकाय चुनावों को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आ गया है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार को झटका देते हुए निकाय चुनावों के लिए 5 दिसंबर को जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही राज्य सरकार को बगैर आरक्षण निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया है। अदालत का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित ट्रिपल टेस्‍ट ना हो, तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा। हाईकोर्ट ने 2017 के ओबीसी रैपिड सर्वे को नकार दिया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर दाखिल 93 याचिकाओं पर एक साथ पारित किया। यूपी सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।

यूपी सरकार की तरफ से निकाय चुनाव में किए गए ओबीसी आरक्षण को रद्द

लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार की तरफ से निकाय चुनाव में किए गए ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है। ओबीसी के लिए आरक्षित सभी सीटें अब जनरल मानी जाएंगी। अदालत ने निकाय चुनाव तत्काल कराने के भी निर्देश दिए हैं।

ओबीसी आरक्षण के लिए कमीशन बनाने का निर्देश
हाईकोर्ट के 70 पेज के फैसले के बाद यूपी में निकाय चुनाव का रास्‍ता साफ हो गया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए यूपी सरकार एक कमीशन बनाए। अगर सरकार और निर्वाचन आयोग चाहे तो बगैर ओबीसी आरक्षण तुरंत ही चुनाव करा सकती है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद यूपी सरकार की तरफ से जारी ओबीसी आरक्षण नोटिफिकेशन रद हो गया है। अगर सरकार चुनाव कराती है तो ओबीसी सीटों को जनरल ही माना जाएगा। वहीं एससी और एसटी सीटों के लिए सीटें पहले जैसी ही रहेंगी यानि उनमें कोई फेरबदल नहीं होगा।

यूपी सरकार के जवाब से संतुष्‍ट नहीं था हाईकोर्ट
पिछली सुनवाई 24 दिसंबर को हुई थी। सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने बताया था कि यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में अपने एक्शन को डिफेंड किया कि जो हमने नोटिफिकेशन जारी किया है वो बिल्कुल सही तरीके से जारी किया है। लेकिन कोर्ट उनसे बहुत ज्यादा संतुष्‍ट नहीं थी। कोर्ट का कहना था कि आपने जो ये एक्सरसाइज की है उसका कोई डाटा नहीं है। बिना डाटा के ये एक्सरसाइज पूरी कैसे कर ली है। कोर्ट उनसे डाटा मांग रही थी लेकिन सरकार ने कोर्ट के समक्ष कोई डाटा प्रस्तुत नही किया है।

बगैर ओबीसी को आरक्षण दिए स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी को कोई आरक्षण न दिया जाए। ऐसे में बगैर ओबीसी को आरक्षण दिए स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं। कोर्ट ने राज्य सरकार को ट्रिपल टेस्ट के लिए आयोग बनाए जाने का आदेश दिया। कोर्ट ने चुनाव के संबंध में सरकार द्वारा जारी गत 5 दिसंबर के अनंतिम ड्राफ्ट आदेश को भी निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने मंगलवार को यह निर्णय ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य

कोर्ट में सुनवाई चलते रहने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग के अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। मामले में याची पक्ष ने कहा था कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।

सरकार ने ये भी कहा था कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता

जिस पर राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। सरकार ने ये भी कहा था कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।

नियमों के उल्‍लंघन को लेकर मामलों का दिया गया उदाहरण
वकील ने बताया कि सुनवाई के दौरान पिछले चुनाव का हवाला दिया गया था। साथ ही कहा गया कि 2014 और 2017 के चुनाव में भी बहुत सारे नियमों का उल्लंघन हुआ था। इसको लेकर अदालत में बहुत से मामले भी आए थे। उन्होंने कहा कि उसी डाटा के आधार पर ये चुनाव भी कराने का प्रयास कर रहे हैं। इसी वजह से अदालत में चुनौती दी गई है।

कैसे होता है रैपिड सर्वे
रैपिड सर्वे में जिला प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों द्वारा वार्डवार ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही ओबीसी की सीटों का निर्धारण करते हुए इनके लिए आरक्षण का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाता है।

जानें, क्या है ट्रिपल टेस्ट
नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करेगा। इसके बाद पिछड़ों के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा और तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन कराया जाएगा। 

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