खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
चकिया‚चंदौली। यूथ आइकॉन ऑफ इंडिया स्वामी विवेकानंद ने एक महापुरुष और युवा संयासी के रूप में अपनी पहचान बनाई. उन्होंने मानव समेत युवा जगत को नई राह दिखाई. इसलिए उनकी जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता हैै । स्वामी विवेकानंद भारत ही नहीं विश्व के नवयुवकों के मार्गदर्शक हैं। इनके सिद्धांत पर चलकर भारत विश्व गुरु के पद पर आसीन होगा। उक्त बातें स्वामी विवेकानंद के जन्म सप्ताह के अवसर पर राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ‚बेटी बचाओं बेटी पढाओ के राष्ट्रीय संयोजक व आदर्श जन चेतना समिति के संरक्षक‚ वृक्ष बंधु डॉ परशुराम सिंह ने क्षेत्रिय युवाओं को संबोधित करते हुए कही।
स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में संयासी बन गए और गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया
यूथ आइकॉन ऑफ इंडिया स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में कलकत्ता शहर में हुआ था । कहा जाता है कि उनके बचपन का और पहला नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली थे। कम उम्र में ही उनकी रुचि आध्यात्म की ओर हुई वे 25 साल की उम्र में संयासी बन गए और गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया।
आज भी विवेकानन्द के महान विचार और मूल मंत्र युवाओं को बदलाव लाने के लिए करते है प्रेरित
कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में जन्मे विवेकानन्द आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवों मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य दूसरे जरूरतमन्दो की मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है।स्वामी विवेकानंद को ऐसे महान पथ प्रदर्शक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने भारत की सभ्यता, धर्म और संस्कृति को पूरे विश्व से रूबरू कराया. आज भी उनके महान विचार और मूल मंत्र युवाओं को देश औऱ समाज की स्थिति सुधारने और बदलाव लाने के लिए प्रेरित करते हैं।
यूथ आइकॉन ऑफ इंडिया स्वामी विवेकानन्द ने जो छाप छोड़ी थी उसे पी एम ने भी माना आदर्श
श्री सिंह ने कहा कि शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने अपना पहला भाषण हिंदी में देते हुए भाइयों, बहनों, माताओं, पिता का उद्बोधन करके जो हिंदी का छाप छोड़ा था उसे हम देशवासियों को अनुकरण करने की जरूरत है। कहा कि पश्चिमी सभ्यता के चलते आज हमारी सनातनी परंपराएं टूटती हुई नजर आ रही हैं। ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत भारतीय परंपरा को बनाए रखने में कारगर साबित होगा। डॉ सिंह ने कहा कि पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वामी विवेकानंद को अपने जीवन का आदर्श माना है जो एक सराहनीय कदम है।
स्वामी विवेकानन्द रामकृष्ण परमहंस के सबसे सुयोग्य शिष्य
यूथ आइकॉन ऑफ इंडिया विवेकानंद जब ईश्वर की खोज में थे, तब उनकी मुलाकात भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई. वे रामकृष्ण परमहंस के सबसे सुयोग्य शिष्य थे. उन्होंने पूर्ण समर्पण भाव से अपने गुरु की सेवा की और उनके कर्म पथपर चलते हुए प्रसिद्ध भी हुए।
गुरु की स्मृति में 1889 में रामकृष्ण मिशन को किया स्थापित
1886 में जब रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया तब विवेकानंद ने अपने गुरु की स्मृति में 1889 में रामकृष्ण मिशन स्थापित की और उनके द्वारा दिए गए वेदांत के उद्देश्यों का आजीवन प्रचार किया. उन्होंने वेदांत के प्रचार से हिंदू धर्म की महानता को विश्वभर में फैलाया.
4 जुलाई 1902 में अंतिम सांस ली, तब वे केवल 39 वर्ष के थे
यूथ आइकॉन ऑफ इंडिया स्वामी विवेकानंद की मृत्यु बहुत कम उम्र में ही हो गई. उन्होंने 4 जुलाई 1902 में अंतिम सांस ली, तब वे केवल 39 वर्ष के थे. कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे. लेकिन इसके बावजूद वे अपने शरीर को स्वस्थ रखने और जीवनशैली में कोई कोताही नहीं करते थे. जीवन के आखिरी समय में बेलूर में अपने शिष्यों के साथ थे. उनके शिष्यों अनुसार, जीवन के अंतिम दिन यानी 4 जुलाई को सुबह उन्होंने दो-तीन घंटे ध्यान किय और इसके उन्होंने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली. बेलूर के गंगाघाट पर चंदन की चिता पर स्वामी विवेकानंद की अंतेष्ठी की गई थी.
स्वामी विवेकानंद के आधारभूत सिद्धांत
- ज्ञान व्यक्ति के मन में विद्यमान है और वह स्वयं ही सीखता है.
- मन, वचन और कर्म की शुद्ध आत्मा नियंत्रण है.
- शिक्षा से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास होता है.
- लड़के और लड़कियां दोनों को समान शिक्षा मिलने का अधिकार होना चाहिए.
- स्त्रियों को विशेष रूप से धार्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए.
- जनसाधारण में शिक्षा का प्रचार किया जाना चाहिए
डॉ सिंह ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा है कि स्वामी विवेकानंद जैसे हमारे पूर्वजों के सिद्धांतों को अपनाकर युवा पीढ़ी राष्ट्र को मजबूती प्रदान करने के साथ ही भारतीय परंपरा को कायम रखने का काम करें।