अवैध क्लीनिक के पीछे चलाता था नर्सिंग होम, करता था लिंग परीक्षण अब जेल की सलाखों में
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
ब्यूरो रिर्पोट उत्तर प्रदेश । नियमों को दर किनार कर अवैध अल्ट्रासाउंड सेन्टरों द्वारा लिंग परीक्षण का कार्य धडल्ले से किया जा रहा है। यह कोई एक जगह की बात नही है। चंदौली ‚वाराणसी‚सोनभद्र जिले सहित पूरे प्रदेश में यह धंधा जिले के सी एम ओ व उनके स्टाप की जानकारी में फलता फूलता नजर आ रहा है।
झाेलाछाप डाक्टर को पुलिस ने किया गिरफ्तार
इसी क्रम में परीक्षण करने और उसके बाद गर्भपात करने वाले झोलाछाप चंद्रमोहन सिंह को गुलरिहा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ गैर इरादतन हत्या के आरोप के अलावा पीसीपीएनडी एक्ट और धोखाधड़ी का भी मुकदमा दर्ज किया गया है। बताया जा रहा है कि जिस क्लीनिक पर वह इलाज करता था, उसका रजिस्ट्रेशन भी नहीं था। अवैध क्लीनिक में अवैध रूप से मरीजों का इलाज रहा।
गर्भवती का कर दिया एबार्सन‚इलाज के दौरान हुई मौत‚पुलिस ने किया मुकदमा दर्ज‚
गुलरिहा थाना क्षेत्र के भटहट रोड के मलंगस्थान पर केएम फार्मा क्लीनिक है। इस क्लीनिक पर चंद्रमोहन खुद को डॉक्टर कहकर मरीजों का इलाज करता था। इसी दौरान जंगल डुमरी नंबर एक टोला फैलहवा घाट निवासी सोनकली ने गुलरिहा पुलिस को तहरीर देकर आरोप लगाया था कि बहू पांच माह की गर्भवती थी।
इलाज के लिए केएम फार्मा क्लीनिक लेकर गए तो डॉ. चंद्रमोहन सिंह ने जांच करते हुए बताया कि गर्भ में लड़की है और गर्भपात कराने के लिए दवा दे दिए। दवा खाने के बाद रक्तस्राव होने लगा। इस पर उसने पांच दिन तक क्लीनिक में भर्ती कर लिया।
हालत गंभीर होने पर मेडिकल काॅलेज रेफर कर दिया। जहां पर 11 अप्रैल को मेडिकल काॅलेज में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। मामले में पुलिस ने आरोपी चंद्रमोहन सिंह के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज कर जांच शुरू की थी। जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हुई हैं। गुलरिहा एसओ संजय सिंह ने बताया कि आरोपी के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया था। उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया जहां से जेल भेजा गया।
नियमों को दरकिनार कर अस्पतालों में हो रहा है लिंग परीक्षण और गर्भपात
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के नियमों को दरकिनार कर अवैध अस्पतालों में भ्रूण के लिंग परीक्षण और गर्भपात का खेल हो रहा है। उल्लिखित घटनाएं इसकी तस्दीक भी कर रही हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग चंद अस्पतालों पर कार्रवाई कर अपना पल्ला झाड़ ले रहा है। जबकि, इस खेल में 100 से अधिक अस्पताल शामिल हैं, जो मोटी रकम लेकर गर्भपात करा रहे हैं। ऐसे अस्पतालों के पास न तो प्रशिक्षित डॉक्टर है और न ही स्वास्थ्यकर्मी। इतना ही नहीं इन अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन भी नहीं है।
आइए देखते है गर्भपात को लेकर क्या है नियम
संवैधानिक नियम के तहत 12 सप्ताह से पहले गर्भवती स्वेच्छा से गर्भपात करवा सकती है। लेकिन, 12 से 24 सप्ताह तक की गर्भवती को गर्भपात के लिए कारण सीएमओ और उनके निर्देशन में गठित कमेटी को बताना होगा। इसके बाद ही महिला को गर्भपात का अधिकार मिलेगा, वह भी शहर के 25 चुनिंदा अस्पतालों में, जो एमटीपी के तहत स्वास्थ्य विभाग में रजिस्टर्ड है। अगर इन अस्पतालों को छोड़कर कहीं कोई महिला गर्भपात करवा रही है तो कानूनी रूप से गलत है।
शर्तों के साथ करा सकती हैं गर्भपात
पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसीपीएनडीटी) के नोडल अधिकारी डॉ. एके सिंह ने बताया कि एमटीपी एक्ट के तहत 12 सप्ताह की गर्भवती खुद गर्भपात करवा सकती है। लेकिन, इसके लिए भी वह उन्हीं अस्पतालों में गर्भपात करवा सकती है, जो एमटीपी के तहत रजिस्टर्ड हों। इसके अलावा 12 से लेकर 24 सप्ताह के बीच वाली गर्भवती को शर्तों साथ गर्भपात का अधिकार है।
वाजिब वजह सीएमओ और उनकी कमेटी को बताना होगा
इसके लिए वाजिब वजह सीएमओ और उनकी कमेटी को बताना होगा। कमेटी की दी गई रिपोर्ट के बाद ही डॉक्टर उनका गर्भपात कर सकते है। डॉ. एके सिंह ने बताया कि एमटीपी एक्ट के तहत विवाहित महिलाओं की विशेष श्रेणी, जिसमें दुष्कर्म पीड़िता व दिव्यांग और नाबालिग जैसी अन्य संवेदनशील महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी समय सीमा 24 सप्ताह थी, जबकि अविवाहित महिलाओं के लिए यही समय सीमा 20 सप्ताह है। लेकिन, अब इसे बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है।
रजिस्टर्ड अस्पतालों में ही गर्भपात करा सकने का अधिकार
डॉ. एके सिंह ने बताया कि शहर के 25 स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों ने अस्पताल रजिस्ट्रेशन के समय एमटीपी के लिए आवेदन किया था, जिनको विभाग की तरफ से अनुमति मिली है। ये डॉक्टर 12 सप्ताह के अंदर वाली गर्भवतियों का गर्भपात बिना किसी सूचना के कर सकते हैं। जबकि 12 सप्ताह से ऊपर वाली गर्भवतियों को इसके लिए विभाग को सूचना देने का नियम है।
शिकायत मिलने पर टूटती है स्वास्थ्य विभाग की नींद, कार्रवाई कर खामोश हो जाते अधिकारी, अल्ट्रासाउंड सेंटरों की कटती है चांदी ही चांदी
शहर से लेकर गांव के छोटे कस्बों तक अल्ट्रासाउंड सेंटरों की भरमार है। कुछ सेंटर पर लिंग जांच कर मोटी रकम वसूल की जाती है। मां-बाप की मर्जी पर आगे की प्रक्रिया भी करा दी जाती है। सेंटर संचालक भ्रूण का लिंग बताकर अपने हिस्से की रकम लेकर किनारा कस लेते हैं।
ग्राहक की हैसियत के अनुसार इन सेंटरों पर रकम की वसूली की जाती है। ग्राहक का जैसा स्तर उस हिसाब से बिचौलिए रकम की मांग करते हैं। केस के हिसाब से बिचौलियों का हिस्सा निर्धारित है।
जिला मुख्यालय से लेकर छोटे कस्बे में भी लिप्त है जांच सेन्टर ‚जांच के नाम पर वसूली जाती है मोटी रकम
जिला मुख्यालय के अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर कम लेकिन बाहर छोटे कस्बों में धड़ल्ले से जांच कर रकम की वसूली की जाती है। 6,000 से लेकर करीब 8,000 रुपये की वसूली की जाती है, जो व्यक्ति रकम देने को तैयार होता है, उसे सुविधा आसानी से मिल जाती है। किसी को कुछ पता भी नहीं चलता है। क्योंकि, जांच कराने वाला काम होने के बाद धीरे से खिसक लेता है।
लगता है स्वास्थ्य महकमा का भी हो सकता है सांठ गाठǃ
आश्चर्य तो इस बात का है कि इसे रोकने की जिम्मेदारी लिए बैठा स्वास्थ्य महकमा कार्रवाई तभी करता है, जब मामला तूल पकड़े या फिर कोई आकर उनके दफ्तर तक शिकायत करें। खुद से विभाग को इसकी फिक्र नहीं है, जिस वजह से न चाहते हुए भी महिलाएं लिंग जांच कराकर खुद की और पेट में पल रहे शिशु की जिंदगी गंवा दे रहे है।
एमटीपी के लिए किसी को अनुमति नहीं
जिले भर में अस्पताल संचालित हो रहे हैं, लेकिन मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) करने का अधिकार किसी को नहीं है। पीसीपीएनडी एक्ट के नोडल डॉ. राजेंद्र प्रसाद बताते हैं, शहर में एमटीपी के लिए किसी को अनुमति नहीं है। समय-समय पर जांच की जाती है। भ्रूण जांच जिले में कहीं नहीं होती है।